First indian female doctor Anandibai Gopalrao Joshi: आज से सैकड़ों साल पहले, जब लड़कियों का स्कूल जाना भी बड़ी बात थी, तब एक लड़की ने डॉक्टर बनने का सपना देखा. यह कोई आसान सपना नहीं था, क्योंकि उस समय भारत में किसी महिला का डॉक्टर बनना तो सोचा भी नहीं जा सकता था. लेकिन आनंदीबाई गोपालराव जोशी ने न सिर्फ यह सपना देखा, बल्कि उसे पूरा भी किया. वह 1886 में अमेरिका से डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करके भारत की पहली महिला डॉक्टर बनीं. उनकी कहानी लाखों महिलाओं को हिम्मत देती है.
बचपन से ही पढ़ने का था शौक
आनंदीबाई का जन्म 31 मार्च 1865 को महाराष्ट्र में हुआ था. उनका नाम यमुना था. उस समय छोटी उम्र में ही लड़कियों की शादी कर दी जाती थी. यमुना की शादी भी 9 साल की उम्र में गोपालराव जोशी से हो गई, जो उनसे काफी बड़े थे. गोपालराव एक ऐसे व्यक्ति थे, जो नई सोच रखते थे. उन्होंने अपनी पत्नी की पढ़ाई पर बहुत ध्यान दिया. उन्होंने यमुना का नाम बदलकर आनंदी रख दिया और उन्हें मराठी, संस्कृत के साथ-साथ अंग्रेजी भी सिखाई. यह उस दौर में एक बहुत बड़ी बात थी.
जब एक दुख ने बदल दी जिंदगी की राह
आनंदीबाई की जिंदगी में एक बहुत बड़ा मोड़ तब आया, जब उन्होंने अपने बच्चे को खो दिया. उस समय भारत में महिला डॉक्टर नहीं होती थीं और महिलाएं पुरुष डॉक्टर से इलाज करवाने में झिझकती थीं. इसी दर्द ने आनंदीबाई को यह सोचने पर मजबूर किया कि अगर महिला डॉक्टर होतीं, तो शायद ऐसा नहीं होता. तभी उन्होंने खुद डॉक्टर बनने का पक्का इरादा कर लिया. उनके पति गोपालराव ने भी इसमें उनका पूरा साथ दिया.
समुद्र पार की पढ़ाई का सफर
आनंदीबाई का अमेरिका जाकर डॉक्टरी पढ़ना कोई मामूली बात नहीं थी. समाज ने उनका खूब विरोध किया, लेकिन आनंदीबाई और उनके पति किसी की परवाह नहीं की. 1883 में आनंदीबाई को अमेरिका के पेनसिल्वेनिया के महिला मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिला. यह अमेरिका का दूसरा ऐसा कॉलेज था, जो सिर्फ महिलाओं को डॉक्टरी की पढ़ाई कराता था.
अमेरिका में चुनौतियों से लड़कर बनीं डॉक्टर
अमेरिका में पढ़ाई करना आनंदीबाई के लिए एक बड़ी चुनौती थी. वहां का मौसम बहुत ठंडा था, जो उनके लिए नया था. उन्हें भारतीय खाना भी नहीं मिलता था, जिससे उनकी तबीयत खराब रहने लगी. लेकिन इन सब मुश्किलों के बावजूद, आनंदीबाई ने हार नहीं मानी. उन्होंने खूब मेहनत की और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दिया. उनकी लगन और मेहनत रंग लाई. 1886 में, उन्होंने अपनी मेडिकल की डिग्री सफलतापूर्वक हासिल कर ली. यह भारत के लिए एक ऐतिहासिक पल था. एक भारतीय महिला ने विदेश जाकर डॉक्टर की उपाधि हासिल की थी.
भारत वापसी और एक दुखद अंत
डॉक्टर बनने के बाद, आनंदीबाई भारत लौट आईं. उनका देश में भव्य स्वागत किया गया. उन्हें कोल्हापुर के एक अस्पताल में महिला मरीजों के लिए मुख्य डॉक्टर बनाया गया. यह उनके लिए एक बड़ी उपलब्धि थी. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. अमेरिका में पढ़ाई के दौरान उनकी तबीयत बिगड़ गई थी. भारत लौटने के कुछ ही महीनों बाद, 26 फरवरी, 1887 को करीब 21 साल की छोटी उम्र में टीबी की बीमारी के कारण उनका निधन हो गया.
आनंदीबाई गोपालराव जोशी का जीवन भले ही छोटा रहा, लेकिन उन्होंने जो रास्ता दिखाया, वह आज भी कायम है. उन्होंने न सिर्फ महिलाओं के लिए शिक्षा और डॉक्टरी के क्षेत्र में नए दरवाजे खोले, बल्कि यह भी साबित किया कि अगर आप में हिम्मत और जुनून हो, तो कोई भी मुश्किल आपको रोक नहीं सकती. उनकी कहानी आज भी भारत और पूरी दुनिया की लड़कियों और महिलाओं को अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित करती है.
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