रांची: झारखंड का हाल कहीं हरियाणा सा तो नहीं होगा, यह सवाल शुरुआती रूझान देखने के बाद लगभग सभी के मन में आ ही रहा होगा. स्थितियां कुछ यूं है कि भाजपा फिलहाल 33 सीटों पर आगे चल रही है, वहीं झामुमो लगभग 34 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है. लेकिन वह पार्टी जिसने सबकी नजरें अपनी ओर खींच ली है, वह कोई और नहीं भाजपा की पुरानी सहयोगी दल आजसू है. सुदेश महतो के नेतृत्व वाली आजसू तकरीबन 7 सीटों पर शुरू से ही बढ़त बनाए हुए है.
भाजपा ने जारी रखी है बाबूलाल मरांडी से बातचीत
लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या आजसू भाजपा का साथ दोबारा देगी ? क्या सुदेश महतो भगवा झंडे का साथ दे कर झारखंड में रघुबर दास के नेतृत्व में सरकार बनाएंगे ? यह कुछ सवाल हैं जो फिलहाल सभी के मन में छाया हुआ है. लेकिन भाजपा आलाकमान जो एक तरफ रूझानों पर नजर गड़ाए हुए है और दूसरी तरफ अपना किला बचाने की तैयारी में है, उसने बातचीत और मांडवाली का सिलसिला शुरु कर दिया है.
सूत्रों की मानें तो भाजपा ने झाविमो के बाबूलाल मरांडी से पहले ही संपर्क साध लिया है. कहा जा रहा है कि हंग असेंबली की तस्वीर आते ही भाजपा की हाईलेवल ऑथरिटी इस बात पर जोड़-घटाव कर रही है कि आखिर किसे क्या ऑफर किया जाए ?
क्या गिले शिकवे भुला कर भाजपा का फिर से साथ देगी आजसू ?
भाजपा उधर अपनी पुरानी सहयोगी दल आजसू के पास भी पहुंचने की तैयारी में है. सुदेश महतो जिन्होंने विधानसभा चुनाव के दौरान एक भाजपा से और ज्यादा सीटें देने की मिन्नतें की थी, अब वह मतगणना के बाद भाजपा का साथ निभाते हैं या नहीं, यह देखना दिलचस्प होगा.
फिलहाल तस्वीर कुछ ऐसी है कि किसी भी पार्टी या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिलता नहीं दिख रहा है. त्रिशंकु विधानसभा के आसार दिखने लगे हैं. झारखंड में सरकार बनाने के लिए 41 का जादुई आंकड़ा पार करना होगा. अब देखना यह है कि कौन सी पार्टी किसके साथ मिल कर सरकार बनाने की नई कहानी लिखती है.
कुछ यूं होंगे सरकार बनाने के समीकरण
फिलहाल भाजपा 33 सीटों पर आगे चल रही है और झामुमो 34 सीटों पर. वहीं आजसू अब 6 सीटों पर आगे है और झाविमो 5 सीटों पर. सरकार बनाने के लिए भाजपा को आजसू से 6 सीट तो चाहिए ही चाहिए लेकिन इसके अलावा भी उन्हें कम से कम दो सीटों की और जरूरत पड़ेगी. अगर भाजपा और आजसू साथ भी आ जाएं तो यह 33+6=39 होता है. इसका मतलब है कि भाजपा को 2 सीटों के लिए या तो निर्दलीय या अन्य पार्टियों का सहयोग लेना होगा या फिर झाविमो के बाबूलाल मरांडी ही भाजपा की सरकार बनाने की कुंजी होंगे.
खैर, रूझानों के बाद से ही भाजपा लगातार अपने पुराने सहयोगी दलों से संपर्क साधे हुए है. पार्टी किसी भी सूरत में सरकार खोने का रिस्क नहीं उठा सकती .