नई दिल्ली: महाराष्ट्र के सबसे बड़े सियासी सिंहासन पर आखिर कौन विराजमान होगा. इसे लेकर अभी तक संशय बरकरार है. कोई झुकने को तैयार नहीं है, शिवसेना और भाजपा दोनों तरफ से तलवार खिंची हुई है. न तो बीजेपी पीछे हटने को राजी है. सीएम बनने को आतुर शिवसेना बिना शर्त मानने को राजी नहीं है. दोनों में तोल मोल हो रहा है. लेकिन ताजा अपडेट के मुताबिक शिवसेना को अपनी हदें समझ आने लगी है.
हद में आई शिवसेना
राजनीति के रणक्षेत्र के मंझे हुए खिलाड़ी बीजेपी और शिवसेना दोनों ही पीछे हटने को तैयार नहीं है. एक दूसरे पर दबाव बनाने की कोशिश हो रही है. एक-दूसरे को साम, दाम, दंड, भेद से सहमत के लिए जद्दोजहद जारी है. इस बीच शिवसेना बैकफुट पर जाती दिख रही है. मुंबई में आज शिवसेना विधायक दल की बैठक हुई. इस बैठक से जो संकेत मिले उनसे लगा कि पार्टी ढाई साल सीएम बनने के अपने दावे से पीछे हट रही है. बैठक में विधायक दल का नेता चुना जाना था. सभी को उम्मीद थी कि पहली बार ठाकरे परिवार का कोई सदस्य चुनाव लड़ा और जीता है तो विधायक दल का नेता भी वही होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. खुद आदित्य ठाकरे ने ही एकनाथ शिन्दे के नाम का प्रस्ताव रखा जिस पर विधायकों की मोहर लगी और शिन्दे का शिवसेना की तरफ से नेता सदन बनना तय हो गया.
Eknath Shinde has been elected Shiv Sena's legislative party leader https://t.co/CbazTo45aN
— ANI (@ANI) October 31, 2019
कौन हैं एकनाथ शिंदे?
एकनाथ शिंदे इससे पहले भी पार्टी विधायक दल के नेता रह चुके हैं. साथ ही वह फडणवीस सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे हैं. शिंदे ठाणे के कोपरी-पंचपखाड़ी निर्वाचन क्षेत्र से विधायक बने हैं. विधानसभा क्षेत्र से वह लगातार तीन बार से विधायक हैं. 2004, 2009 और 2014 में शिवसेना के टिकट पर विधायक चुने गए थे.
कम नहीं हो रहे संजय राउत के तेवर
बैठक से बाहर निकले संजय राउत ने एक बार फिर अलग रास्ते पर चलने का ऐलान कर दिया. उन्होंने बयान दिया कि शिवसेना के सम्पर्क में हर पार्टी के विधायक हैं. यानि बीजेपी पर दबाव बनाने की एक और कोशिश हुई. शिवसेना राज्य में किसानों की मौत को लेकर राज्यपाल से भी मिलने जा रही है. ये कोशिश भी बीजेपी पर दबाव बनाने की ही है.
राउत ने कहा कि '105 विधायकों के समर्थन से अगर किसी को महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद मिलता है. तो मुझे एक बार संविधान की किताब देखनी पड़ेगी. देश में लोकतंत्र है, शिवसेना कोई बच्चा पार्टी नहीं है. हमारी 50 साल पुरानी पार्टी है. राजनीति में विकल्प सभी के खुले होते हैं. चुनाव नतीजे आने के बाद किसी की बुद्धि भ्रष्ट हो रही है तो विनाश काले है.'
उधर भाजपा ने अपना रुख साफ कर रखा है कि मुख्यमंत्री पद पर कोई समझौता नहीं होगा. ये बयान खुद देवेन्द्र फडणवीस ने दिया था. उन्होंने कहा था कि सरकार बीजेपी की बनेगी और पूरे 5 साल तक मुख्यमंत्री भी बीजेपी का ही रहेगा. भाजपा के समर्थन में एनडीए की दूसरी सहयोगी आरपीआई भी आ गई है. राम दास अठावले ने कहा कि एनडीए के सभी छोटे दल बीजेपी के पूरी तरह साथ हैं.
भाजपा के समर्थन में उतरे अठावले
आरपीआई अध्यक्ष रामदास अठावले ने कहा है कि 'भाजपा और शिवसेना को एक साथ आकर सरकार बनानी चाहिए. इस विवाद को खत्म करना चाहिए. शिवसेना को 15-16 तक मंत्रीपद मिल सकते हैं. इतने मंत्रीपद लेकर एडजस्टमेन्ट कर लेना चाहिए. ढाई साल का विषय ही नहीं है. देवेन्द्र फडणवीस का नाम एनाउंस हो चुका है.'
खुद शिवसेना भी जानती है कि उसे जो कुछ भी मिल सकता है बीजेपी के साथ ही मिल सकता है. कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन के साथ यदि शिवसेना गई तो थोड़ा बहुत ही हाथ लगेगा. इसलिए अभी अपनी तरफ से पार्टी पूरी कोशिश कर रही है. लेकिन इस रस्साकशी के बीच राज्य की जनता खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही है जिसका भविष्य अधर में लटका हुआ है. महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण से ग्रहण कब हटेगा इसके इंतजार में हर कोई है.