अर्थ फेस्टिवल 2020: संस्कृति के प्रति जिज्ञासा पैदा करने वाला भारत का एकमात्र आयोजन प्रारम्भ

देश की राजधानी दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में प्रारम्भ हुआ तीन दिवसीय अर्थ सांस्कृतिक महोत्सव जिसका उद्घाटन राज्यसभा सांसद डॉक्टर सुभाष चंद्रा के कर कमलों से सम्पन्न हुआ. अपने संबोधन में राज्यसभा सांसद डॉ सुभाष चंद्रा ने कहा कि यह सांस्कृतिक महोत्सव वेद, राजनीति और संस्कृति पर चर्चा के मंच की भूमिका का निर्वाह करेगा ताकि देश के बच्चों और युवाओं को संस्कृति से जोड़ा जा सके..   

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Feb 21, 2020, 06:59 PM IST
    • संस्कृति के प्रति जिज्ञासा पैदा करने वाला भारत का एकमात्र आयोजन अर्थ फेस्टिवल
    • तीन दिवसीय फेस्टीवल का द्वितीय संस्करण आरंभ
    • संस्कृति के उत्सव का आयोजन है अर्थ फेस्टीवल
    • संस्कृति का सहज विश्लेषण प्रस्तुत किया डॉक्टर सुभाष चन्द्रा ने
    • ''अर्थ का लक्ष्य भारतीय सभ्यता का अर्थ ढूंढना है''
    • ''प्राचीन भारत को आधुनिक भारत से जोड़ने का प्रयास है अर्थ फेस्टीवल''
    • ''यह संस्कृति पर कौतुहल पैदा करने वाला भारत का इकलौता आयोजन है यह''
    • ''वेदों की समग्रता जीवन का मार्गदर्शन है''
    • ''माइथॉलजी मिथ नहीं, वास्तविकता है''
अर्थ फेस्टिवल 2020: संस्कृति के प्रति जिज्ञासा पैदा करने वाला भारत का एकमात्र आयोजन प्रारम्भ

 

नई दिल्ली. अपने आप में अनूठा और देश की सभ्यता-संस्कृति का परिचय देने वाला सांस्कृतिक समारोह, अर्थ फेस्टिवल दिल्ली में प्रारम्भ हुआ. तीन दिवसीय इस आयोजन का उद्घाटन एस्सेल ग्रुप के चेयरमैन और राज्यसभा सांसद डॉक्टर सुभाष चंद्रा के गंभीर एवं मार्गदर्शक सम्बोधन का साक्षी बना. श्री सुभाष चंद्रा ने महोत्सव को लेकर अपने विचार प्रगट करते हुए कहा कि अर्थ फेस्टिवल भारत का एकमात्र ऐसा सांस्कृतिक उत्सव है जो युवाओं और बच्चों के बीच भारतवर्ष की संस्कृति और सभ्यता को लेकर जिज्ञासा पैदा करता है.

 

संस्कृति का सहज विश्लेषण प्रस्तुत किया डा. चन्द्रा ने

महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर अर्थ फेस्टिवल के सेकंड एडिशन में अपना उद्घाटन भाषण श्री सुभाष चंद्रा ने ॐ नमः शिवाय के उच्चार से प्रारम्भ किया. इस विशद सांस्कृतिक आयोजन की विषय-वस्तु अर्थात संस्कृति की विवेचना करते हुए श्री सुभाष चंद्रा ने बताया कि संस्कृति का अर्थ सिर्फ सरकार के द्वारा दी गई परिभाषा नहीं है, अपितु संस्कृति मानव जीवन के लिए सभी कुछ है. जन्म से मृत्यु तक जो जो कुछ भी जीवन में होता है वह संस्कृति का ही हिस्सा है.

''वेदों की समग्रता जीवन का मार्गदर्शन है''

वेदों पर अपने विचार रखते हुए डॉक्टर सुभाष चंद्रा ने कहा कि भारतीय आध्यात्म की विरासत हैं हमारे वेद. यदि हम अपने वेदों का समग्र अध्ययन करें तो पाएंगे कि इनमें हमारे समस्त कर्तव्य एवं सम्पूर्ण अधिकार भी सन्निहित हैं. शास्त्रों में तो यहां तक बताया गया है कि किसी राजा को कितना टैक्स लगाना चाहिए और उस टैक्स से उपार्जित धन का कितना अंश जनकल्याण में व्यय किया जाना चाहिये. यहां तक कि व्यवसायियों के लिए भी शास्त्रों में दिशानिर्देश है कि अपनी आय का कितना उनको अपने ऊपर व्यय करना चाहिए और कितना समाज के कल्याण हेतु उपयोग करना चाहिए.

 

''माइथोलजी मिथ नहीं, वास्तविकता है''

सबसे महत्वपूर्ण जो ध्यानाकर्षण डॉक्टर सुभाष चंद्रा ने किया उसमें उन्होंने समझाया कि माइथॉलजी को मिथ शब्द से जोड़ कर देखा जाता है जबकि आज का विज्ञान और इतिहास अब यह स्वीकार करने को विवश हो गये हैं कि रामायण और महाभारत जैसे हमारे माइथॉल्जिकल स्क्रिप्चर्स मिथ नहीं थे, बल्कि वास्तविकता के धरातल पर आधारित जीवन्त घटनाएं थीं. आज के युवाओं में भारतवर्ष की संस्कृति को लेकर कुछ कन्फ्यूज़न दर्शित होता है किन्तु मुझे पूर्ण विश्वास है कि अर्थ फेस्टिवल देश के युवाओं के भीतर इस कन्फ्यूज़न को समाप्त करने में अहम भूमिका निभाएगा.  

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