भारत की आजादी की लड़ाई में कई शहरों ने अहम भूमिका निभाई, लेकिन कुछ कहानियां ऐसी हैं, जो इतिहास के पन्नों में पीछे छूट गईं. एक ऐसा ही शहर है उत्तर प्रदेश का बलिया जिला, जिसने 1942 में ऐसा काम कर दिखाया था, जिसकी हिम्मत उस दौर में बड़े-बड़े शहर भी नहीं कर पाए. ये कहानी है एक छोटे जिले की, जहां जनता ने ना सिर्फ अंग्रेजी शासन को चुनौती दी, बल्कि खुद का स्वतंत्र प्रशासन भी बना लिया.
भारत छोड़ो आंदोलन की क्रांति
साल 1942 में महात्मा गांधी ने 'भारत छोड़ो आंदोलन' की शुरूवात की. इस आंदोलन की गूंज बलिया तक पहुंची और वहां की मिट्टी में जैसे क्रांति की चिंगारी फूट पड़ी. बाकी देश की तरह बलिया में भी विरोध प्रदर्शन शुरू हुए, लेकिन जल्द ही ये विरोध सीधा विद्रोह में बदल गया. यहां लोगों ने सिर्फ नारेबाजी नहीं की, बल्कि शासन अपने हाथ में लेने का साहस दिखाया.
बलिया की क्रांति का चेहरा
बलिया की इस बगावत की अगुवाई कर रहे थे स्वतंत्रता सेनानी चित्तू पांडेय, जिन्हें लोग सम्मान से 'बलिया के गांधी' कहते थे. उन्होंने गांव-गांव जाकर लोगों को संगठित किया और अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट किया. उनके नेतृत्व में हजारों लोग इकट्ठा हुए, जिनमें किसान, छात्र और आम नागरिक शामिल थे. सभी ने मिलकर एक बड़ा फैसला लिया कि बलिया को अंग्रेजों से मुक्त कराना है.
जब बलिया हुआ था आजाद
19 अगस्त 1942 को बलिया की जनता ने अंग्रेजी प्रशासन को उखाड़ फेंका. हजारों लोगों की भीड़ ने कलेक्टर ऑफिस, थाने और शस्त्रागार पर कब्जा कर लिया. ब्रिटिश अधिकारियों को जिले से खदेड़ दिया गया. बलिया के क्रांतिकारियों ने जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानियों को भी रिहा करा लिया और एक स्थायी स्वराज सरकार का गठन किया. कुछ दिन के लिए बलिया पूरी तरह ब्रिटिश शासन से मुक्त हो गया था, जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक ऐतिहासिक क्षण था.
अंग्रेजों की वापसी और बलिया की कुर्बानी
बलिया की आजादी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी. 22 और 23 अगस्त की दरमियानी रात अंग्रेजों ने सेना भेजकर बलिया को दोबारा अपने कब्जे में ले लिया. चित्तू पांडेय समेत कई स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ्तार कर लिया गया. कई लोगों को पीटा गया, घर जलाए गए, लेकिन बलिया की जनता का हौसला नहीं टूटा.
क्यों कहलाता है बलिया 'बागी बलिया'
बलिया की इसी बगावत ने उसे एक नया नाम दिया, 'बागी बलिया'. यह वो जमीन थी, जहां आजादी सिर्फ सपना नहीं, सच्चाई बन गई थी. बलिया की जनता ने दिखा दिया कि आजादी की जंग में छोटे शहर भी बड़ा योगदान दे सकते हैं. ये बगावत बाकी देश के लिए प्रेरणा बनी और इसने स्वतंत्रता आंदोलन को और मजबूती दी.