Indian Air Force LCA Tejas: तेजस की कहानी 1983 में शुरू हुई, जब भारत ने पुराने हो रहे MiG-21 को बदलने के लिए एक स्वदेशी जेट बनाने का फैसला लिया गया. लेकिन तकनीकी जटिलता और फंडिंग की कमी के चलते यह प्रोजेक्ट बार-बार अटकता गया. दशकों की देरी और अरबों रुपये खर्च होने के कारण, इसे मीडिया और आलोचकों द्वारा 'व्हाइट एलिफेंट' (सफेद हाथी) कहा जाने लगा.
विरोध के थपेड़े, फिर भी नहीं डिगा इरादा
तेजस की राह आसान नहीं थी. हर छोटे से छोटे पुर्जे के लिए भारत को संघर्ष करना पड़ा. शुरुआती इंजन को लेकर सबसे बड़ी चुनौती थी. इंजन की तकनीकी दिक्कतें आईं, फिर अमेरिका ने प्रतिबंध लगा दिए, जिससे प्रोजेक्ट की रफ्तार धीमी पड़ गई.
वहीं, जब विमान तैयार हुआ, तो शुरुआती ट्रेनिंग में शामिल होने वाले पायलटों के लिए यह किसी जुए से कम नहीं था. उन्हें एक ऐसे विमान को उड़ाना था जिसका इंजन, संरचना और सॉफ्टवेयर सब कुछ बिल्कुल नया था. लेकिन भारतीय वायुसेना के टेस्टिंग पायलटों (Test Pilots) ने बिना किसी डर के, हर उड़ान भरी और हर डेटा रिकॉर्ड किया.
जब LCA तेजस ने तोड़ा अपना ही रिकॉर्ड
लंबी लड़ाई के बाद, 2016 में जब तेजस को आधिकारिक तौर पर वायुसेना में शामिल किया गया, तो पूरी दुनिया ने भारत की इंजीनियरिंग क्षमता को माना. तेजस आज दुनिया के सबसे छोटे और सबसे हल्के सुपरसोनिक लड़ाकू विमानों में से एक है. यह आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट, एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड एरे (AESA) रडार और स्वदेशी मिसाइलों से लैस है.
कोयंबटूर के पास सुलूर में स्थित नंबर 45 स्क्वॉड्रन 'फ्लाइंग डैगर्स' और नंबर 18 स्क्वॉड्रन 'फ्लाइंग बुलेट्स' तेजस उड़ाने वाले पहले स्क्वॉड्रन बने. 'फ्लाइंग बुलेट्स' को 'आसमान के रक्षक' यानी Guardians of the Sky भी कहा जाता है, और उन्होंने इस स्वदेशी जेट से सीमाओं पर गश्त लगाकर दुश्मनों को यह संदेश दिया कि भारत अब किसी पर निर्भर नहीं है.
गेम चेंजर बनने का सफर
तेजस अब केवल भारत की वायुसेना की ताकत नहीं है, यह भारतीय रक्षा उद्योग का ब्रांड एंबेसडर बन चुका है. जिस विमान का मजाक उड़ाया गया था, आज वही विमान मलेशिया, अर्जेंटीना, और फिलीपींस जैसे देशों को निर्यात करने के लिए तैयार है. यह भारतीय विमानन और एयरोस्पेस उद्योग के लिए एक गेम चेंजर है.
तेजस को उड़ाने वाले पायलटों के लिए यह केवल एक मशीन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है. यह साबित करता है कि अगर भारतीय वैज्ञानिक और इंजीनियरों को सही संसाधन और समर्थन मिले, तो वे दुनिया में सबसे बेहतरीन तकनीक बना सकते हैं.
यही वजह है कि भारतीय वायुसेना ने पहली बार में 83 तेजस लड़ाकू विमानों का ऑर्डर दिया और हाल ही में 97 नए तेजस Mk1A लड़ाकू विमानों का ऑर्डर दिया. जिसके बाद से इंडियन एयरफोर्स के खेमे में आने वाले समय में कुल 180 तेजस लड़ाकू विमान हो जाएंगे. जो आने वाले समय में विदेशी निर्भरता को कम करने में मदद करेंगे.
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