FAQ: आसान सवाल-जवाब में जानिए रानी लक्ष्मीबाई के बारे में खास बातें, जो आपको जाननी चाहिए
सफेद साड़ी पहनकर जब रानी लक्ष्मीबाई युद्ध भूमि में उतरीं तो वह शोक संतप्त विधवा नहीं बल्कि अंग्रेजी सेना को कफन ओढ़ाने निकलीं साक्षात मृत्यु लग रही थीं. जानिए उनके बारे में खास बातें-
नई दिल्लीः Rani LaxmiBai: 17 जून 1858, इतिहास के पन्नों में दर्ज यह तारीख बेहद खास है. यह तारीख बताती है कि गंगा-यमुना के इस देश में जितनी निर्मल नदियां बहती हैं, उससे कहीं अधिक वीर खून इसकी धमनियों में बहता है.
लक्ष्मीबाई (Rani Laxmibai) जैसी मर्दानियां अगर वीर लड़ाकों को जन्म देती हैं तो समय आने पर खुद भी रणचंडी बन किसी को भी धूल चटा सकती हैं. वीरगति दिवस पर कुछ आसान सवालों में जानिए रानी लक्ष्मीबाई (Rani Laxmibai) के संघर्ष की गाथा-
कब हुआ था रानी लक्ष्मीबाई का जन्म?
19 नवंबर 1828 को बनारस में रानी लक्ष्मी बाई (Rani Laxmibai) का जन्म हुआ था. जब इस दिव्य बालिका का जन्म हुआ था. ज्योतिषियों ने तभी इसे उज्ज्वल भविष्य की स्वामिनी बता दिया था.
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लक्ष्मीबाई के माता-पिता कौन थे?
लक्ष्मीबाई के पिता मोरोपंत एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे. माता भागीरथीबाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ स्वभाव की थीं. लक्ष्मी बाई के बहुत बचपन में ही उनकी मां की मृत्यु हो गई.
कैसा था लक्ष्मीबाई का बचपन?
लक्ष्मीबाई (Rani Laxmibai) का एक नाम मणिकर्णिका भी था. उन्हें बचपन में सभी प्यार से मनु बुलाते थे. अपनी बाल सुलभ शैतानियों से वह सभी का मन मोह लेती थीं.
घर में मनु की देखभाल के लिए कोई नहीं था इसलिए पिता मोरोपंत तांबे मनु को अपने साथ पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में ले जाने लगे. जहां चंचल और सुन्दर मनु को सब लोग प्यार से "छबीली" कहकर बुलाने लगे.
लक्ष्मीबाई की शिक्षा-दीक्षा जानिए
पेशवा के यहां ही मनु की शिक्षा की व्यवस्था कर दी गई. यहां उन्होंने ब्राह्मणों से शास्त्र पढ़े और सैनिकों के साथ रहते-रहते शस्त्र चलाना भी सीख लिया. खुद नानासाहब पेशवा उन्हें बड़े भाई की तरह तलवार चलाना सिखाते थे और उनके साथ घुड़दौड़ भी करते थे.
तेज-तर्रार लक्ष्मी बाई (Rani Laxmibai) ने सारी विद्याएं लगन से सीख लीं. सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी कविता में लिखा है- नाना के संग खेली थी वह, नाना के संग पढ़ती थी. बरछी ढाल-कृपाण कटारी, उसकी यही सहेली थीं.
कब और किससे हुआ लक्ष्मीबाई का विवाह
साल 1842 में मनु का विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ. इसके बाद वह रानी लक्ष्मीबाई बनकर झांसी आ गईं. गंगाधार राव मराठा शासित राजा थे. सबकुछ ठीक चल रहा था. 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया.
झांसी पर संकट कब से आए?
रानी मां तो बनीं, लेकिन दुःखद की महज चार महीने बाद उस दुधमुंहे की मृत्यु हो गई. पुत्र की मृत्यु के ठीक दो साल बाद 1853 में राजा गंगाधर राव की भी मृत्यु हो गई.
इसके पहले उन्होंने एक पुत्र को गोद लिया था. इस दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया था. राजा की मृत्यु होते ही अंग्रेज झांसी पर चढ़ आए थे.
अंग्रेजों ने क्या चाल चली
ब्रितानी राज ने अपनी राज्य हड़प नीति के तहत बालक दामोदर राव के ख़िलाफ़ अदालत में मुक़दमा दायर कर दिया. हालांकि मुक़दमे में बहुत बहस हुई, लेकिन इसे खारिज कर दिया गया. ब्रितानी अधिकारियों ने राज्य का खजाना जब्त कर लिया और उनके पति के कर्ज को रानी के सालाना खर्च में से काटने का फरमान जारी कर दिया.
इसके परिणाम स्वरूप रानी को झांसी का किला छोड़कर झांसी के रानीमहल में जाना पड़ा. रानी लक्ष्मीबाई (Rani Laxmibai) ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होंने हर हाल में झांसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय किया.
कौन थीं झलकारी बाई
झांसी 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहां हिंसा भड़क उठी. रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया. इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गयी और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया. साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया. झलकारी बाई जो लक्ष्मीबाई (Rani Laxmibai) की हमशक्ल थी को उसने अपनी सेना में प्रमुख स्थान दिया.
सबसे पहले रानी ने किन राज्यों को हराया?
लॉर्ड डलहौजी की राज्य हड़प नीति चरम पर थी. इससे पहले वह सतारा, जैतपुर, उदयपुर आदि राज्यों को हड़प चुका था. सर ह्यूरोज उसका अंग्रेजी सेना का सेनापति बनकर झांसी को घेरने की तैयारी कर चुका था. रानी न तो शोक मना सकीं और न ही वैधव्य को अपना सकीं.
उन्होंने तुरंत ही अपनी साहसी सहेली झलकारी के नेतृत्व में महिला लड़ाकाओं की सेना तैयार की और उन्हीं की सहायता से सबसे पहले पड़ोसी राज्य ओरछा और दतिया के आक्रमण को विफल किया जो लक्ष्मीबाई (Rani Laxmibai) को अकेली औरत समझकर झांसी को हथियाने आए थे.
अंग्रेजों के आक्रमण से कैसे लड़ीं रानी?
1858 की जनवरी में अंग्रेजों ने झांसी पर आक्रमण कर दिया और दुर्ग को घेर लिया. रानी (Rani Laxmibai) ने दामोदर राव को पीठ पर बांधा, घोड़े पर बैठीं और दोनों हाथों में तलवार लेकर अंग्रेजी सेना पर टूट पड़ीं. भयंकर मार काट मचाती हुई रानी आगे बढ़ते जा रही थीं. इस दौरान उन्होंने मुंह में घोड़े की लगाम दबा रखी थी.
इस तरह रास्ता बनाते हुए लक्ष्मीबाई कालपी की ओर बढ़ीं. कालपी पहुंचने पर उनकी मुलाकात तात्याटोपे से हुई. तात्या की तोपों ने अंग्रेजी सेना में खूब खलबली मचाई. दोनों ने मिलकर ग्वालियर के एक किले पर कब्जा कर लिया.
अंग्रेजों से घिरी रानी कैसे निकल गईं?
दो हफ्तों की इस लड़ाई में रानी जब एक बार घिरीं तो झलकारी बाई आगे आईं और ठीक उसी तरह युद्ध करने लगीं, जैसे रानी दोनों हाथों में तलवार लेकर मारकाट मचा रही थीं, इससे अंग्रेज सैनिक गफलत में पड़ गए और झलकारी को घेर लिया. रानी को मौका मिल गया और वह आगे बढ़ गईं, लेकिन इतने में जनरल ह्यूरोज आगे आ गया और उसके पीछे एक-एक कर दस लड़ाके थे.
कैसे मिली रानी लक्ष्मीबाई को वीरगति
ग्वालियर के पास कोटा की सराय में रानी शत्रुओं से बुरी तरह घिर गईं. यहां उन्होंने वीरता से सामना किया और आगे बढ़ने लगी. उनका घोड़ा कुछ नया था और आगे नाला देखकर अड़ गया. रानी ने उसे जोर की एड़ लगाई. घोड़े ने नाला तो पार करा दिया, लेकिन गिरा तो फिर उठा नहीं. रानी अब तक बुरी तरह घायल हो चुकी थीं और इसी कोटा की सराय के पास उन्होंने वीरगति मिली. यह 17-18 जून की तारीख थी.
सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता क्या कहती है?
रानी लक्ष्मीबाई की कहानी भारतीय इतिहास की सबसे मूल्यवान कहानी है.
रानी की वीरगति को सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी एक और कविता में ढाला है.
इस समाधि में छिपी हुई है, एक राख की ढेरी ,
जल कर जिसने स्वतंत्रता की, दिव्य आरती फेरी.
यह समाधि यह लघु समाधि है, .झांसी की रानी की ,
अंतिम लीलास्थली यही है, लक्ष्मी मरदानी की.
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