India-Pakistan: बंटवारे के समय सेना का बंटवारा कैसे हुआ? पाक को मिले 1,31,000 सैनिक तो भारत को कितने मिले?

Army Dividation between India Pakistan: सैनिकों को भारतीय या पाकिस्तानी सेना में शामिल होने का विकल्प दिया गया, लेकिन एक शर्त के साथ: पाकिस्तान का कोई भी मुसलमान भारतीय सेना में शामिल नहीं हो सकता और भारत का कोई भी गैर-मुस्लिम पाकिस्तानी सेना में शामिल नहीं हो सकता.

Written by - Nitin Arora | Last Updated : Mar 21, 2025, 01:30 PM IST
India-Pakistan: बंटवारे के समय सेना का बंटवारा कैसे हुआ? पाक को मिले 1,31,000 सैनिक तो भारत को कितने मिले?

India-Pakistan Partition: लगभग दो शताब्दियों तक ब्रिटिश शासन के बाद, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष अपने चरम पर पहुंच गया. 1857 के विद्रोह के साथ शुरू हुआ यह लंबा अभियान तब और तेज हो गया जब भारतीयों में स्वशासन के लिए बेचैनी बढ़ने लगी. 1945 में प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली के नेतृत्व में नव-निर्वाचित ब्रिटिश सरकार स्वतंत्रता देने के लिए दृढ़ थी, लेकिन चुनौती सांप्रदायिक तनावों के बीच एकीकृत भारत को बनाए रखने की थी.

जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी के नेतृत्व वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग नए राष्ट्र की संरचना पर सहमत नहीं हो सकी. 1946 में कैबिनेट मिशन योजना की विफलता के बाद जिन्ना की अलग मुस्लिम राज्य की मांग और भी जोरदार हो गई. देश भर में सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी, जिसमें कलकत्ता हत्याकांड और नोआखली में हुई हिंसा ने हिंदू-मुस्लिम संबंधों को खतरनाक मोड पर लाकर खड़ा कर दिया. जैसे-जैसे तनाव बढ़ता गया, ब्रिटिश अधिकारी इस निष्कर्ष पर पहुंच गए कि खून खराबा रोकने के लिए विभाजन ही एकमात्र समाधान है.

2 जून 1947 को भारत के अंतिम ब्रिटिश वायसराय एडमिरल लॉर्ड लुईस माउंटबेटन ने घोषणा की कि ब्रिटेन ने उपमहाद्वीप को दो स्वतंत्र राष्ट्रों में विभाजित करने का निर्णय लिया है. इसमें एक हिंदू-बहुल भारत और एक मुस्लिम-बहुल पाकिस्तान.

नया पाकिस्तान दो भौगोलिक रूप से अलग-अलग क्षेत्रों, पश्चिमी पाकिस्तान (आधुनिक पाकिस्तान) और पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से बना था. माउंटबेटन ने 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता की आधिकारिक तिथि निर्धारित की.

सेना का विभाजन
देश के विभाजन का मतलब सेना का विभाजन भी था. यह एक ऐसा काम था, तमाम चुनौतियों से भरा हुआ था. माउंटबेटन शुरू में भारतीय सेना को विभाजित करने के खिलाफ थे, क्योंकि उन्हें ऐहसास था कि कैसे ब्रिटिश कमान के तहत वह एक एकजुट बल के रूप में काम करती थी. उन्होंने सुझाव दिया कि भारतीय सेना को एक अंग्रेजी कमांडर के अधीन एकजुट रहना चाहिए, जो भारत और पाकिस्तान दोनों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होगी. हालांकि, जिन्ना ने इस प्रस्ताव को पूरी तरह से खारिज कर दिया और जोर देकर कहा कि पाकिस्तान के पास अपनी स्वतंत्र सेना होनी चाहिए.

सशस्त्र बलों को विभाजित करने का कार्य ब्रिटिश भारतीय सेना के अंतिम कमांडर-इन-चीफ फील्ड मार्शल सर क्लाउड औचिनलेक को सौंपा गया. 14 अगस्त, 1947 को पुरानी भारतीय सेना को भंग करने के आदेश पर हस्ताक्षर किए गए. सैनिकों को भारतीय या पाकिस्तानी सेना में शामिल होने का विकल्प दिया गया था, लेकिन एक शर्त के साथ: पाकिस्तान से कोई भी मुसलमान भारतीय सेना में शामिल नहीं हो सकता था और भारत से कोई भी गैर-मुस्लिम पाकिस्तानी सेना में शामिल नहीं हो सकता था.

ब्रिटिश सैन्य रिपोर्टों के अनुसार, भारतीय सेना के दो-तिहाई सैनिकों ने भारत के साथ रहना चुना, जबकि एक-तिहाई ने पाकिस्तान को चुना. उस समय 3,91,000 सैनिकों में से लगभग 2,60,000 भारत के साथ रहे और 1,31,000 पाकिस्तान चले गए, जिनमें से अधिकांश मुसलमान थे. नेपाल में भर्ती गोरखा ब्रिगेड को भारत और ब्रिटेन के बीच भेजा गया था.

वायु सेना और नौसेना का विभाजन
ब्रिटिश भारतीय वायु सेना में लगभग 13,000 कर्मी थे. उन्हें भी अलग किया गया. भारत के पास 10,000 वायुसैनिक रहे, जबकि पाकिस्तान को 3,000 मिले. वहीं, रॉयल इंडियन नेवी में 8,700 रक्षक थे जिसमें से भारत के पास 5,700 कर्मी रहे तो पाकिस्तान ने पास 3,000 कर्मी रहे. बता दें कि भारत के पहले सेना प्रमुख जनरल सर रॉबर्ट लॉकहार्ट थे, जबकि पाकिस्तान के पहले सैन्य नेता जनरल सर फ्रैंक मेसरवी थे.

Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.

ट्रेंडिंग न्यूज़