नई दिल्ली: जब एक आदमी का काम उसकी पहचान बन जााए तो उसे लंबे चौड़े इंट्रोडक्शन की जरूरत नहीं पड़ती. जब उसका काम हर गली-मोहल्ले में रेडियो पर बजता है, लोगों की जुबां में घुलता है तो वही उसकी सबसे बड़ी अचीवमेंट होती है. कुछ ऐसी ही प्रतिभा के धनी हैं प्रसून जोशी. जिनकी लिखावट ने उनकी तकदीर बदल दी. फिल्मों के लिए कई गाने लिखने वाले प्रसून जोशी का अलग ही नजरिया था. उनके हर गाने के पीछे कोई न कोई कहानी है पर 'अर्जियां' के बारे में जान आप हैरान हो जाएंगे.


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पाकिस्तान से आया फोन


प्रसून जोशी 'दिल्ली 6' के 'अर्जियां' को अपनी जिंदगी का सबसे अहम गाना मानते हैं. कहते हैं कि इस गाने को सुन एक बार उन्हें टूरिज्म मिनिस्ट्री ऑफ पाकिस्तान से एक महिला का कॉल आया था. वो महिला काफी अम्र दराज थीं. वो मेरे इस गाने से इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने इस गाने की पंक्तियों को मेरी जुबां से सुनना चाहा. मेरे दिल को उनकी बात ने छू दिया. उस वक्त वो बहुत बीमार थीं. मैंने 'दरारें दरारें हैं माथे पे मौला' उनके लिए जैसे ही पढ़ा वो रो पढ़ीं.


हिंदू सुन हुई थीं हैरान


आगे प्रसून जोशी कहते हैं कि मैं बहुत हैरान हुआ कि सीमा पार मेरे उस गाने ने किसी के दिल को छुआ था. वो कहती हैं कि मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि आप मुसलमान नहीं है. तुम एक हिंदू हो और तुमने ये गाना लिखा है! ऐसे में प्रसून उन्हें प्यार से कहते हैं कि ये एक धार्मिक गाना है. इसे ही सूफियाना कहते हैं और इसी के साथ मैं पैदा हुआ हूं. फिर उन्हें उस गाने की पूरी कहानी बताई.


गाने के पीछे की कहानी


प्रसून जोशी ने उस महिला को बताया कि कैसे रामपुर में उनके घर के बगल में एक दरगाह थी. बचपन सारा वहीं बीता. कहते हैं कि जब मैं स्कूल जा रहा होता था तो मेरी मां मुझे कहती थीं कि पहले दरगाह जाओ माथा टेको फिर स्कूल जाओ. मैं वहां पर एक 95 साल की बूढ़ी महिला को देखा करता था जो पूरा दिन वहीं बैठकर माथा टेकती रहती थी. उसके माथे पर ढेरों झुर्रियां थीं. हो सकता है कि वो मानसिक तौर पर बीमार हो लेकिन मुझे आज भी उसका माथा याद है जो झुर्रियों से भरा पड़ा था.


एक साल का समय


आगे कहते हैं कि जब मैंने वो गाना लिखा तो मेरे मन में यही आया कि माथे पर दरारें हैं और आप ताउम्र उन दरारों को ठीक करने की कोशिश करते रहते हैं. एआर रहमान ने इस गाने को तैयार होने के लिए पूरे एक साल का इंतजार किया था क्योंकि मेरे दिमाग में कोई आइडिया नहीं आ पा रहा था. प्रसून जोशी की ये खासियत है कि वो हर तरह के गाने को अपने तरीके से लिखना चाहते हैं. वो खुद को एक क्लासिक कवि नहीं मानते. कहते हैं कि कोई भी कवि बन सकता है ये एक दृष्टि है एक निगाह है, पोएट्री एक एटीट्युड है, जो सबको दिख रहा है उसके परे देखना ही पोएट्री है.


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