महाराष्ट्र-हरियाणा में हारी कांग्रेस तो ठीकरा किसके सिर फोड़ेगी

हरियाणा-महाराष्ट्र के नतीजे कल आने वाले हैं. हार-जीत से अलग चुनावी पंडितों की नजर कांग्रेस के प्रदर्शन पर है. इसके साथ ही यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि इन दोनों राज्यों अगर कांग्रेस के हिस्से हार ही आती है तो इस बार इसकी जिम्मेदारी लेने कौन आगे आएगा.

Last Updated : Oct 23, 2019, 02:22 PM IST
    • राहुल ने दोनों राज्यों में महज सात रैलियां कीं
    • कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक भी रैली नहीं की
महाराष्ट्र-हरियाणा में हारी कांग्रेस तो ठीकरा किसके सिर फोड़ेगी

नई दिल्लीः हरियाणा और महाराष्ट्र में 21 अक्टूबर को विधानसभा के लिए हुए मतदान के परिणाम कल (24 अक्टूबर) आने वाले हैं. जनता का जनादेश मिलने में अब सिर्फ एक ही दिन बाकी है और सभी पार्टियां इसका इंतजार कर रही हैं, लेकिन देश की सबसे पुरानी पार्टी में क्या चल रहा है. वह हार या जीत पर कैसी प्रतिक्रिया देने के बारे में सोच रही है. कांग्रेस के पास मौका था कि वह पिछले कई चुनावों मे बिगड़ी स्थिति को सुधार सके, लेकिन विधानसभा चुनावों में ऐसा होता नजर नहीं आया. ऐसे में कांग्रेस अगर चुनाव हारती है तो वह अपना ठीकरा किसके सिर फोड़ेगी,

जीत का सेहरा गांधी परिवार के सिर, हार के कांटे लेगा कौन
कांग्रेस में अभी तक तो यही होता है कि पार्टी अगर कहीं जीतती है तो इसका सारा श्रेय गांधी परिवार को ही दिया जाता है. इसमें भी कई बार राहुल गांधी को एक तरीके से प्रोजेक्ट किया जाता है कि यह जीत उनकी खास रणनीतियों की वजह से
मिली, हालांकि अभी तक कोई समझ नहीं पाया है कि राहुल गांधी जीत के लिए कौन सी रणनीति का प्रयोग करते हैं. किसी चुनाव में हारने के बाद उनका नाम नहीं लिया जाता है. 2014 के लोकसभा चुनाव, उसके तुरंत बाद गुजरात-हिमाचल के विधानसभा चुनाव में जिस तरह कांग्रेस के हाथ हार आई उस दौरान इस हार को स्वीकारने कोई भी सामने नहीं आया. शीर्ष नेतृत्व भी इसे लगातार पार्टी की हार बताकर पल्ला झाड़ता रहा. इसके बाद मध्य प्रदेश, राजस्थान में कांग्रेस को जीत मिली तो इसे उसी पुराने ढर्रे पर राहुल गांधी की नीतियों की जीत बता दिया गया.

हरियाणा-महाराष्ट्र में हल्की ही रही तैयारी
चुनावी गहमा-गहमी पर नजर डालें तो कई बार ऐसा लगा कि कांग्रेस पहले ही अपनी हार मानकर बैठी है. हरियाणा में वह जमीन पर प्रचार करती नहीं दिखी. बल्कि उल्टा यह हुआ कि चुनाव की तारीख सामने आते ही राहुल गांधी विदेश यात्रा पर चले गए. यानी जिस समय उन्हें पार्टी के साथ एकजुट होकर जी-जान से जुट जाना चाहिए थे और नए चुनावी प्लान बनाने चाहिए थे तो वह पूरी पार्टी को ही अकेला छोड़कर चले गए. कभी उनके बैंकाक जाने की खबर आती रही, तो कभी कंबोडिया. लेकिन लब्बोलुआब यह है कि वह इस दौरान पार्टी के साथ नहीं थे. जिस दौरान उन्हें दोनों राज्यों में जाकर कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाना था, लोगों से अधिक से अधिक मिलना था और नए सिरे पार्टी में मजबूती भरनी थी वह नदारद थे. इसके साथ ही कांग्रेस के अन्य शीर्ष नेतृत्व के लोग भी कहीं नहीं दिखे.

रैलियां भी कम हुईं, सुस्त रहा प्रचार


अब हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा-कांग्रेस की चुनावी रैलियों की बात करें तो राहुल गांधी ने दोनों राज्यों में महज सात रैलियां की. पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक भी रैली नहीं की. हरियाणा में वह एक रैली करने वाली थीं, लेकिन एन मौके पर वह भी रद्द हो गई जिसे बाद में संबोधित करने राहुल गांधी ही पहुंचे. इसके उलट भाजपा को देखें तो अकेले प्रधानमंत्री मोदी ने हरियाणा में 7 रैलियां और महाराष्ट्र में 10 रैलियां कीं. अमित शाह और राजनाथ ने भी मिलकर यहां 15 चुनावी सभाओं को संबोधित किया. महाराष्ट्र में भी अमित शाह ने 30 रैलियां की और निवर्तमान सीएम देवेंद्र फडणवीस भी लगातार ग्राउंड पर नजर आते रहे. शिवसेना के आदित्य ठाकरे भी जनसभाओं में नजर आते रहे, कांग्रेस की रैलियों के मौके कम ही दिखे. कई बार कांग्रेस में नेता व चेहरा न होने की बात कही जाती है, लेकिन यह पूरा सच भी नहीं है. बदलते समय की कांग्रेस में प्रियंका वाड्रा हैं, सचिन पायलट युवा चेहरे के तौर पर जाने जाते हैं, ज्योतिरादित्य सिंधिया भी ऐसे लोगों में शुमार हैं जिनकी सुनी जाती है, लेकिन अपनी पार्टी के लिए वोट करने की अपील करते ये चेहरे नहीं दिखे. सोनियां गांधी इस पूरे दौरान क्यों नीरस बनीं रहीं यह सवाल अपना जवाब नहीं खोज पा रहा है.

ईवीएम पर रोने का सिलसिला हुआ शुरू


कांग्रेस अभी किसी व्यक्ति को हार की जिम्मेदारी के लिए तो नहीं चुन सकी है, लेकिन उसने ईवीएम से छेड़छाड़ की आशंका का पुराना रोना रोने की शुरुआत कर दी है. महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष और मौजूदा विधायक बालासाहेब थारोट ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर ईवीएम में छेड़छाड़ किए जाने की आशंका जताई है. उन्होंने चुनाव आयोग से मांग की है कि अगर किसी ईवीएम में संदेह की आशंका होती है तो मत गणना के समय उस पंक्ति के ईवीएम की गणना चार बार की जाए. यानी कि कांग्रेस ने यह तय कर दिया है कि महाराष्ट्र में हार मिलने के बाद वह पहला बलि का बकरा ईवीएम को बनाने वाली है.

जीत होती है तो जादू माना जाए

इन सबके बावजूद कांग्रेस जीत जाती है, या उसके कई प्रत्याशी विजय का ताज पहनते हैं तो इसे जादू ही माना जाएगा. साथ ही यह भी स्थापित होगा कि अभी भी कई मतदाता ऐसे हैं जो जन्मजात कांग्रेसी हैं और इस प्राचीन पार्टी के साथ उनकी भावनाएं जुड़ी हैं. इसके बाद कांग्रेस अंतरिम अध्यक्ष, पार्टी महासचिव या राहुल गांधी किसी को भी जीत का शुभंकर बना सकती है. लेकिन अगर हार ही होती है तो पार्टी को इसके जिम्मेदार का नाम सोच लेना चाहिए, वह कौन होगा. अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रियंका वाड्रा, राहुल गांधी या फिर तीनों.

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