दिल्ली: निर्भया कांड के आरोपी अक्षय की पत्नी ने बिहार के औरंगाबाद की अदालत में तलाक की अर्जी दाखिल की है. दायर अर्जी में अक्षय ठाकुर की पत्नी ने कहा कि वो विधवा बनकर नहीं जी सकती इसलिए उसे तलाक दिया जाए. अक्षय की पत्नी का कहना है कि इससे उसे पूरी जिंदगी रेपिस्ट की विधवा के रूप में काटनी पड़ेगी. औरंगाबाद के लहंग कर्मा गांव का रहने वाला अक्षय ठाकुर निर्भया कांड का दोषी है और 20 मार्च को उसके तीन साथियों के साथ उसे दिल्ली के तिहाड जेल में फांसी दी जाने वाली है.
अक्षय की पत्नी ने बताया निर्दोष
अक्षय की पत्नी ने अर्जी में लिखा है कि मेरे पति निर्दोष हैं, ऐसे में मैं उनकी विधवा बनकर नहीं रहना चाहती, इसलिए उसे अपने पति से तलाक चाहिए. पुनीता ने हिन्दू विवाह अधिनियम 13.2.2 के अंतर्गत तलाक मामला दायर किया है. पुनीता ने अदालत में दी गई अर्जी में लिखा है कि वैसे तो उसका पति निर्दोष है लेकिन न्यायालय के दृष्टिकोण से वो दोषी है. कानून के मुताबिक बलात्कारी की पत्नी तलाक ले सकती है क्योंकि वो विधवा के रूप में गुजर-बसर करने के लिए तैयार नहीं है.
नये नये पैंतरे चल रहे दोषी
निर्भया रेप केस के दोषी फांसी से बचने के लिये नयी नयी चालें चल रहे हैं. कोर्ट में याचिका दायर कर दावा किया गया है कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा खारिज की गई उसकी दया याचिका में प्रक्रियात्मक खामियां और संवैधानिक अनियमितताएं हैं. आपको बता दें कि दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने चारों दोषियों को 20 मार्च सुबह 5.30 बजे फांसी देने का डेथ वारंट जारी किया है. दोषियों के खिलाफ यह चौथी बार डेथ वारंट जारी किया गया है.
कई बहाने बना चुके हैं दोषी
20 मार्च के लिए चौथा डेथ वारंट जारी होने के बाद से घड़ी की बढ़ती टिक टिक चारों दोषियों के कान में किसी टाइम बम की घड़ी की तरह गूंज रही है. सभी दोषी 20 मार्च को फांसी के फंदे पर चढ़ जाएंगे. गुनहगार मुकेश की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर क्यूरेटिव पिटिशन दोबारा दाखिल करने की इजाजत मांगी गई है. जिसे खारिज किया जा चुका है. इसके अलावा दोषियों ने इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में भी अपील की है.
वकील पर धोखा देने का आरोप
मुकेश के नए वकील एमएल शर्मा की तरफ से अर्जी दाखिल कर भारत सरकार, दिल्ली सरकार और एमिकस क्यूरी यानी कोर्ट सलाहकार को पार्टी बनाया गया है और अर्जी में कहा गया है कि उसे साजिश का शिकार बनाया गया. उसे नहीं बताया गया कि लिमिटेशन एक्ट के तहत क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल करने के लिए तीन साल तक का वक्त होता है. ये सभी हथकंडे अपनाकर दोषी फांसी से बचना चाहते हैं जो अब संभव नहीं है.
ये भी पढ़ें- न्यूज़ के नाम पर ज़हर फैला रहे वामपंथी पत्रकार और 'मीडिया के जेहादी'