नई दिल्ली: किसानों के नाम अराजक तत्वों ने देश की राजधानी को बंधक बनाने की कोशिश की. खुलेआम देश का अपमान किया गया. एक तरफ राजपथ पर देश का शौर्य दिखाई दिया, तो दूसरी तरफ टेरर वाली किसान परेड निकाली गई. किसान आंदोलन के नाम पर फर्जी किसानों ने भारतीय लोकतंत्र को पूरी दुनिया में बदनाम कर दिया. ट्रैक्टर से कानून को कुचलने की कोशिश की, पुलिस के जवानों को कुचलने की कोशिश की. किसानों को ढाल बनाकर देश के गद्दारों ने दिल्ली में गदर मचा दिया.
ये किसान नहीं, देश के गद्दार हैं!
देश से गद्दारी करने वाले ये किसान नहीं हो सकते हैं, क्योंकि ये इत्तेफाक नहीं हो सकता है कि किसान आंदोलन को कुछ राजनीतिक ठेकेदारों ने सियासी दुकान चमकाने ढर्रा समझ लिया और किसानों को एक हथियार के तरह इस्तेमाल करने लगे. राहुल गांधी समेत कांग्रेस नेताओं ने इस आंदोलन की आड़ में अपनी छाती पीट-पीटकर हाय-तौबा मचाते रहे. पूरा का पूरा विपक्ष एक सुर में इस आंदोलन को राजनीतिक मुद्दा बना दिया और खूब बकवास करने लगे.
संविधान को जख्मी करके क्या सफल हो गया किसान आंदोलन? गुनहगार कौन
कांग्रेस के युवराज राहुल के किसान पॉलिटिक्स का नापाक मंसूबा तो सामने आया ही, साथ ही अरविंद केजरीवाल का भी दोहरा चरित्र बेनकाब हो गया. पराली-पराली करके प्रदूषण का रोना-रोने वाले केजरीवाल साहेब को पराली पर बने कानून से भी तकलीफ होने लगी. तकलीफ की वजह सिर्फ राजनीति थी. तभी तो जब दिल्ली में फर्जी किसानों ने उत्पात मचाया, तो उनकी जुबान पर ताला जड़ा रहा. अंत में केजरीवाल ने सिर्फ निंदा कर दिया. अरे केजरीवाल साहब, क्या आपको शर्म नहीं आई?
बैरिकेड्स तोड़ने की शुरुआत तो राहुल गांधी के कांग्रेसी साथियों ने की थी. जब दिल्ली की सड़कों पर राहुल-प्रियंका ने जमकर बवाल काटा था. लेकिन अफसोस उनको भी शर्म कहां आ रही होगी. दिल्ली को डराने वालों के साथ कांग्रेस का हाथ है.
विपक्ष की गंदी राजनीति से दिल्ली में खौफ
अब संजय राउत की असलियत कहां किसी से छिपी है. उन्होंने भी कानूनों के खिलाफ जमकर नौटंकी की और अब निंदा कर रहे हैं और सरकार को कोस रहे हैं. उन्होंने बैक-टू-बैक दो ट्वीट किया और लिखा कि 'अगर सरकार चाहती तो आज की हिंसा रोक सकती थी. दिल्ली में जो चल रहा है उसका समर्थन कोई नहीं कर सकता. कोई भी हो लाल किल्ला और तिरंगे का अपमान सहेन नहीं करेंगे. लेकिन माहौल क्यों बिगड़ गया? सरकार किसान विरोधी कानून रद्द क्यों नहीं कर रही? क्या कोई अदृश्य हात राजनीति कर रहा है? जय हिंद'
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दूसरे ट्वीट में उन्होंने लिखा कि 'क्या सरकार इसी दिन का बेसब्री से इंतजार कर रही थी? सरकार ने आखिर तक लाखों किसानों की बात नही सुनी. ये किस टाइप का लोकतंत्र हमारे देश में पनप रहा है? ये लोकतंत्र नही भाई.. कुछ और ही चल रहा है. जय हिंद' उनके ट्वीट से ये समझना आसान है कि संजय राउत साहब को भी शर्म नहीं आती है.
अराजक तत्वों पर होगी कड़ी कार्रवाई
दिल्ली में बवाल पर केंद्रीय गृह मंत्रालय सख्त है. अर्धसैनिक बलों की 15 कंपियनां तैनात की गई हैं और दंगाइयों से सख्ती से निपटने का आदेश दिया गया है. दिल्ली हंगामे पर विपक्ष की सियासत भी शुरू हो गई है. पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा है कि दिल्ली को खाली करो. वहीं नवजोत सिंह सिद्धू ने भड़काऊ बयानबाजी करते हुए कहा कि किसान से जीतना मुश्किल है. ऐसा लग रहा है कि सिद्धू को शर्म नहीं आती है. अब उन लोगों से कुछ सवाल है, जो सिर्फ किसानों को मोहरे की तरह इस्तेमाल करते रहे.
किसान नेताओं से 10 बड़े सवाल
सवाल नंबर 1). हिंसा भड़काने वालों को क्यों जमा किया?
सवाल नंबर 2). शांतिपूर्ण मार्च का वादा कर धोखा क्यों दिया?
सवाल नंबर 3). हंगामे की आशंका के बावजूद ट्रैक्टर परेड क्यों की?
सवाल नंबर 4). हंगामा ब्रिगेड ने तिरंगे का अपमान किया, गुनहगार कौन?
सवाल नंबर 5). फर्जी किसानों ने हंगामा किया तो किसान नेता कहां थे?
सवाल नंबर 6). फर्जी किसानों ने पुलिसवालों को पीटा तो किसान नेता कहां थे?
सवाल नंबर 7). ट्रैक्टर मार्च का रूट मनमाने तरीके से बदला, नेता कहां थे?
सवाल नंबर 8). लाल किले के प्राचीर पर हंगामा किया, नेता कहां थे?
सवाल नंबर 9). ITO पर घंटों हंगामा और तोड़फोड़ की, नेता कहां थे?
सवाल नंबर 10). मीडियाकर्मियों को मारा-पिटा, बदसलूकी की, नेता कहां थे?
इन सारे सवाल का जवाब इन चार नेताओं को तो देना ही पड़ेगा, क्योंकि किसानों के नाम पर हिंसा भड़काने के पीछे सबसे बड़ा हाथ इन्हीं चार नेताओं का है.
1). राकेश टिकैत
2). हन्नान मुल्लाह
3). दर्शन पाल
4). योगेंद्र यादव
आज हिन्दुस्तान पूछ रहा है कि आखिर गणतंत्र पर तलवार तंत्र वाली साजिश किसकी है. हल पकड़ने वाले हाथों में हथियार किसने पकड़ाए और किसने उन्हें देश को बदनाम करने की साजिश का मोहरा बनाया. दिल्ली को बंधक बनाने की साजिश एक बार फिर क्यों रची गई. किसके इशारे पर शांत किसान भड़के और दिल्ली में अराजकता का माहौल बन गया. दिल्ली में घुसकर तलवार, भाले लेकर पुलिस पर हमला किसके इशारे पर किया गया. जब सरकार ने शांतिपूर्ण ट्रैक्टर मार्च निकालने की इजाजत दे दी थी, फिर क्यों गुंडागर्दी और हंगामा किया गया. जिस दिन देश गणतंत्र दिवस मना रहा था और दुनिया को अपनी ताकत दिखा रहा था, उस दिन देश के साथ गद्दारी क्यों की गई?
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सोचिए.. क्या वो किसान हो सकते हैं? वो देश का अन्नदाता नहीं हो सकता जो लाल किले पर तांडव करे. ट्रैक्टर मार्च के नाम पर दंगाई ब्रिगेड ने तिरंगा उठाकर देश का जो अपमान किया और राष्ट्रपर्व पर कलंक लगाने की कोशिश की. ऐसे लोगों का पक्का हिसाब किताब होगा. कोई भी सच्चा हिन्दुस्तानी, सच्चा किसान ऐसे गद्दारों को माफ नहीं करेगा.