Sri Ram Katha: सीता माता ने क्यों ली थी तिनके की ओट, जानिए रामायण की ये रहस्य भरी कहानी

 राम चरित मानस में एक घास के तिनके का जिक्र है. जिसका रहस्य कोई नहीं जानता है. रावण जब मां सीता जी का हरण करके लंका ले गया तब लंका में सीता जी अशोक वृक्ष के नीचे बैठी थीं. रावण बार बार आकर मां सीता जी को धमकाता था, लेकिन मां सीता जी कुछ नहीं बोलती थी.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Aug 14, 2021, 07:48 AM IST
  • सीता माता ने लंका में तिनके की ओट से रावण से की थी बात
  • एक बार सिर्फ नजर भर देख लेने से राख हो गया था तिनका
Sri Ram Katha: सीता माता ने क्यों ली थी तिनके की ओट, जानिए रामायण की ये रहस्य भरी कहानी

नई दिल्लीः Sri Ram Katha: राम चरित मानस में एक घास के तिनके का जिक्र है. जिसका रहस्य कोई नहीं जानता है. रावण जब मां सीता जी का हरण करके लंका ले गया तब लंका में सीता जी अशोक वृक्ष के नीचे बैठी थीं. रावण बार बार आकर मां सीता जी को धमकाता था, लेकिन मां सीता जी कुछ नहीं बोलती थी. रावण बोला मैं तुमसे सीधे सीधे संवाद करता हूं लेकिन तुम कैसी नारी हो कि मेरे आते ही घास का तिनका उठाकर उसे ही घूर-घूर कर देखने लगती हो, क्या घास का तिनका तुम्हें राम से भी ज्यादा प्यारा है?

विवाह के ठीक बाद हुआ था ऐसा
रावण के इस प्रश्न को सुनकर भी मां सीता बिल्कुल भी विचलित नहीं हुईं. इसके पीछे था एक वचन का रहस्य जो मां सीता ने दशरथ जी को दिया था. जब श्री राम जी का विवाह मां सीता जी के साथ हुआ, तब सीता जी का बड़े आदर सत्कार के साथ गृह प्रवेश भी हुआ. बहुत उत्सव मनाया गया.

प्रथानुसार नव वधू विवाह पश्चात जब ससुराल आती है तो उसके हाथ से कुछ मीठा पकवान बनवाया जाता है, ताकि जीवन भर घर पर मिठास बनी रहे इसलिए मां सीता जी ने उस दिन अपने हाथों से घर पर खीर बनाई और समस्त परिवार, राजा दशरथ एवं तीनों रानियों सहित चारों भाईयों और ऋषि संत भी भोजन पर आमंत्रित थे.

खीर में पड़ राख का तिनका
माँ सीता ने सभी को खीर परोसना शुरू किया, और भोजन शुरू होने ही वाला था की जोर से एक हवा का झोका आया. सभी ने अपनी अपनी पत्तलें सम्भाली, सीता जी बड़े गौर से सब देख रही थी. ठीक उसी समय राजा दशरथ जी की खीर पर एक छोटा सा घास का तिनका गिर गया जिसे मां सीता जी ने देख लिया. लेकिन अब खीर मे हाथ कैसे डालें ये प्रश्न आ गया. मां सीता जी ने दूर से ही उस तिनके को घूर कर देखा वो जल कर राख की एक छोटी सी बिंदु बनकर रह गया. सीता जी ने सोचा 'अच्छा हुआ किसी ने नहीं देखा'.

राजा दशरथ माँ सीता जी के इस चमत्कार को देख रहे थे. फिर भी दशरथ जी चुप रहे और अपने कक्ष पहुचकर माँ सीता जी को बुलवाया. फिर उन्होंने सीताजी जे कहा कि मैंने आज भोजन के समय आप के चमत्कार को देख लिया था. आप साक्षात जगत जननी स्वरूपा हैं, लेकिन एक बात आप मेरी जरूर याद रखना.

आपने जिस नजर से आज उस तिनके को देखा था उस नजर से आप अपने शत्रु को भी कभी मत देखना. इसीलिए माँ सीता जी के सामने जब भी रावण आता था तो वो उस घास के तिनके को उठाकर राजा दशरथ जी की बात याद कर लेती थी.

मानस में उल्लेख है-
तृण धर ओट कहत वैदेही, सुमिरि अवधपति परम् सनेही.
यही है उस तिनके का रहस्य ! इसलिये माता सीता जी चाहती तो रावण को उस जगह पर ही राख कर सकती थीं, लेकिन राजा दशरथ जी को दिये वचन एवं भगवान श्रीराम को रावण-वध का श्रेय दिलाने हेतु वे शांत रहीं. 

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