समाजवादियों का गढ़ है करहल, 17 विधानसभा चुनावों में सिर्फ एक बार जीती है BJP

समाजवादी पार्टी ने आखिरकार पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव की सीट का ऐलान कर दिया है. पार्टी महासचिव राम गोपाल यादव ने शनिवार को घोषणा की कि अखिलेश यादव मैनपुरी जिले की करहल विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 22, 2022, 05:11 PM IST
  • जानिए क्यों करहल विधानसभा से ही लड़ रहें हैं 'अखिलेश'
  • राम मनोहर लोहिया और नरेंद्र देव का रहा है करहल से इतिहास
समाजवादियों का गढ़ है करहल, 17 विधानसभा चुनावों में सिर्फ एक बार जीती है BJP

नई दिल्ली: समाजवादी पार्टी ने आखिरकार पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव की सीट का ऐलान कर दिया है. पार्टी महासचिव राम गोपाल यादव ने शनिवार को घोषणा की कि अखिलेश यादव मैनपुरी जिले की करहल विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे. बीते कुछ दिनों से कयास लगाए जा रहे थे कि अखिलेश यादव इस सीट से दावेदारी पेश कर सकते हैं. अखिलेश यादव की सीट के ऐलान के साथ समाजवादी पार्टी ने यह घोषणा भी की है कि अगर वो सत्ता में आती है तो आईटी सेक्टर में 22 लाख नए रोजगार दिए जाएंगे. 

मैनपुरी जिला अखिलेश यादव के पिता और सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव का भी गढ़ रहा है. ऐसे कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव के लिए सेफ सीट चुनी गई है. हालांकि अगर करहल विधानसभा सीट के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो यहां ज्यादातर वक्त समाजवादियों का ही कब्जा रहा है. 

करहल सीट का चुनावी इतिहास
1957 में इस सीट पर पहली बार चुनाव हुआ था. इस सीट पर राम मनोहर लोहिया और आचार्य नरेंद्र देव जैसे बड़े नेताओं की प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के नेता नाथू सिंह और राम दीन ने जीत हासिल की थी. तब इस विधानसभा सीट में दो सीट हुआ करती थीं जिनका बाद में बंटवारा कर दिया गया. इसके बाद 1962, 1967 और 1969 के विधानसभा चुनावों में इस सीट पर स्वतंत्रता पार्टी का कब्जा रहा. 

फिर हुआ समाजवादियों का कब्जा
1974 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर भारतीय क्रांति दल के नाथू सिंह ने जीत हासिल की. फिर नाथू सिंह 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर भी चुनाव जीते. फिर 1980 में इंदिरा गांधी की लहर में यहां से कांग्रेस आई ने जीत हासिल की थी. यह आजादी के बाद पहली बार और आखिरी था जब कांग्रेस ने इस सीट पर जीत हासिल की थी. लेकिन फिर 1985 में लोकदल, 1989 में जनता दल, 1991 में जनता दल सेकुलर, 1993 और 1996 में समाजवादी के टिकट पर लगातार बाबू राम यादव इस सीट पर जीतते रहे.

2002 में पहली बार जीती थी बीजेपी
2002 में पहली बार इस सीट पर बीजेपी का झंडा फहराया था. तब सोबरन सिंह यादव यादव ने बीजेपी को जीत दिलाई थी. लेकिन इसके बाद सोबरन सिंह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए. फिर 2007, 2012 और 2017 का चुनाव सोबरन सिंह सपा के टिकट पर ही जीतते आए हैं. इस बार उन्हें हटाकर अखिलेश यादव को सीट दी गई है.

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