एक ऐसा खेल, जो आज दुनिया में सबसे ज्यादा सोचा-समझा जाने वाला माना जाता है. जहां हर चाल सोच-समझकर चलनी पड़ती है, जहां दिमाग सबसे बड़ा हथियार बनता है. आज ये खेल ओलंपियाड्स और इंटरनेशनल टूर्नामेंट्स का हिस्सा है. लेकिन क्या आपको पता है कि इस खेल की शुरुआत कहां से हुई? चलिए आपको इसकी जड़ तक ले चलते हैं.
जब दिमाग बना हथियार
जिस खेल की हम बात कर रहे हैं, वो कोई सामान्य खेल नहीं. इसमें कोई दौड़ नहीं होती, कोई गेंद या मैदान नहीं होता, लेकिन खिलाड़ी पूरी दुनिया में सराहे जाते हैं. क्योंकि ये खेल दिमाग से लड़ा जाता है, और हर एक चाल युद्ध जैसी होती है. यह खेल सिखाता है, रणनीति, धैर्य और सोचने की ताकत. हर मोहरे का अपना रोल है, हर चल एक योजना का हिस्सा.
1500 साल पहले हुई थी शुरूआत
आज से करीब 15 शताब्दी पहले, भारत का एक युग था, जिसे हम गुप्त काल के नाम से जानते हैं. ये काल सिर्फ कला और साहित्य में नहीं, बल्कि ज्ञान और युद्ध कौशल में भी समृद्ध था. इसी दौरान एक नया खेल जन्मा, जो बिना खून-खराबे के युद्ध की एक झलक देता था. इस खेल का नाम था 'चतुरंग'.
चतुरंग: भारत की देन
चतुरंग का मतलब होता है, चार अंगों वाला. ये चार अंग थे, प्यादा, घोड़ा, हाथी और रथ. ये दरअसल भारतीय सेना के चार मुख्य अंग माने जाते थे. राजाओं और सेनापतियों के बीच यह खेला जाता था, ताकि वे युद्ध की रणनीति खेल के जरिए सीख सकें. यानी ये खेल मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षा और युद्ध नीति का भी हिस्सा था.
भारत से निकला, दुनिया ने अपनाया
धीरे-धीरे चतुरंग भारत की सीमाओं को पार कर गया. सबसे पहले यह खेल फारस (ईरान) पहुंचा, जहां इसे नया नाम मिला 'शतरंज'. फारसी भाषा में 'शाह' का मतलब होता है राजा, और 'मात' का मतलब हार गया. यानी शाह मात 'राजा हार गया'. अरब आक्रमणकारियों के जरिए यह खेल यूरोप पहुंचा. वहां जाकर इसे कहा गया Chess. यूरोप में मोहरे थोड़े बदले, नियमों में थोड़ा फेरबदल हुआ, लेकिन खेल की आत्मा वही रही, भारतीय चतुरंग.
आज भी भारत का असर बाकी है
आज शतरंज को दिमागी खेलों का राजा कहा जाता है. भारत के विश्वनाथन आनंद जैसे खिलाड़ी इस खेल को एक नई ऊंचाई पर ले गए. अब भारत से कई युवा खिलाड़ी दुनिया भर में जीत हासिल कर रहे हैं.