How Bangladesh's booming economy sank: बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था का साल 2024 से पहले खूब चर्चा होती थी, क्योंकि उस समय दुनिया भर में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में बांग्लादेश की भी अर्थव्यवस्था शामिल थी. विकसित बनने की रेस शामिल भारत की जीडीपी से कहीं ज्यादा बांग्लादेश की थी. एक एशयाई देश होने के नाते भारत के लिए यह चिंता का विषय था. हालांकि भारत और बांग्लादेश के मजबूत मित्रवत संबंध थे. इसलिए भारत अपनी रफ्तार से आगे बढ़ रहा था.
बंग्लादेश की तेजी से बढ़ती अर्थव्यव्था के पीछे पिछले 25 सालों से एक ही सरकार होना भी कुछ लोग मान रहे थे. सत्ता में 1996 से लगातर शेख हसीना की पार्टी बनी हुई थी. लगातार 5 आम चुनावों में शेख हसीना की जीत विपक्षियों को तो खटकती ही थी, लेकिन विदेशों में लोग इस करनामे से चकित थे. सभी को एक मौके की तलाश थी.
33 प्रतिशत आरक्षण की पॉलिटिक्स
यह मौका अखिरकार बांग्लादेश में छात्र आंदोलन से मिला. बांग्लादेश के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल मुक्ति वाहनी के परिवार के लोगों को नौकरियों में 33 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा था. मुक्ति वाहिनी के हीरो शेख हसीना के पिता थे. ऐसे ज्यादातर नौकरियों में हसीना की पार्टी आवामी लीग के कार्यकर्ताओं और नेताओं को परिवार को मिल रहा था. जिससे बांग्लादेश में अमीर और अमीर हो रहे थे. गरीब की स्थिति खराब हो रही थी. देश में आर्थिक असमानता बढ़ रही थी. इससे अंसतोष भी बढ़ रहा था.
आरक्षण ने डूबो दिया देश
नौकरियों में 33 प्रतिशत आरक्षण को लेकर 10 हजार छात्रों ने प्रदर्शन किया, जिसे तात्कालीन पीएम शेख हसीना ने ये कहकर खारिज कर दिया कि ये मांग जायज नहीं है. प्रदर्शन धीरे-धीरे उग्र हो गया. इसके बाद सुरक्षा बलों से झड़प में 67 लोगों की मौत हो गई. इसके बाद बड़ी संख्या में छात्र आ गए. आरक्षण विरोध से मामला सरकार के विरोध में बदल गया. इसके बाद जो हुआ पूरी दुनिया न देखा. शेख हसीना को इस्तीफा देकर देश छोड़ना पड़ा.
लोकतंत्र विरोधी शेख हसीना
इतना ही नहीं शेख हसीना पर लोकतंत्र विरोधी होने का भी आरोप लगाया गया. 2024 में हुए चुनाव में विपक्षी पार्टी बीएनपी ने आम चुनाव का बहिष्कार कर दिया. हसीना पर आरोप है कि उस चुनाव से पहले ज्यादातर विपक्षी नेताओं को किसी न किसी मामले में फंसाकर जेल भेज दिया. यह पहली बार नहीं था. इससे पहले भी चुनाव जीतने के लिए इसी तरह के हथकंडे अपनाए गए थे. इससे जनता में कहीं न कहीं दबा हुआ आक्रोश था. एक बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था इसी तरह डूब गई. शेख हसीना के अपदस्थ होने के बाद बांग्लादेश की नीति भारत विरोधी हो गई है.
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