नयी दिल्ली: हालिया विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस में ‘जी 23’ समूह ने सक्रियता बढ़ा दी है और पार्टी में फिर से घमासान मचा हुआ है, वहीं पार्टी के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने गांधी परिवार से नेतृत्व छोड़ने की मांग कर दी है. देश की सबसे पुरानी पार्टी में चल रहे टकराव के विभिन्न पहलुओं पर ‘सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस)’ के शोध कार्यक्रम ‘लोकनीति’ के सह-निदेशक संजय कुमार से किए गए पांच सवाल और उनके जवाब.
सवाल: कांग्रेस के भीतर जो टकराव चल रहा है, उसके मूल कारण क्या नजर आते हैं?
जवाब: कांग्रेस में कई दिक्कतें हैं. समस्या ज्यादा गंभीर है. यह पुरानी और नयी पीढ़ी के नेताओं के बीच वैचारिक संघर्ष है. पार्टी में असंतुष्ट लोगों का एक ऐसा धड़ा बन गया है जो नेतृत्व पर सवाल कर रहा है. यह एक चुनौती है जिससे इस पार्टी को निपटना होगा. एक बड़ी समस्या यह भी दिखाई देती है कि नेताओं को एक दूसरे पर संदेह और अविश्वास है. लेकिन संदेह करके, एक दूसरे पर अविश्वास करने से काम नहीं चलेगा. मुझे लगता है कि सबसे पहले इन लोगों को खुले दिमाग से चर्चा करने की जरूरत है.
सवाल: कपिल सिब्बल ने गांधी परिवार को नेतृत्व को छोड़ने की सलाह दी है, ऐसे में क्या नेतृत्व परिवर्तन कांग्रेस में इस टकराव का समाधान है?
जवाब: पहला कदम यही होना चाहिए. नेतृत्व परिवर्तन जरूरी है. यह बड़ी गंभीर समस्या है कि नेतृत्व को अपनी पार्टी के भीतर ही चुनौती मिल रही है. ‘जी 23’ की बात करें या अन्य नेताओं की बात करें, जो स्थिति दिखाई देती है उससे यही लगता है कि पहला कदम नेतृत्व परिवर्तन का होना चाहिए.
सवाल: एक धारणा यह भी है कि गांधी परिवार के नेतृत्व छोड़ने पर कांग्रेस एकजुट नहीं रह पाएगी, क्या आप इससे सहमत हैं?
जवाब: यह एक चुनौती है. पार्टी के भीतर यह डर बना हुआ है. यह दुविधा बनी रहेगी कि गांधी परिवार का नेतृत्व नहीं रहेगा तो पार्टी एकजुट बनी रहेगी या नहीं. लेकिन कांग्रेस नेताओं को इस बारे में सोचना होगा कि क्या गांधी परिवार के नेतृत्व से हटकर एक नए नेतृत्व को परखा जाए. गांधी परिवार कांग्रेस के लिए ‘लाइबेलिटी और असेट्स’ (बोझ और पूंजी) दोनों हैं. मेरा मानना है कि ऐसी एकजुटता का क्या फायदा जब पार्टी चुनाव नहीं जीत पा रही है.
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सवाल: क्या आपको लगता है कि गांधी परिवार की सक्रियता से यह विवाद सुलझ जाएगा या फिर आने वाले समय में संकट बढ़ सकता है?
जवाब: दरार बड़ी हो चुकी है. पार्टी के भीतर अंसतुष्ट नेताओं का समूह बन गया है जिनका नेतृत्व पर भरोसा नहीं है. अब कुछ भी कर लिया जाए, लेकिन इनके बीच पहले जैसी एकजुटता नहीं दिखाई देगी. मुझे लगता है कि अगले दो साल कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण होंगे. अगर कांग्रेस लगातार हारती रही तो फिर वह 2024 का चुनाव मौजूदा स्वरूप और आकार में लड़ पाएगी, यह कह पाना मुश्किल है. कांग्रेस को एकजुट रहना उसके लिए बड़ी चुनौती है. उसे अपने नए नेतृत्व की तलाश भी करनी होगी. अगर वह चुनाव हारती रही तो फिर एकजुट रह पाना मुश्किल होगा और विभाजन की स्थिति भी पैदा हो सकती है.
सवाल: क्या आम आदमी पार्टी (आप) के विस्तार और क्षेत्रीय दलों की सक्रियता के कारण अगले लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस के सामने चुनौती बढ़ चुकी है?
जवाब: कांग्रेस को अगले लोकसभा चुनाव में विरोधियों के सामने कड़ी चुनौती पेश करने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है. नेतृत्व परिवर्तन के साथ संगठन खड़ा करना होगा और जनता का विश्वास जीतना होगा. अगर सत्तापक्ष कोई बहुत बड़ी गलती नहीं करता है तो फिलहाल कांग्रेस ऐसी स्थिति में नजर नहीं आती है कि वह भाजपा को लोकसभा चुनाव में हरा दे. आम आदमी पार्टी के विस्तार से उसके लिए निश्चित तौर पर नयी चुनौती खड़ी हुई है.
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