DRDO Zorawar tank: DRDO की प्रमुख प्रयोगशाला CVRDE यानी कॉम्बैट व्हीकल्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टैब्लिशमेंट ने 800 हॉर्सपावर के ऑटोमैटिक ट्रांसमिशन के लिए रिक्वेस्ट फॉर इंफॉर्मेशन (RFI) जारी कर दिया है. इस ट्रांसमिशन का इस्तेमाल भारत की अगली पीढ़ी के ट्रैक वाले सैन्य वाहनों, खासकर बहुप्रतीक्षित 'जोरावर' लाइट टैंक को ताकत देने के लिए किया जाएगा. ऐसे में, 'जोरावर' एक मजबूत, पूरी तरह से स्वदेशी पावर पैक ट्रांसमिशन से लैस हो जाएगा. जो इसे ऊंचे पहाड़ों और मुश्किल इलाकों में बेहतरीन प्रदर्शन करने में मदद करेगा.
जोरावर को कैसे देगा ताकत?
CVRDE द्वारा 800 HP ऑटोमैटिक ट्रांसमिशन के लिए RFI जारी करना एक महत्वपूर्ण घोषणा है. यह ट्रांसमिशन किसी भी सैन्य वाहन का दिल होता है, जो उसकी स्पीड, पैंतरेबाजी और मुश्किल जमीनों पर प्रदर्शन को सीधे तौर पर प्रभावित करता है. इस ट्रांसमिशन को विकसित करने का मुख्य लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि LAC पर तैनात होने वाला भारत का पहला लाइट टैंक 'जोरावर' पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक पर निर्भर हो.
जोरावर के लिए क्यों जरूरी?
'जोरावर' लाइट टैंक को खास तौर पर ऊंचाई वाले क्षेत्रों जैसे लद्दाख और पूर्वी सीमा पर तैनात करने के लिए बनाया जा रहा है. ऐसे में, 800 हॉर्सपावर का यह ऑटोमैटिक ट्रांसमिशन जोरावर को पहाड़ों और बर्फीले रास्तों पर तेजी से चलने और पैंतरेबाजी करने की शक्ति देगा.
ऑटोमैटिक ट्रांसमिशन से सैनिकों के लिए टैंक चलाना आसान हो जाएगा, जिससे वे युद्ध पर ज्यादा ध्यान दे पाएंगे और उनकी थकावट भी कम होगी. ट्रांसमिशन उस पावर पैक का एक जरूरी हिस्सा होगा, जिसमें इंजन और ट्रांसमिशन दोनों शामिल होते हैं. CVRDE की योजना है कि 'जोरावर' के लिए एक ऐसा पावर पैक बनाया जाए जो कम तापमान और कम ऑक्सीजन वाले माहौल में भी बेहतरीन काम करे.
स्वदेशी ताकत में होगा इजाफा
वर्तमान में, भारत कई सैन्य वाहनों के लिए ट्रांसमिशन जैसी जरूरी तकनीकों के लिए विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भर रहता है. 800 hp के ट्रांसमिशन को भारत में ही बनाने की यह कोशिश, भविष्य में रक्षा आयात पर निर्भरता को कम करेगी. स्वदेशी ट्रांसमिशन का मतलब है कि महत्वपूर्ण सैन्य तकनीक हमारे अपने नियंत्रण में रहेगी, जिससे युद्ध के समय सप्लाई चेन की चिंताएं खत्म हो जाएंगी और तकनीक की सुरक्षा सुनिश्चित होगी.
क्या है RFI का उद्देश्य?
CVRDE द्वारा RFI जारी करने का मतलब है कि वे अब देश और विदेश की उन कंपनियों से जानकारी और प्रस्ताव मांग रहे हैं जो इस उच्च-क्षमता वाले ट्रांसमिशन को बनाने की क्षमता रखती हैं. RFI से पता चलेगा कि कौन सी भारतीय कंपनियां इस प्रोजेक्ट में DRDO के साथ साझेदारी कर सकती हैं.
यह संभव है कि DRDO किसी विदेशी पार्टनर से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर लेकर इसे भारत में ही बनवाए, जैसा कि कई अन्य रक्षा परियोजनाओं में किया गया है. आपको बता दें, 'जोरावर' टैंक को जल्द से जल्द सेना को सौंपने के लिए काम तेजी से चल रहा है, और यह स्वदेशी तकनीक के मामले में एक असाधारण ताकत बनकर उभरेगा.
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