नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने चार साल के अंतराल के बाद देश में 22 वें विधि आयोग का गठन करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रितुराज अवस्थी को आयोग चेयरमैन  नियुक्त किया हैं. जस्टिस अवस्थी की अध्यक्षता में गठित 22 वें आयोग में केरल हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस केटी शंकरन, प्रो. आनंद पालीवाल, प्रो. डीपी वर्मा, प्रो. राका आर्य और एम करुणानिधि को सदस्य नियुक्त किया गया है.


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3 जुलाई 1960 को जन्मे जस्टिस रितुराज अवस्थी ने 1986 में लखनऊ विश्वविद्यालय से लॉ की डिग्री हासिल करने के बाद 1 फरवरी, 1987 को एक अधिवक्ता के रूप में रजिस्टर्ड हुए. जस्टिस अवस्थी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में सिविल, सेवा और शैक्षिक मामलों में लंबे समय तक प्रैक्टिस की. वे केन्द्र सरकार के लिए सहायक सॉलिसिटर जनरल भी नियुक्त किए गए.


वकालत के सफर के बाद 13 अप्रैल, 2009 को उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट में एडिशनल जज नियुक्त किया गया. करीब डेढ़ वर्ष बाद ही उन्हें हाईकोर्ट का स्थायी जज बना दिया गया. 11 अक्टूबर, 2021 को उन्हें कर्नाटक हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया. मुख्य न्यायाधीश पद से 2 जुलाई को 2022 को वे सेवानिवृत हुए.


चार साल बाद हुई नियुक्ति
31 अगस्त, 2018 को 21वें विधि आयोग का कार्यकाल पूरा होने के बाद से ही विधि आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों का पद खाली रहा है. जस्टिस बीएस चौहान की अध्यक्षता में 21 वें आयोग ने देश के कई महत्वपूर्ण कानूनी पहलुओं पर अपनी रिपोर्ट दी थी. लेकिन केंद्र की मोदी सरकार के सबसे अहम बिंदु समान आचार संहिता पर आयोग ने रिपोर्ट के लिए कार्यवाही शुरू की, लेकिन आयोग के कार्यकाल समाप्ति तक रिपोर्ट पेश नहीं कर सका.


21 वें आयोग की समाप्ति के करीब डेढ़ वर्ष बाद सरकार ने फरवरी 2020 में 22 वें आयोग के गठन को मंजूरी दी थी लेकिन करीब चार साल तक सरकार आयोग का गठन नही कर पायी. आयोग में चेयरमैन और सदस्यों की नियुक्ति की मांग को लेकर भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट जनहित याचिका तक (पीआईएल) दायर की थी. जिसमें केंद्रीय गृह मंत्रालय, कानून एवं न्याय मंत्रालय और विधि आयोग को पक्षकार बनाया था.


फरवरी 2020 में दी थी कैबिनेट ने अप्रूवल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 19 फरवरी 2020 को केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में 22वें विधि आयोग के गठन को मंजूरी दे दी गयी थी. जिसका कार्यकाल सरकारी राजपत्र में गठन के आदेश के प्रकाशन की तिथि से तीन वर्ष की अवधि के लिए तय किया गया था. होगा और जो जटिल कानूनी मामलों पर सरकार को सलाह देगा.


विधि आयोग भारत सरकार द्वारा समय-समय पर गठित एक गैर-सांविधिक निकाय है. इसका मूल रूप से 1955 में गठन किया गया था. आयोग का पुनर्गठन तीन साल के लिए किया जाता है. मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद विधि मंत्रालय आयोग के गठन संबंधी अधिसूचना जारी करता है.


आयोग का कार्यकाल अधिसूचना के प्रकाशन की तिथि से तीन साल तक के लिए तय होता है. आयोग में चेयरमैन के साथ पूरे पैनल में चार सदस्य (एक सचिव सहित), और कानून मंत्रालय में कानून और विधायी सचिव पदेन सदस्य होते हैं.


विधि आयोग न्याय प्रक्रियाओं में देरी और मामलों के तेजी से निपटान के लिए न्यायिक प्रक्रिया में सुधार के लिए अध्ययन और अनुसंधान करता है और साथ ही आयोग सौंपे गए कानून के विभिन्न पहलुओं पर सरकार को अपनी सलाह देने का कार्य करता है.


हिजाब पर फैसले से आए थे चर्चा में
जस्टिस रितुराज अवस्थी वर्ष की शुरुआत में देशभर में चर्चा में आए थे जब उनकी अध्यक्षता में पीठ ने हिजाब मामले पर फैसला सुनाया था. जस्टिस अवस्थी कर्नाटक हाईकोर्ट की उस बेंच का हिस्सा थे जिसके द्वारा हिजाब मामले पर फैसला सुनाया गया था. जस्टिस रितुराज अवस्थी की अध्यक्षता में जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की 3 जजों की बेंच ने ये फैसला सुनाया था. मैराथन सुनवाई के जस्टिस अवस्थी की अध्यक्षता वाली बेंच ने 27 फरवरी 2022 को फैसला सुरक्षित रखा था, जिसे कड़ी सुरक्षा के बीच 15 मार्च 2022 को सुनाया गया था.


हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि हिजाब इस्लाम के अनिवार्य धार्मिक व्यवहार का हिस्सा नहीं है और इस तरह संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित नहीं है. साथ ही हाईकोर्ट ने कहा छात्र स्कूल यूनिफॉर्म पहनने से मना नहीं कर सकते हैं और स्कूल यूनिफॉर्म पहनने का नियम वाजिब पाबंदी है. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सरकार के आदेश को चुनौती का कोई आधार नहीं है.


समान नागरिक संहिता फिर चर्चा में
केन्द्र सरकार द्वारा 22वें विधि आयोग की नियुक्ति के साथ ही ​देश में समान आचार संहिता का मुद्दा भी एक बार फिर से चर्चा में आ गया है. सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस मुद्दे पर दायर याचिकाओं पर सुनवाई से इंकार ​कर दिया था. सुनवाई के दौरान ही सरकार ने जानकारी दी थी कि समान नागरिक संहिता के मामले में 21वें विधि आयोग ने कई हितधारकों से अभ्यावेदन आमंत्रित करके इस मुद्दे की विस्तृत जांच की थी. अगस्त 2018 में 21वें आयोग का कार्यकाल समाप्त होने के चलते संहिता रुका हुआ कार्य अब फिर से शुरू होगा.


सुप्रीम कोर्ट में याचिकाए दायर करने वाले अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय कहते हैं कि 22 वें विधि आयोग के सामने मुख्य रूप से 5 बिंदु है जिस पर एक रिपोर्ट तैयार करनी हैं. इनमें दसवीं कक्षा तक समान शिक्षा, समान नागरिक संहिता, घुसपैठ के खिलाफ कानून, जनसंख्या नियंत्रण को लेकर रिपोर्ट और धर्मांतरण रोकने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कानून बनाने के लिए रिपोर्ट करने की बड़ी जिम्मेदारी है. उपाध्याय कहते हैं कि रिपोर्ट तैयार होने से स्थिति स्पष्ट होगी और सरकार अपने स्तर पर आगे बढ़ सकेगी. 


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