60 सेकेंड, 4500 राउंड फायरिंग! DRDO बना रहा ये धांसू तोप, ड्रोन-मिसाइलों से सात जन्मों की दुश्मनी; ₹800 करोड़ लागत

Indian Army Gatling autocannon: भारतीय सेना ने आर्मामेंट रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टैब्लिशमेंट (ARDE) की जमीनआधारित गैटलिंग ऑटोकेनन सिस्टम को तेजी से विकसित करने का फैसला किया है. यह सेना को दुश्मन के ड्रोन, कम ऊंचाई पर उड़ने वाली मिसाइलों और अन्य खतरों को बर्बाद करने के लिए तगड़ी ताकत देगा.

Written by - Prashant Singh | Last Updated : Oct 1, 2025, 09:04 AM IST
  • ड्रोन और मिसाइल दोनों पर भारी
  • AI राडार से होगा स्मार्ट टारगेटिंग
60 सेकेंड, 4500 राउंड फायरिंग! DRDO बना रहा ये धांसू तोप, ड्रोन-मिसाइलों से सात जन्मों की दुश्मनी; ₹800 करोड़ लागत

Indian Army Gatling autocannon: ऑपरेशन सिंदूर के बाद, पाकिस्तान को जिस तरह से इंडियन आर्मी ने धूल चटाई. उससे दुनिया वाकिफ है. हालांकि, इस दौरान मिसाइल व लड़ाकू विमानों के इतर एक अन्य हथियारों काफी चर्चा में रहा. स्वॉर्म ड्रोन्स यानी एक साथ झुंड में हमला करने वाले ड्रोन. ऐसे में, भविष्य में ऐसे ही हमलों से निपटने के लिए इंडियन आर्मी बेहद प्रभावी और घातक हथियार पर बड़ा दांव लगा रही है. रिपोर्ट के मुताबिक, ARDE की गैटलिंग ऑटोकेनन प्रोजेक्ट को अब पूर्ण-स्पेक्ट्रम क्लोज-इन वेपन सिस्टम (CIWS) के रूप में बदल दिया गया है, जो जमीन पर सेना के कमांड पोस्ट और लॉजिस्टिक्स हब्स को अभेद्य सुरक्षा देगी. ऐसे में आइए इसकी रेंज व मारक क्षमता के बारे में आसान भाषा में समझते हैं.

क्या है यह गैटलिंग ऑटोकेनन प्रोजेक्ट?
ARDE का यह प्रोजेक्ट एक मोबाइल और हाई-रेट-ऑफ-फायर वाली हथियार प्रणाली है, जिसे विशेष रूप से जमीन से चलाने के लिए डिजाइन किया गया है. यह कॉन्सेप्ट नौसेना की CIWS से प्रेरणा लिया गया है, लेकिन इसे थल सेना की जरूरतों के मुताबिक मजबूत बनाया गया है. यह सिस्टम केवल ड्रोन ही नहीं, बल्कि जमीन की ओर आ रही एंटी-शिप मिसाइलों, हाई-मैनुवरिंग लड़ाकू विमानों, और यहां तक कि समुद्र तट के पास तेजी से आ रही छोटी नावों को भी भेदने में सक्षम होगी. इसे फॉरवर्ड बेसों या वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के आसपास तेजी से तैनात किया जा सकेगा.

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क्या है गैटलिंग ऑटोकेनन की खासियत
यह गैटलिंग ऑटोकेनन एक मल्टी-बैरल रोटरी तोप है, जिसे 20mm से 30mm चैम्बर में डिजाइन किया जा रहा है. इसकी सबसे बड़ी खासियत इसकी फायरिंग दर है. रिपोर्ट के मुताबिक यह प्रति मिनट 3,000 से 4,500 राउंड तक फायर कर सकती है.

इतना ही नहीं, यह स्मार्ट गोला-बारूद जैसे प्रॉक्सिमिटी-फ्यूज्ड राउंड का भी इस्तेमाल करेगी, जो ड्रोन झुंडों और मिसाइलों को आसानी से नेस्तनाबूद कर देगा. साथ ही, इसमें रडार के साथ इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल/इंफ्रारेड (EO/IR) सेंसर सूट भी लगा होगा.

ऐसे में, AI-संचालित फायर कंट्रोल इसे टारगेट की स्वचालित पहचान और वर्गीकरण में मदद करेगा. यह कम रडार क्रॉस-सेक्शन (RCS) वाले लक्ष्यों को भी 2-5 किलोमीटर की रेंज में डिटेक्ट कर सकता है.

बता दें, नौसैनिक CIWS के स्थिर माउंट के विपरीत, यह लैंड वेरिएंट 8x8 पहियों वाले चेसिस पर ट्रक-माउंटेड होगा. वहीं, यह शूट-एंड-स्कूट (Shoot-and-Scoot) रणनीति के लिए जरूरी मूवमेंट प्रदान करेगा, जिससे जवाबी हमले की स्थिति में इसकी लाइफ साइकिल काफी बढ़ जाएगी.

कब तक बनकर होगा तैयार?
रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के तहत ARDE इस परियोजना को पूरी तरह से स्वदेशी घटकों के साथ विकसित करने पर जोर दे रहा है, जो आत्मनिर्भर भारत पहल के अनुरूप है. इस पहल के लिए अनुमानित 500-800 करोड़ रुपये की फंडिंग टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट फंड (TDF) के माध्यम से की जाएगी.

ARDE ने मध्य-2026 तक इस प्रणाली के शुरुआती प्रोटोटाइप तैयार करने की योजना बनाई है, जिसके बाद सेना के कोर ऑफ आर्मी एयर डिफेन्स (C-AAD) द्वारा उपयोगकर्ता परीक्षण (User Trials) शुरू किए जाएंगे. इसके बाद इस सिस्टम कोआकाशतीर कमांड नेटवर्क के साथ इंटीग्रेट किया जाएगा, जिससे सेना और वायु सेना के बीच बेहतर तालमेल स्थापित हो सके.

ऑपरेशन सिंदूर के बाद बदली रणनीति
ऑपरेशन सिंदूर ने स्पष्ट कर दिया कि ड्रोन झुंड (drone swarms) और सटीक-निर्देशित म्यूनिशंस से कैसे हमला हो सकता है. इस संघर्ष के बाद, भारतीय सेना ने इस प्रोजेक्ट को प्राथमिकता दी है. सेना का लक्ष्य एक बंदूक-आधारित टर्मिनल डिफेंस सॉल्युशन बनाना है, जो सीमा पार से लॉन्च किए गए विभिन्न खतरों को निष्क्रिय कर सके.

सेना के एक सूत्र के मुताबिक, ‘यह प्रणाली अंतिम स्वचालित सुरक्षा कवच के रूप में काम करेगी, खतरों को उस अंतिम चरण में रोकेगी जहां लंबी दूरी की SAMs कम पड़ जाती हैं.’

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