नई दिल्लीः story on asadh purnima : आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा की तिथि को महामुनि व्यास के जन्म दिन और गुरु के महत्व को समझाने वाले पर्व गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं. लेकिन सनातन परंपरा के इतर भी इस तिथि का विशेष महत्व है. दरअसल, यह दिन बौद्ध मत के अनुयायियों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है.
इसिलए है सारनाथ की महिमा
भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना पहला उपदेश आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के ही दिन दिया था. इस दिन को धम्म चक्र प्रवर्तन के रूप में जाना जाता है. अपने पहले उपदेश को बुद्ध ने "धर्म चक्र प्रवर्तन" ही बताया था.
इसी उपदेश के कारण उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित सारनाथ की महिमा बढ़ जाती है. क्योंकि यह वह जगह है, जहां से जीवन के वास्तविक ज्ञान का सूत्र निकला और जिसने पूरी दुनिया को रौशन किया.
सारंगनाथ से बना सारनाथ
काशी से सात मील आगे पूर्व-उत्तर की दिशा में बढ़ें तो पैरों के नीचे आने वाली जमीन कहलाती है सारनाथ. व्यापक तौर पर भले ही यह बौद्ध स्थली के तौर पर जानी जाती है, लेकिन प्राचीन काल से ही यह महादेव शिव की ही भूमि है. जिसे उनके नाम पर सारंगनाथ कहते हैं. यहां पर सारंगनाथ महादेव का मन्दिर है जहां सावन के महीने में बहुत बड़ा मेला लगता है. यह जैन तीर्थ है और जैन ग्रन्थों में इसे सिंहपुर बताया गया है.
सारनाथ में आज आप अशोक का चतुर्मुख सिंहस्तम्भ, भगवान बुद्ध का मन्दिर, धमेख स्तूप, चौखन्डी स्तूप, राजकीय संग्राहलय, जैन मन्दिर, चीनी मन्दिर, मूलंगधकुटी और नवीन विहार देख सकते हैं.
1905 में पुरातत्त्व विभाग ने की थी खुदाई
आततायी आक्रमण के दौर की बुरी खरोंच सारनाथ पर लगी है. मुहम्मद गोरी ने इस पर आक्रमण किया और इसका नामो-निशां मिटा देने की भरपूर कोशिश की, लेकिन सारनाथ नष्ट हो जाने के बाद भी पनपता रहा. सन 1905 में पुरातत्त्व विभाग ने यहां खुदाई की थी. इसके बाद से सारनाथ का ऐतिहासिक महत्व पूरी तरह सामने आया.
भगवान शिव की ससुराल
वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन से महज 8 किमी की दूरी पर स्थित है सारंगनाथ महादेव मंदिर. यहां एक साथ दो शिवलिंगों की पूजा होती है. वारणसी-छपरा रेलखंड पर स्थित सारनाथ रेलवे स्टेशन के पास स्थित इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहा भगवान शिव के साले सारंग ऋषि और बाबा विश्वनाथ के एक साथ दर्शन होते हैं. पंडित विद्वान लोग सारनाथ को भगवान शिव की ससुराल भी मानते हैं.
दो शिवलिंगों वाला अनोखा मंदिर
सारनाथ के मुख्य स्मारकों से एक किमी की दूरी पर दक्षिण में स्थि है, सारंगनाथ महादेव का प्राचीन मंदिर. प्राकृतिक सुंदरता और छटा लिए यह मंदिर ३० फुट ऊंचे एक टीले पर स्थित है. मंदिर के गर्भगृह में एक नहीं बल्कि दो शिवलिंग एक साथ स्थापित हैं. दावा किया जाता है कि दो शिवलिंगों वाला यह शिवालय उत्तर भारत का एक मात्र शिवाला है. इनमें एक शिवलिंग खुद महादेव हैं और दूसरा शिवलिंग सारंग ऋषि को माना जाता है. इसके पीछे गहन तर्क है कि जो है वह शिव ही है, जो नहीं भी है वह ही शिव ही हैं.
देवी पार्वती के भाई से जुड़ी कथा
मंदिर हो, पुराना हो और दंत कथा की बात न हो तो यह हो ही नहीं सकता है. किवदंतियां है कि भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती से हो जाने के बाद उनके भाइयों को चिंता हुई कि शिव तो औघड़ हैं और उनकी बहन हिमालय के इतने शीत क्षेत्र में कैसे रह पाएगी. इसलिए उनके एक भाई सारंग नाथ खुद से बहुत सारा धन और स्वर्ण लेकर शिव-पार्वती से मिलने चले. पता चला कि दोनों ही लोग काशी में हैं तो सारंगनाथ उधर की ओर चले.
इसलिए स्थापित हैं दो शिवलिंग
वह काशी से कुछ दूर सारनाथ (पुराणों में सारनाथ के लिए मृगदाव शब्द आया है ) पहुंचे तो उन्होंने देखा कि पूरी काशी ही सोने की तरह चमक रही है. यह देख उन्हें अपनी गलती का बोध हुआ और ग्लानि में वह वहीं तपस्या में लीन हो गए. जानकारी होने पर शिव ही खुद सारनाथ पहुंचे और तपस्यारत सारंगनाथ को चिंता मुक्त किया.
उन्होंने कहा कि हर भाई अपनी बहन की सुख-समृद्धि चाहता है. भाई होने के नाते तुमने भी अपना कर्तव्य निभाया. वर मांगों. तब सारंगनाथ ने महादेव से कहा कि आप हमारे साथ सदैव रहें. इस तरह दो शिवलिंगों के रूप में यहां महादेव की पूजा होती है.
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जैन धर्म में भी है महत्व
बौद्ध धर्म के अलावा सारनाथ को जैन धर्म और हिन्दू धर्म में भी महत्व प्राप्त है. जैन ग्रन्थों में इसे सिंहपुर कहा गया है और ऐसा माना जाता है कि जैन धर्म के ग्यारहवें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का जन्म यहां से थोड़ी दूर पर हुआ था.
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