नई दिल्ली: यूपी की सत्ता में एक बार फिर बीजेपी की वापसी हो चुकी है, बतौर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की दोबारा ताजपोशी होगी. कई इतिहास बदल गए और कई रिकॉर्ड टूट गए, इसके अलावा अंधविश्वास को भी गहरी चोट पहुंची है. मगर दोबारा सरकार बनाने के बाद भी योगी आदित्यनाथ के सामने कई सारी चुनौतियां होंगी. इन चुनौतियों से निपट पाना सीएम योगी के लिए आसान नहीं होगा.
योगी की राह में खड़ी हैं ये चुनौतियां
योगी आदित्यनाथ ने अपने पांच सालों के कार्यकाल को भले ही पूरा कर लिया हो, लेकिन वो कहते हैं न- 'पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त..' कुछ ऐसा ही डायलॉग योगी के आगामी कार्यकाल पर सटीक बैठता है. आपको उन पांच चुनौतियों को बारीकी से समझना होगा, जो सीएम योगी की राह में कांटे की तरह उनकी सरकार पार्ट-2 का इंतजार कर रहे हैं.
चुनौती नंबर 1- आवारा पशुओं की समस्या कैसे होगी हल?
पूरे चुनाव में विपक्षी दलों ने आवारा पशुओं के मुद्दे को खूब जोर दिया था. योगी को घेरने के लिए आवारा सांड का खूब प्रचार-प्रसार किया गया था. हालांकि इन सभी विरोधियों के मुद्दों को दरकिनार कर योगी ने यूपी में प्रचंड वापसी कर ली है. हर किसी का यही सवाल है कि अब आगे क्या? तो आगे ये समझना होगा कि यूपी में आवारे पशुओं से लोगों और खासकर किसानों को क्या परेशानी होती है.
उत्तर प्रदेश के किसानों को आवारा पशु दोतरफा नुकसान पहुंचाते हैं. एक तो खेतों में घुसकर फसलों को तबाह करते हैं, वहीं दूसरा नुकसान आर्थिक और सुरक्षा के दृष्टिकोण से है. खेतों को इन आवारा पशुओं से बचाने के लिए किसानों को तारबंदी करानी पड़ती है, जिसके लिए पैसा खर्च होता है.
आवारा पशुओं से अपने खेत को बचाने के लिए कटीले तार लगवाने पड़ते हैं. एक अनुमान के मुताबिक एक बीघे खेत की तारबंदी कराने में किसानों पर काफी आ जाता है. इसमें तकरीबन 16 हजार रुपये का खर्च आता है. ऐसे में योगी के सामने अपने अगले कार्यकाल में इस समस्या से निपटने की चुनौती होगी.
चुनौती नंबर 2- जातिवाद के आरोपों को कैसे करेंगे डील?
अखिलेश यादव, कई सपा नेताओं समेत सभी विरोधियों ने पिछले लंबे वक्त से सीएम योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) पर ठाकुरवाद करने का आरोप लगाते रहे हैं. इतना ही नहीं कई बार ये भी आरोप लगा कि योगी ब्राह्मण विरोधी कार्रवाई करते हैं. इसके कई सारे उदाहरण भी पेश किए जा चुके हैं.
उत्तर प्रदेश में ऐसी धारणा बनाने की कोशिश की गई कि इस सरकार में ब्राह्मणों को दबाया और कुचला जा रहा है. विकास दुबे का एनकाउंटर उनमें से एक ही था. कईयों ने ऐसी अफवाहें उड़ाई कि विकास दुबे ब्राह्मण था इसी के चलते उसकी गाड़ी पलटवा दी गई, यदि वो ठाकुर होता तो उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती.
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कई सारे विरोधी नेताओं ने ये भी आरोप लगाया कि धनंजय सिंह जेल से बाहर इसीलिए है, क्योंकि उसपर योगी की रहम है, वरना कोई ब्राह्मण और मुस्लिम अपराधी होता तो वो जेल के भीतर होता. विधानसभा चुनावों में अखिलेश की समजावादी पार्टी ने तो MYB समीकरण भी तैयार कर लिया था, MYB यानी मुस्लिम यादव और ब्राह्मण.. अखिलेश ने शायद ये मान लिया था कि ठाकुर Vs ब्राह्मण का मुद्दा इतना गरमा चुका है कि ब्राह्मण समाज का झुकाव भी सपा की ओर ही होगा. हालांकि चुनाव में अखिलेश यादव को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है.
भले ही इस बार के चुनाव में योगी की वापसी हो गई हो, लेकिन अगले पांच सालों में ऐसा जातिवाद का आरोप उनपर लगता रहा तो आगे की राह उनके लिए आसान नहीं होगी. अब ये दूसरा सबसे बड़ा चैलेंज है, जिससे योगी सरकार पार्ट-2 निपटना होगा, वो आखिर जातिवाद के आरोपों को कैसे डील करेंगे?
चुनौती नंबर 3- रोजगार पैदा करना होगा बड़ा चैलेंज
उत्तर प्रदेश में विपक्षी दलों ने बेरोजगारी के मुद्दे को जोरो-शोरों से उठाया था. कई सारी रिपोर्ट्स और आंकड़ों में ये साफ-साफ बताया गया है कि यूपी का रोजगार दर पिछले पांच सालों में नीचे की ओर गया है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के बेरोजगारी के आंकड़ों का विश्लेषण करने से ऐसा सामने आया कि पांच सालों में बेरोजगारों की तादाद बढ़ी है.
रिपोर्ट की मानें तो यूपी में रहने वाले उन लोगों की तादाद में 14 फीसदी इजाफा हुआ है, जिन्हें रोजगार की चाहत है. पांच साल पहले ये तादाद 14.95 करोड़ थी, जो बढ़कर 17.07 करोड़ पहुंच गई है. वहीं नौकरी कर रहे लोगों की तादाद 16 लाख से ज्यादा घट गई है. सीधे शब्दों में बताया जाए तो यूपी में लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट (LFPR, रोजगार चाहने वालों के बढ़ने की दर) और रोजगार दर पिछले पांच वर्षों में तेजी से गिरी है.
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हालांकि योगी आदित्यनाथ ने बीते वर्ष दिसंबर के महीने में खुले मंच से रोजगार के मुद्दे पर अपनी सरकार की पीठ थपथपाई थी. उन्होंने सपा की पिछली सरकार पर निशाना साधते हुए ये कहा था कि अखिलेश के कार्यकाल में कोई नई नौकरियां नहीं दी गईं. योगी ने ये भी बोला था कि बीजेपी के कार्यकाल में 4.5 लाख नौकरियां दी गईं.
हालांकि आगामी 5 वर्षों में यूपी में रोजगार पैदा करना अब योगी के सामने बड़ा चैलेंज होगा. सरकारी नौकरी के साथ-साथ कोरोना काल में बेहाल हुए लोगों के लिए नए मौके और रोजगार के अवसर पैदा करना योगी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगी.
चुनौती नंबर 4- 2024 के मद्देनजर किसानों के मुद्दे बेहद जरूरी
किसान आंदोलन देश में एक बड़ा मुद्दा बना, सड़कों पर किसानों का प्रदर्शन करीब एक साल से अधिक समय तक चला. वहीं उत्तर प्रदेश चुनाव से ठीक पहले केंद्र की मोदी सरकार ने तीनों कृषि कानूनो को वापस ले लिया. ऐसे में विरोधी दलों में भाजपा सरकार को किसान विरोधी सरकार बताने की पूरी कोशिश की, लेकिन ये अलग बात है कि किसान आंदोलन के बाद भी यूपी समेत 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को लोगों ने सबसे ज्यादा पसंद किया.
अब 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में हर कोई ये बात बखूबी जानता है कि देश की सत्ता की चाबी यूपी में ही है. उत्तर प्रदेश में जिस पार्टी का जादू चलता है वही सत्ता के सिंहासन तक पहुंचता है. किसानों के लिए मोदी सरकार योजनाएं भी चला रही हैं. मगर इसके बावजूद योगी सरकार के सामने किसानों को खुश रखने की चुनौती होगी.
आगामी 2 सालों के भीतर किसानों के मुद्दों का समाधान करना बेहद जरूरी होगा. गन्ना किसान के नाम पर जो सियासत गरमाई उसको दरकिनार कर योगी ने दोबारा सरकार तो बना ली. मगर इसके बावजूद 2024 की चुनौती से पार पाने के लिए योगी के फैसले पर सभी किसानों की निगाहें टिकी होंगी. यूपी में किसानों के लिए बिजली और पानी का मुद्दा भी बड़ा होगा.
चुनौती नंबर 5- अपराधियों पर कार्रवाई कर सख्त छवि को बनाए रखना
बीते कुछ वक्त से यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की पहचान 'बुलडोजर बाबा' के तौर पर की जाने लगी है. वजह शायद किसी को भी बताने की जरूरत नहीं है. योगी राज पार्ट-1 में गुंडों और माफियाओं के खिलाफ ताबड़तोड़ कार्रवाई हुई. अतीक अहमद से लेकर आजम खान तक सभी के खिलाफ जोरदार कार्रवाई हुई. मुख्तार अंसारी के जेहन में तो योगी नाम का इस कदर खौफ दिखा कि वो यूपी छोड़कर पंजाब की जेल में शिफ्ट हो गया.
माफिया मुख्तार को उत्तर प्रदेश वापस लाने के लिए यूपी सरकार को सुप्रीम कोर्ट के चौखट तक जाना पड़ा था. पंजाब की कांग्रेस सरकार को उस वक्त सुप्रीम कोर्ट से तगड़ा झटका लगा. अदालत ने ये आदेश दिया कि अंसारी को उत्तर प्रदेश की जेल में दो हफ्ते के अंदर शिफ्ट करना होगा. जिसके बाद मुख्तार को यूपी लाया गया.
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योगी का नाम ही माफियाओं के लिए खौफ का पर्याय बन गया, लेकिन सत्ता में दोबारा वापसी के बाद योगी के सामने ये असल चुनौती होगी कि कैसे वो लगातार अपराधियों पर कार्रवाई कर सख्त छवि को बनाए रखें.
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