भोपाल: मध्यप्रदेश में पत्रकारिता संस्थान माखनलाल चतुर्वेदी के तकरीबन 23 छात्रों को बर्खास्त कर दिया गया. मामला था संस्थान के दो शिक्षकों के बर्खास्तगी की मांग का. इसके बाद इस मामले पर संज्ञान लेते हुए मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विश्वविद्यालय प्रशासन और राज्य सरकार की खूब आलोचना की. उन्होंने कहा कि एक प्रोफेसर जो जातिवादिता फैलाने की कोशिश कर रहा था, उसे छोड़कर छात्रों को ही निकाल दिया गया. यह दिखाता है कि किस तरह से सरकार छात्रों के खिलाफ काम करने वाली सरकार हो गई है.
क्या है पूरा मामला ?
दरअसल, माखनलाल चतुर्वेदी संस्थान के कुछ छात्रों ने अपने ही गुरूजी को जातिवादी बता कर उनके खिलाफ मोर्चा खोल लिया था. यह सब संस्थान के विजिटिंग प्रोफेसर दिलीप मंडल के एक पोस्ट के बाद शुरू हुआ. प्रोफेसर दिलीप मंडल ने यह पोस्ट किया था ब्राह्माणवादी मीडिया. मीडिया के 70 फीसदी पदों पर 7 परसेंट हिंदू सवर्ण अधिकार जमा कर बैठे हैं.
छात्रों से जाति पूछते हैं प्रोफेसर
इसके बाद छात्रों ने उन्हें विश्वविद्यालय में प्रवेश करने से गेट पर ही रोक दिया. विवाद यहीं से शुरू हुआ. छात्रों ने इसके बाद पुलिस और मीडिया से बात करते हुए यह कहा कि प्रोफेसर दिलीप मंडल छात्रों से उनकी जाति पूछते हैं और सवर्ण पाने के बाद उसके साथ गलत व्यवहार करते हैं.
हालांकि इस मामले के उबाल लेने के बाद प्रोफेसर ने यह कहा कि वे सिर्फ वहीं बोलते हैं जो उन्हें सही लगता है और अपने मन की बात कहना उनकी पहली प्राथमिकता है.
कमिटी के रिपोर्ट से पहले ही छात्र कर दिए गए बर्खास्त
छात्रों को पुलिस ने एक दिन के लिए हिरासत में भी रखा था. छात्रों की मांग थी कि एक कमिटी बने जो इस पूरे मामले की जांच करे. छात्रों की मांग के अनुसार विश्वविद्यालय प्रशासन ने कमिटी का गठन भी किया जो 15 दिनों तक पूरी छानबीन के बाद रिपोर्ट सौंपेगी लेकिन कमिटी के रिपोर्ट आने से पहले ही विरोध प्रदर्शन पर उतरे तकरीबन 23 छात्रों के दरवाजे पर दस्तक आई कि उन्हें बर्खास्त कर दिया गया है. उन छात्रों में कुछ लड़कियां भी थी.
छात्रों का कहना है कि हमने सही चीज की मांग की थी. संविधान में यह बात लिखी हुई है कि किसी भी तरह से जाति, धर्म, संप्रदाय, भाषा के आधार पर किसी के साथ कोई भी भेदभाव नहीं किया जाएगा. लेकिन हुआ इसके ठीक विपरीत है. प्रोफेसर की बर्खास्तगी को भुला कर हमें ही बर्खास्त कर दिया गया.