महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना का कमबैक! इस बार की दिवाली, NDA वाली

महाराष्ट्र के महाभारत के नतीजे आने के बाद अब भाजपा और शिवसेना के कार्यकर्ता खुशी से झूम रहे हैं. न्यू इंडिया का ये वो नया जनादेश है, जिसके दम पर अब महाराष्ट्र में फिर से डबल इंजन की सरकार चलेगी. इस बार प्रदेश में भाजपा दिवाली मनाने के लिए रही है.

Last Updated : Oct 24, 2019, 07:26 PM IST
    • महाराष्ट्र में शिवसेना बड़े भाई की भूमिका में नहीं रही
    • 1989 में बीजेपी और शिवसेना का पहली बार गठबंधन हुआ था
महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना का कमबैक! इस बार की दिवाली, NDA वाली

नई दिल्ली: पीएम नरेंद्र और सीएम देवेंद्र की इस जोड़ी पर महाराष्ट्र की आम जनता ने पूरा भरोसा जताया है. वादों पर यकीन किया है, तभी तो बहुमत के वोट से झोली भर दी है. जनादेश से ये साबित हो गया है कि आखिर देवेंद्र फड़नवीस पर मोदी और शाह को इतना भरोसा क्यों था?

भाजपा-शिवसेना की जीत के मायने

भाजपा की इस जीत से राज्य की राजनीति में नए बदलाव की आहट दस्तक दे रही है. अब महाराष्ट्र में शिवसेना बड़े भाई की भूमिका में नहीं रही. ऐलानिया तौर पर बड़ा भाई बीजेपी बन गई है. अब ये नया दौर है, शिवसेना को ये सच कबूल करना पड़ेगा.

जब पहली बार एक हुई भाजपा-शिवसेना

शिवसेना, बीजेपी की सबसे पुरानी सहयोगी है. 1989 में बीजेपी और शिवसेना का पहली बार गठबंधन हुआ था. इसके बाद दोनों दलों का गठबंधन पूरे 25 साल तक अटूट रहा लेकिन 2014 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले ये टूट गया. तब शिवसेना को ये मंजूर नहीं था कि बीजेपी उसके बड़े भाई के ओहदे से कोई छेड़छाड़ करे. 

2014 में शिवसेना को सदमा

2014 में भाजपा सीट बंटवारे में तब शिवसेना से ज्यादा सीटें चाहती थी. लेकिन बीजेपी इसके लिए तैयार नहीं थी. इससे नाराज शिवसेना ने पार्टी से गठबंधन तोड़ लिया था. और अकेले मैदान में उतरी लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजे से साफ हो गया कि अब महाराष्ट्र में भाजपा, शिवसेना से काफी आगे निकल गई है. बाद में शिवसेना ने फिर से बीजेपी से हाथ मिला लिया. और देवेंद्र फडणवीस राज्य के मुख्यमंत्री बने थे.

5 साल तक फड़नवीस को आलाकमान की तरफ से काम करने की खुली छूट मिली. और जब चुनाव का वक्त आया तो पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने फिर से देवेंद्र फडणवीस को आगे किया.

भाजपा का सटीक दांव

फडणवीस को फिर से आगे करने का बीजेपी का युवा दांव अगर सटीक बैठा है. तो इसके पीछे देवेंद्र फडणवीस की कड़ी मेहनत भी है. जिन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी कार्यकर्ताओं में नया जोश भरा. फडणवीस ने विपक्ष पर आक्रामक रहने का मंत्र दिया. और जनता को अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाने का मोर्चा खुद संभाल लिया. सत्ता विरोधी लहर की हर आशंका को खत्म करने के लिए फड़नवीस ने बड़ी रणनीति बनाई थी.

महाराष्ट्र में 'फडणवीस प्लान'

फडणवीस ने महाजनादेश यात्रा निकाली, जो 24 दिनों तक चली ये यात्रा 32 जिलों से होकर गुजरी. इस दौरान फडणवीस ने 4384 किलोमीटर का सफर तय किया. महाजनादेश यात्रा से लेकर चुनाव प्रचार के आखिरी दिन तक देवेंद्र फडणवीस ने कुल 225 जनसभाएं की. गृहमंत्री अमित शाह और पीएम मोदी के महाराष्ट्र में धुआंधार प्रचार किया. मोदी ने राज्य में कुल 9 चुनावी सभाएं की और अमित शाह ने कुल 10 सभाएं की.

प्रधानमंत्री मोदी ने महाराष्ट्र के विकास के साथ ही जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने और पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक के मुद्दे को भी उठाया था. इसका भी बड़ा असर हुआ.

महाराष्ट्र में मजबूत है एनसीपी

महाराष्ट्र में चुनावी नतीजे के बाद एनसीपी की भी हर तरफ चर्चा है. महाराष्ट्र में बीजेपी शिवसेना गठबंधन के बावजूद एनसीपी का प्रदर्शन पहले से मजबूत रहा है. ये बताता है कि शरद पवार का जादू अभी ढला नहीं है. पवार का करिश्मा कायम है. शरद पवार की पावर पॉलिटिक्स का दौर अभी खत्म नहीं हुआ है. ये साबित हो गया है कि पवार को आखिर मराठा क्षत्रप क्यों कहा जाता है? अपने गढ़ में एनसीपी का बेहतर प्रदर्शन ये बताने के काफी है कि अपने कोर वोटबैंक पर एनसीपी की पकड़ ढीली नहीं हुई है. एनसीपी ने कांग्रेस से ज्यादा सीटें हासिल की है.

कांग्रेस की खींचतान

विपक्षी गठबंधन में कल तक ज्यादा सीटों की वजह से कांग्रेस खुद को बड़ा भाई मानती थी. लेकिन अब ये तस्वीर बदल गई है. अब कांग्रेस छोटे भाई की भूमिका में होगी. तो ज्यादा सीटों की वजह से बड़े भाई का दर्जा शरद पवार की एनसीपी का होगा. महाराष्ट्र में सबसे बुरी हालत कांग्रेस की हुई है. चुनाव के दौरान पार्टी के भीतर सिर फुटौव्वल के हालात सामने आए और गुटबाजी चरम पर दिखी. प्रचार के दौरान राहुल गांधी सिर्फ दो सभाएं कर सबको हैरान कर गए. पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने महाराष्ट्र में कोई सभा नहीं की. प्रियंका गांधी का तय रोड शो तक बाद में कैंसल कर दिया गया, इससे लोग हैरान थे.

कांग्रेस का ऐसा हाल तब दिखा जबकि लोकसभा चुनाव में राज्य में कांग्रेस को सिर्फ 1 सीट मिली थी. मई से अक्टूबर तक पार्टी के पास 5 महीने का वक्त था. लेकिन इस दौरान पार्टी में सिर्फ खींचतान की खबरें ही सुर्खियों में रही. इसलिए कांग्रेस के इस खराब प्रदर्शन पर किसी को हैरानी नहीं है. इन सबके बावजूद भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने अपनी सरकार बचा ली है, जिससे प्रदेश में NDA की दिवाली मननी तय हो गई.

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