मुंबईः 21 अक्टूबर को हुए मतदान के बाद आज मतगणना का परिणाम आ चुका है. इसी के साथ एक बार फिर भाजपा महाराष्ट्र विधानसभा में सरकार बनाने के लिए तैयार है. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में जनादेश ने एक बार फिर यह बता दिया है कि मोदी लहर और विपक्षी दलों पर भाजपा का कहर अभी कम नहीं हुआ है. हालांकि इस जीत के लिए भाजपा भी पहले से आश्वस्त थी. लिहाजा मतगणना की सुबह से प्रदेश भाजपा कार्यालय पर उत्साह की लहर दिख रही थी. कार्यालय पूरी तरह सजा हुआ था और वहां जीत की खुशी में बांटे जाने के लिए लड्डू मंगा लिए गए थे.
Haryana CM ML Khattar (in file pic) to hold a meeting with BJP Working President JP Nadda and party's Haryana In-charge Anil Jain today. #HaryanaElections2019 pic.twitter.com/LINtKbc4bv
— ANI (@ANI) October 25, 2019
ऑफिस के अंदर लड्डू तो तैयार था ही, बाहर से भी पूरा दफ्तर सजाया गया था
Mumbai: BJP state office decorated ahead of counting of votes for #MaharashtraAssemblyPolls pic.twitter.com/WbVuWwy92j
— ANI (@ANI) October 24, 2019
आइए जानते हैं वे कारण जिन्होंने भाजपा की जीत पक्की.
चुनाव प्रचार और रैलियां
भाजपा शुरू से प्रदेश में मजबूत रही है और चुनाव की घोषणा होते ही कार्यकर्ताओं के साथ जमीनी स्तर पर तैयारी में जुट गई थी. इसके लिए पार्टी ने एक नीति के तहत प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में महत्वपूर्ण रैलियां कीं. इस दौरान स्थानीय उम्मीदवार के साथ शीर्ष नेतृत्व भी प्रचार के लिए उतरा, जिनमें प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, राजनाथ सिंह, निवर्तमान मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस शामिल रहे. गृहमंत्री और राजनाथ ने मिलकर महाराष्ट्र में 30 के करीब रैलियां की. पीएम मोदी ने अकेले महाराष्ट्र मे 10 रैलियां कीं. इसका जनता पर व्यापक असर पड़ा. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व प्रचार में अधिक नजर नहीं आया. उनकी रैलियों की संख्या भी भाजपा के सामने कम रहीं. सुस्त चुनाव प्रचार ने एक बार फिर कांग्रेस को हार के रास्ते पर पहुंचा दिया. शिवसेना की भी रैलियां मराठी मानुष के अधिक लुभा नहीं पाईं.
राष्ट्रवाद के मुद्दे ने फिर मारी बाजी
भाजपा इस चुनाव में भी राष्ट्रवाद के मुद्दे को कस कर पकड़े रही और इसी लाइन के आसपास अपनी नीतियों को प्रचारित किया. दरअसल कांग्रेस में अब जरूरी वाकपटुता की है, जबकि भाजपा को सही मौके पर बात करना और करारी चोट करना अच्छी तरह आता है. आर्टिकल 370 के मामले को ही देखें तो शिवसेना ने एनडीए गठबंधन के नाते ही सही इसका समर्थन तो कर दिया, लेकिन कांग्रेसी इसका सही विरोध भी नहीं कर पाए. बल्कि उनका यह राग पार्टी के लिए ही भारी पड़ गया. पीमए मोदी ने एक रैली में खुलकर कहा कि हमें 370 पर कांग्रेस का विरोध स्वीकार है, लेकिन पार्टी दमखम से कहे कि वह जब सत्ता में लौटेगी तो इसे फिर से लागू करेगी.
संकल्प पत्र और शपथनामा में भी खासा अंतर रहा
भाजपा के मैनिफेस्टो संकल्पपत्र और कांग्रेस-एनसीपी के संयुक्त मैनिफेस्टो शपथनामा में खासा अंतर रहा. भाजपा ने जहां सबसे बड़े मुद्दे सूखे के हल के बारे में ठोस तरीके से रखी वहीं कांग्रेस के मैनिफेस्टो में इस मुद्दे से जुड़ा प्लान नहीं था. हालांकि उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में मेडिकल कॉलेज खोलने का दावा किया और रोजगार के अवसर पर बात की, लेकिन भाजपा ने युवा होते महाराष्ट्र की नब्ज पकड़ी और इंटरनेट से जोड़ने का वादा किया. बदलते भारत के ऐसे मुद्दों से कांग्रेस व अन्य पार्टियां अभी अछूती रही हैं, जिसका असर चुनाव के परिणाम में दिख रहा है.