रांची: पिछली बार बहुमत से सत्ता में आई भाजपा जहां एक बार फिर किले पर कब्जा जमाने की जद्दोजहद में लगी हुई है. वहीं विपक्षी दलों में फिलहाल तो सामंजस्य बिठाकर चुनाव में उतरने की ही होड़ है. झारखंड मुक्ति मोर्चा, झारखंड विकास मोर्चा और ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन जैसे क्षेत्रीय दल किसी न किसी बड़ी पार्टी का दामन थाम चुनावी भंवर में गोता लगाने के फिराक में है.
इस चुनाव में जदयू पर होंगी सबकी नजरें
झारखंड के इसबार के चुनावी मैदान में सबकी नजरें जदयू पर गड़ी होगी जो भाजपा से अलग अपनी दावेदारी पेश करने वाली है. जदयू का कहना है कि वह झारखंड में भाजपा के अलावा किसी भी मौजूदा पार्टी से गठबंधन को तैयार है. दरअसल, जदयू राष्ट्रीय दल का दर्जा पाने की फिराक में लगी हुई है. इस रणनीति के तहत जदयू उत्तर-पूर्वी राज्यों में भी अपने उम्मीदवार उतार चुकी है. फिर दिल्ली में चुनावी रण में शामिल होने की घोषणा कर चुकी है और अब झारखंड में भी दांव खेलने को तैयार है.
जदयू की कुछ समस्याएं जरूर हो सकती है लेकिन पार्टी को झारखंड में उतरने के फायदे ही ज्यादा होंगे. इसके पीछे एक तर्क है जो कहता है कि जदयू के पास इस चुनाव में कुछ खोने को नहीं है. क्योंकि पार्टी की 2014 में कोई भी भूमिका नहीं रही है. इस विधानसभा चुनाव में जदयू झारखंड के कुर्मी वोटरों पर ज्यादा फोकस कर उन्हें अपने पाले में करने की फिराक में है. पार्टी को इस बात का अंदाजा है कि झारखंड में वोट प्रतिशत एक बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं, जदयू को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने में.
गठबंधन के फिराक में हैं तमाम पार्टियां
अब अन्य विपक्षी दलों के चुनावी मूड और दांवपेंच भी कुछ गठबंधन करने वाले ही नजर आ रहे हैं. AJSU पिछली बार की तरह इस बार भी भाजपा के साथ चुनाव में उतरेगी की नहीं, इसकी आधिकारिक घोषणा फिलहाल नहीं हुई है. वहीं झारखंड में अपनी राजनीतिक जमीन ढ़ूंढ़ रही कांग्रेस को भी गठबंधन के लिए किसी क्षेत्रीय दल की तलाश है. अब यह तलाश झारखंड मुक्ति मोर्चा पर आ कर थमती है या झारखंड विकास मोर्चा पर, इसकी कोई खबर किसी राजनीतिक गलियारों से पहुंच नहीं सकी है. लेकिन यह जरूर कहा जा रहा है कि कांग्रेस को किसी साथी की सख्त जरूरत महसूस होने लगी है और ऐसे में वह फिलहाल झामुमो के दर पर गठबंधन की आस लगाए बैठी है. शायद झामुमो प्रमुख हेमंत सोरेन कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ने का मन बना भी लें, बावजूद इसके सियासी गलियारों में जो चर्चाएं हैं, वह कांग्रेस और झामुमो दोनों के लिए अच्छी खबर तो बिल्कुल नहीं.
कांग्रेस और झामुमो मिलकर भी भाजपा के बराबर नहीं
दरअसल, हेमंत सोरेन विपक्ष के नेता हैं. पिछली बार उनकी पार्टी को 19 सीटें मिली थी और 20.43 फीसदी मतों से संतोष करना पड़ा था. जबकि कांग्रेस को 10.46 फीसदी मत प्राप्त हुए थे और पार्टी 6 सीटें अपने पाले में कर पाने में सफल हो पाई थी. दिलचस्प बात यह है कि दोनों दलों के साथ आ जाने के बाद वोट प्रतिशत और सीटों को जोड़ दिया जाए तो भी भाजपा के 37 सीट और 31.26 फीसदी से ज्यादा नहीं हो पाता.
कांग्रेस का इतना बुरा हाल तो तब भी नहीं था कि जितना अब है.वहीं झामुमो के पास ऐसा कोई मुद्दा या चुनावी एजेंडा रह नहीं गया, जिससे वह भाजपा को घेर सकने में कामयाब हो सके. ऐसे में दोनों ही विपक्षी पार्टियों का मेल-मिलाप एक रश्म अदायगी से ज्यादा कुछ नहीं. खैर यह तो तब की बात है जब प्रदेश में लेफ्टिस्ट पार्टी झामुमो और लिबरल पार्टी कांग्रेस एक साथ चुनावी कंटेस्ट में नजर आएं.
कांग्रेस और झामुमो में नहीं है सबकुछ ठीक
पिछले दिनों हेमंत सोरेन ने यह भी कहा कि कांग्रेस की ओर से कोई प्रयास गठबंधन के लिए नहीं किए गए हैं. पार्टी तब ही कुछ बात आगे बढ़ाएगी जब प्रस्ताव कांग्रेस की ओर से आए. कांग्रेस का बुरा वक्त इस कद्र हावी है कि पार्टी को फिलहाल प्रदेश अध्यक्ष तक नहीं मिल सका है. ऐसे में हेमंत सोरेन का कहना सच ही है कि पार्टी किसी बड़े नेता को बातचीत के लिए भेजे. विपक्षी दलों में कई पूर्व सीएम मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी ठोंकने को बेचैन हैं. वहीं दूसरी ओर नए-नवेले और झारखंड के पहले ऐसे मुख्यमंत्री रघुवर दास जिन्होंने पांच सालों का अपना कार्यकाल पूरा किया, उन्होंने विपक्ष के सामने उतना कुछ छोड़ा नहीं जिसपर चुनावी एजेंडे बना चुनाव में उतरा जा सके. खैर, यह तो पार्टियों से जुड़ी गहमागहमी की ही बातें हैं, अभी चुनाव का माहौल शुरू ही हुआ है. इस दौरान कई दांवपेंच, कई रणनीतियां ऐसी होंगी जो चुनाव में सबको झटका भी दे सकती है.
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