नई दिल्ली: नोटबंदी के आज तीन साल पूरे हो गए हैं. सरकार ने नोटबंदी का हवाला देते हुए यह कहा था कि Long run में या यूं कहें कि भविष्य में अर्थव्यवस्था को इससे फायदा होगा. तीन साल बाद जब समीक्षाएं की जा रही हैं तो मिले-जुले तर्क परोसे जा रहे हैं. इसी बीच जो सबसे जरूरी बयान सामने आया, वह हाल ही में अपना कार्यकाल खत्म करने वाले पूर्व वित्तीय सचिव सुभाष चंद्र गर्ग का है. सुभाष गर्ग ने कहा कि सरकार एक बार फिर 2000 के बड़े नोट को बाजार से बंद करा सकती है. गर्ग ने कहा कि हालिया सरकारी क्षेत्रों से ज्यादा निजीकरण को बढ़ावा देने की सक्रिय नीति, सरकारी खजाने पर राजस्व घाटे की समीक्षा जो RBI की जगह सरकार खुद ही करे और 2000 के बड़े नोटों को अर्थव्यवस्था से बाहर करना ये सब तमाम उपाय भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नई मजबूती दे सकते हैं.
गर्ग ने रिटायरमेंट से पहले सौंपी 72 पेज की रिपोर्ट
पूर्व वित सचिव सुभाष चंद्र गर्ग का कार्यकाल 31 अक्टूबर को ही खत्म हुआ. अपने रिटायरमेंट के बाद मंगलवार को गर्ग ने अपनी एक नोट में अर्थव्यवस्था के लिए कुछ जरूरी कदम सुझाए जो मंद पड़ गई बाजार में तेजी लाने के लिहाज से लाभकारी हो सकते हैं. गर्ग ने 72 पेज के अपने नोट में लिखा कि बैंकों पर बढ़ते कर्ज की समस्या हमारे क्रेडिट स्कोर को खराब कर रही है, राजस्व पर दबाव बढ़ रहा है और भारत की राजस्व प्रबंधक तंत्र राजस्व और कर्ज के निपटारे के लिए जो तरीका अपना रही है, वह नाकाफी है.
नोट छपाई और पुराने स्टॉक का संतुलन बन रही समस्या
गर्ग ने 100 बड़ी नीतियों और सरकारी सुधारों के अलावा अर्थव्यवस्था में निवेश को बढ़ाने वाले उपायों की समीक्षा के बाद यह सारे उपाय बताए. तीन साल पहले जो 500 और 1000 के नोटों की छपाई बंद कर दी गई थी, उसका असर आज भी मुद्रा छपाई क्षेत्र पर साफ महसूस किया जा रहा है. सरकार और RBI के सामने नए नोटों की छपाई और पुराने बचे स्टॉक्स को संतुलित करने की कवायद चल रही है. वित्त मंत्रालय की ओर से Strategic Planning Group of Currency and Coins Division ने 3 जून को एक बैठक रखी थी जिसकी समीक्षा में पाया गया कि नोटबंदी के बाद से ही नोटों की छपाई और बैंक नोटों की छपाई के लिए पेपर की जरूरतें लगातार बदलते जा रही हैं.
क्यों बंद हो सकते हैं 2000 के नोट
यहीं नहीं पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग का तर्क इसलिए भी सही लगने लगता है क्योंकि हाल ही RBI और भारत सरकार के आदेशानुसार 2000 के नोटों की छपाई रोक दी गई है. 2019 में अब तक एक भी नए 2000 के नोट नहीं छापे गए हैं. यह इसलिए भी हुआ है कि बाजार में लगातार जाली नोटों के जखीरे पकड़े जा रहे हैं. 2000 के जाली नोटों की संख्या भारतीय बाजार में लगातार बढ़ती ही जा रही है. विमुद्रीकरण के बाद से देश के अलग-अलग हिस्सों में 50 करोड़ से भी ज्यादा के जाली नोट पकड़े जा चुके हैं. इसके अलावा सबसे बड़ी समस्या यह है कि बड़े नोटों की जमाखोरी भी की जाने लगी है. बाजार में इन बड़े नोटों खासकर 2000 के नोट प्रसार में नहीं आ पा रहे हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में सुस्ती छा गई है. हालांकि, बैंकों से कर्ज लेन-देन के नियमों में पारदर्शिता लाई गई है जिससे की आम खरीद-बिक्री प्रभावित न हो.