नई दिल्ली: ठाकरे परिवार के पहले सदस्य महाराष्ट्र में किंग की भूमिका में नजर आ रहे हैं. उद्धव ठाकरे की ताजपोशी से शिवसेना में जश्न जैसा माहौल है. लेकिन सियासी गलियारों में इस बात की हलचल तेज हो गई है कि उद्धव सरकार कठपुतली के तौर पर काम करेगी.
कुर्सी प्रेम ने बदल दिए उद्धव के तेवर
5 साल पहले शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए पागलपन और उतावलेपन को बुरी बात बताई थी. उन्होंने कहा था कि 'सरकार बनाना या कुर्सी पर बैठना कोई बुरी बात नहीं है. मंत्री होना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन सिर्फ कुर्सी का सपना देखना और उसके लिए पागल होना ये बुरी बात है.' आज उद्धव की वो आदर्शवादी बातें चूर-चूर हो गई हैं. मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने की शिवसेना की छटपटाहट से कौन वाकिफ नहीं है?
- सवाल यही है कि क्या कांग्रेस और एनसीपी के रहमोकरम पर चलने वाली शिवसेना की सरकार लाचार साबित नहीं होगी?
- बाघ की दहाड़ वाली शिवसेना कहीं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और एनसीपी चीफ शरद पवार जैसे धुरंधरों के आगे भीगी बिल्ली नजर नहीं आएगी?
उद्धव ठाकरे को मालूम है कि हिंदुत्ववादी पार्टी शिवसेना के कांग्रेस और एनसीपी के साथ जाने पर सवाल उठेंगे.
उद्धव को मालूम है कि उन्हें एक लाचार और कठपुतली मुख्यमंत्री का तमगा भी मिलेगा इसलिए वो दबी आवाज में सफाई देते फिर रहे हैं. लेकिन इस आवाज में वो दम नजर नहीं आता जिसके लिए शिवसेना जानी जाती रही है.
विचारधारा के आधार पर शिवसेना और कांग्रेस नदी के दो किनारा हुआ करते थे, लेकिन सत्ता के डोर ने दोनों को मिला दिया. मुंबई में जो पोस्टर लगे हैं, वो इसकी गवाही भी दे रहे हैं. उद्धव ठाकरे के पोस्टरों में सोनिया गांधी भी विराजमान हैं और शरद पवार भी.
Mumbai: Hoardings welcoming the new government in #Maharashtra and party flags of Shiv Sena & Congress seen on the stretch from Dadar TT to Shivaji Park. The new state govt, led by Shiv Sena chief & 'Maha Vikas Aghadi' leader Uddhav Thackeray as the CM, will be sworn in today. pic.twitter.com/aegYvgxmbK
— ANI (@ANI) November 28, 2019
इन्हीं कांग्रेस और सोनिया गांधी के लिए शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने बिल्कुल तीखे सुर को अपना बनाया था. यहां तक कि उनके सुपुत्र उद्धव ठाकरे ने भी चंद महीने पहले तक सोनिया गांधी और राहुल गांधी को जी भर के कोसा था. लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने के लिए शिवसेना ने अतीत से आंखें मूंद ली.
पवार के सामने बेबस हैं उद्धव?
एनसीपी-कांग्रेस ने उद्धव ठाकरे को महाविकास अघाड़ी का मुख्यमंत्री मान लिया है, लेकिन वो सरकार के सर्वेसर्वा नहीं रहेंगे क्योंकि असली कमान शरद पवार के हाथों में रहने वाली है. अघाड़ी सरकार के कामकाज पर नजर रखने के लिए एक कमेटी बनाने वाली है, जिसके प्रमुख शरद पवार होंगे जो सीएम से लेकर सरकार तक को सलाह देंगे, गाइड करेंगे.
जैसे मनमोहन सरकार के कार्यकाल में सोनिया गांधी यूपीए चेयरमैन हुआ करती थीं, वैसी ही भूमिका उद्धव सरकार में शरद पवार की हो सकती है. ये कौन नहीं जानता कि कैसे हर फैसले के लिए मनमोहन सिंह को सोनिया गांधी का मोहताज रहना पड़ता था. यानी ठीक वैसे ही पवार की चाबी से ही उद्धव सरकार चल पाएगी.
बाल ठाकरे का घर यानी मातोश्री सत्ता का केंद्र हुआ करता था और वो खुद कभी मुख्यमंत्री नहीं बने बल्कि मुख्यमंत्री बनवाया और प्रदेश में सबसे बड़े किंगमेकर की भूमिका अदा किए. मनोहर जोशी हों या फिर नारायण राणे, इन दोनों के लिए मातोश्री का आदेश ही सर्वोपरि होता था. लेकिन, आज महाराष्ट्र की सियासत में मातोश्री का कोई मोल नहीं रहा. सरकार बनाने के लिए खुद उद्धव ठाकरे को अपने बंगले से निकलना पड़ा.
उद्धव ठाकरे ने कभी इस होटल तो कभी उस होटल के चक्कर लगाया, वो भी सिर्फ कुर्सी के लिए. कभी शरद पवार के दरबार में हाजिरी देनी पड़ी तो कभी कांग्रेस नेताओं के पास जाकर बात करनी पड़ी. अब सत्ता का केंद्र मातोश्री नहीं रहा बल्कि मुंबई का सिल्वर ओक हो गया है जहां शरद पवार रहते हैं
इतना ही नहीं, उद्धव को भविष्य में दिल्ली के 10 जनपथ का भी रुख करना पड़ सकता है. क्योंकि उनके लिए सोनिया गांधी का एक-एक इशारा मील का पत्थर साबित होने वाला है. इन दोनों दरवाजों पर उद्धव को बराबर दौड़ लगानी भी पड़ेगी
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इस दौड़भाग और हाजिरी लगाने की शुरुआत बुधवार की रात से हो भी गई है. जब उद्धव ठाकरे के पुत्र आदित्य ठाकरे को मैडम सोनिया गांधी के यहां हाजिरी देनी पड़ी थी और शपथ-ग्रहण में आने का न्यौता देना पड़ा था. ये वाकया ये बताने के लिए काफी है, आने वाले वक्त में उद्धव सरकार की बागडोर किन-किन राजनीतिक महारथियों के हाथों में रहने वाली है. केंद्र में जब मनमोहन सरकार थी, उस वक्त सोनिया गांधी की अध्यक्षता में NAC का गठन किया गया था. जो मनमोहन सरकार पर पूरी नजर रख रही थी. मनमोहन सरकार में क्या-क्या हुआ इसका उल्लेख करने की आवश्कता नहीं है. लेकिन अंदाजा लगाया जा सकता है कि उद्धव ठाकरे को सरकार चलाने में कितनी सहूलियत होगी.
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