नई दिल्लीः दो दिन पहले जनननायक जनता पार्टी के दुष्यंत हरियाणा में अभिमन्यु बनते दिख रहे थे. भाजपा को सत्ता पाने के लिए बहुमत के जिस चक्रव्यूह को तोड़ना था उसे दुष्यंत ही बखूबी तोड़ सकते थे. भाजपा ने यह देखा, समझा और दुष्यंत से चक्रव्यूह तोड़वा ही लिया. अब जजपा और भाजपा हरियाणा में सरकार बनाएंगी. इसके मुताबिक मनोहर लाल एक बार फिर सीएम बनेंगे और दुष्यंत चौटाला की पार्टी जजपा के सामने उपमुख्यमंत्री पद का प्रस्ताव रखा गया. दो दिन में कैसे हुआ यह सब, यहां जानिए पूरी कहानी-
शुक्रवार रात हुआ फैसला
दिनभर के घटनाक्रम के बाद केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर रात में दुष्यंत चौटाला को लेकर अमित शाह के आवास पर पहुंचे. वहां अंदर अमित शाह के अलावा भाजपा के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल और भाजपा के हरियाणा प्रभारी डॉ. अनिल जैन और हरियाणा भाजपा के अध्यक्ष सुभाष बराला भी मौजूद थे. वहां दोनों दलों के बीच सरकार गठन को लेकर समझौते को अंतिम रूप दिया गया और इसके बाद अमित शाह ने समझौते का ऐलान किया. दुष्यंत चौटाला ने कहा कि हरियाणा में स्थिर सरकार के गठन के लिए जरूरी था कि भाजपा और जेजेपी साथ आएं. मैं इसके लिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा को धन्यवाद देता हूं. मेरी पार्टी ने निर्णय किया कि हरियाणा की बेहतरी व हित के लिए जरूरी है कि राज्य में स्थिर सरकार हो. इसी कारण दोनों दलों ने साथ मिलकर सरकार बनाने का फैसला किया है.
कुछ इस तरह भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने की हरियाणा में सरकार बनाने की घोषणा, यहां क्लिक करें
गोपाल कांडा के आने से बदला जजपा का खेल
गुरुवार रात हरियाणा लोकहित पार्टी के नेता और सिरसा से जीत दर्ज करने वाले विधायक गोपाल कांडा ने बीजेपी को समर्थन देने की बात कह दी. गोपाल कांडा ने दावा किया कि सभी निर्दलीय विधायकों ने बीजेपी को समर्थन दे दिया है. उन्होंने कहा, मेरे पिता 1926 से आरएसएस से जुड़े थे. इसी के साथ दादरी से विधायक सोमवीर सांगवान ने भी मीडिया से भाजपा को समर्थन देने की बात कही. सबसे जरूरी रहा चौटाला परिवार के ही निर्दलीय विधायक रानिया से जीते देवीलाल के पुत्र रणजीत सिंह का बयान, उन्होंने भी कहा कि मैंने खुले तौर पर बोला है कि मैं भारतीय जनता पार्टी को अपना समर्थन देता हूं. गोपाल कांडा इन विधायकों के समर्थन ने खेल बदल दिया. भाजपा इस समर्थन को चुपचाप स्वीकारती रही और चौटाला जो महज छह घंटे पहले किंगमेकर वाले खिताब से नवाजे जा रहे थे. वह इन पांसों को अपने खिलाफ पटलता देख रहे थे.
#WATCH Haryana Lokhit Party's Gopal Kanda,candidate from Sirsa assembly seat:All independent candidates have extended their unconditional support to BJP. My father was associated with RSS since 1926,fought 1st general elections of the country after independence on Jansangh ticket pic.twitter.com/FeS9c9Valq
रें— ANI (@ANI) October 25, 2019
लेकिन प्रभावित हुए दुष्यंत
गोपाल कांडा के समर्थन देने की बात से दुष्यंत पर असर पड़ा. शुक्रवार दोपहर दुष्यंत तिहाड़ में अपने पिता अजय चौटाला से मिलने पहुंचे. इसके बाद उन्होंने विधायकों के साथ बैठक की और फिर प्रेस कॉन्फ्रेंस कहा कि हम हरियाणा को आगे ले जाने, युवाओं को अधिकार दिलाने और अपराध को नियंत्रित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. जेजेपी विधायक दल की बैठक में दुष्यंत चौटाला को विधायक दल का नेता चुन लिया गया. उनसे पूछा गया कि गोपाल कांडा के समर्थन के बाद अब सत्ता की चाबी आपके हाथ से जा रही है तो चौटाला बोले, चाबी अब भी उनके हाथ में है. बीजेपी किसके साथ जाना चाहेगी. यह उनका संगठन तय करेगा.
बीजेपी के लिए भी बढ़ी मुश्किलें
गोपाल कांडा का नाम आने के बाद समय चक्र ने भाजपा को भी आइना दिखाना शुरू कर दिया. हुआ यह कि कांडा का नाम साल 2012 के दौर में एक महिला की आत्महत्या के मामले में सुर्खियों में आया था. गीतिका नाम की यह महिला गोपाल कांडा की विमानन कंपनी में काम करती थी. इस तरह गोपाल कांडा का समर्थन भाजपा के लिए मुश्किलें पैदा करने वाला था. विपक्षी दल यह कहकर विरोध जताने लगे कि पार्टी बनाने के लिए भाजपा किसी भी हद तक जा सकती है. दागी और बागी से भी हाथ मिला सकती है. शुक्रवार शाम तक बेटी बचाओ के नारे को दिखावा बताया जाने लगा. सरकार बनाने के साथ इस तरह का दबाव भाजपा के लिए ठीक नहीं था.
ज़ी हिंदुस्तान ने पहले ही की थी भविष्यवाणी
दुष्यंत चौटाला सिर्फ भारतीय जनता पार्टी के साथ ही जा सकते हैं. इस बात का अंदाजा ज़ी हिंदुस्तान को पहले से ही था (हायपरलिंक). क्योंकि पारिवारिक संघर्ष से जूझ रहे दुष्यंत चौटाला को जाट राजनीति के साथ अपने परिवार के दिग्गजों को भी दम दिखाना था. इसके लिए उन्हें लंबे समय तक कुर्सी की जरूरत है. इसीलिए उन्होंने भाजपा के उप मुख्यमंत्री की कुर्सी को स्वीकार किया.
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हालांकि पहले खबर आई थी कि उन्हें कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद का ऑफर है. लेकिन कांग्रेस के इतिहास को देखते हुए यह स्पष्ट है कि अगर दुष्यंत यह ऑफर स्वीकार भी कर लेते तो उनका कार्यकाल बहुत लंबा नहीं होता. इसलिए महज 31 साल की उम्र में हरियाणा की राजनीति में धमाकेदार शुरुआत करने वाले दुष्यंत ने परिपक्व फैसला लेते हुए भाजपा के साथजाने का फैसला किया