कैसे इतना गैर जिम्मेदार हो गया विपक्ष? संसद में तोड़ी सारी मर्यादा

आखिरकार ऐसा क्यों हो रहा है कि जिस कांग्रेस पार्टी ने आजादी के बाद से सात दशक तक संसदीय लोकतंत्र के जरिये सत्ता का सुख भोगा, वो कुर्सी से उतरते ही इतने गैर जिम्मेदार कैसे हो गई.

Written by - Ayush Sinha | Last Updated : Aug 11, 2021, 11:03 PM IST
  • दोनों सदनों में काम रोको प्रस्ताव का नोटिस
  • सामने आया कांग्रेस और विपक्ष का संसदीय चरित्र
कैसे इतना गैर जिम्मेदार हो गया विपक्ष? संसद में तोड़ी सारी मर्यादा

नई दिल्ली: संसद का मॉनसून सत्र विपक्ष के हंगामे की भेंट चढ़ गया. लोकसभा में सिर्फ 21 घंटे 14 मिनट काम हुआ, तो राज्यसभा में विपक्षी सांसदों ने खूब हंगामा किया. जिसके चलते दोनों सदन अनिश्चिताल के लिए स्थगित कर दिया गया. विपक्ष की करतूतों के चलते घटना पर सभापति वेंकैया नायडू भावुक हो गए. वहीं ओम बिरला ने ZEE मीडिया से कहा कि संसद में नारेबाजी अमर्यादित आचरण है. अब सवाल उठता है कि कांग्रेस पार्टी इतनी गैर-जिम्मेदार कैसे हो गई?

जैसे बड़े नेता, वैसे सांसद

क्या ये नेतृत्व की गैर जिम्मेदाराना हरकत का असर है कि संसद के अंदर कांग्रेस के सांसद बेकाबू हो रहे हैं, क्योंकि जब राहुल गांधी जैसा नेतृत्व रेप पीड़ित बच्ची के माता-पिता की पहचान सार्वजनिक कर दे. हाईकोर्ट उनसे जवाब तलब कर ले तो उस दल के नेताओं से कितनी संवेदना की उम्मीद की जा सकती है.

जिस दल का नेता धारा 144 लागू होते हुए भी चोरी छिपे ट्रैक्टर मंगा ले और नियम कानून तोड़ते हुए सड़क पर ट्रैक्टर दौड़ाने लगे, उसके सांसद क्या न करें. जिस दल का नेता ओबीसी मसले पर संविधान संशोधन जैसे बिल के दौरान सदन में खड़ा होना तक पसंद न करे. उस दल के सांसद कितनी जम्मेदारी निभाएं.

पाकिस्तान की आ गई याद

इस मानसून सत्र में विपक्षी सांसदों में से खासकर कांग्रेसी और टीएमसी के सांसदों का जो आचरण दिखा है. उसे देखकर तो पाकिस्तान की याद आती है.

लगता है कि पाकिस्तान की संसद में जो इसी साल जून के महीने में हुआ था. उससे हमारे देश के विपक्षी दल के सांसदों ने कुछ ज्यादा ही प्रेरणा ले ली. पाकिस्तानी संसद में जो कुछ हुआ था. उसमें से बस मारपीट और गाली गलौज ही बच गया वरना जितना हंगामा पाकिस्तानी नेशनल असेंबली में हुआ था. उससे जरा भी कम हंगामा भारतीय संसद में इस बार नहीं हुआ है.

कांग्रेसी नेताओं का संसदीय चरित्र

यदि कांग्रेसी नेताओं के संसदीय चरित्र पर गौर करें तो 2014 में जब कांग्रेस की ही सरकार थी. तब तेलंगाना बिल पेश करते वक्त कांग्रेस के निलंबित सांसद ने तेलंगाना समर्थक सांसदों पर पेपर स्प्रे तक छिड़क दिया था. ये तो इन कांग्रेसी सांसदों का संसद के अंदर इतिहास रहा है.

ये कांग्रेस जो अब किसान-किसान कह रही है. इसने पूरे मॉनसून सत्र में संसद से बाहर किसान और संसद के अंदर पेगासस की रट लगाये रखी.

किसान-किसान चीखे, चर्चा से भागे!

19 जुलाई से 9 अगस्त के बीच संसद के दोनों सदनों में कांग्रेस ने 2 मुद्दों पर काम रोको प्रस्ताव का नोटिस दिया. जिसमें 5 बार पेगासस जासूसी कांड पर और 4 बार कृषि मुद्दे पर स्थगन का प्रस्ताव दिया.

कांग्रेस के सांसद कृषि मुद्दे पर काम रोको प्रस्ताव भी देते थे और बाहर जंतर मंतर तक घूम घूमकर उनके नेता ये भी कहते थे कि कृषि पर चर्चा कैसी. केवल कानून रद्द करने की मांग है.

मतलब चर्चा करनी ही नहीं, कानून रद्द करने की मांग है तो फिर नोटिस क्यों दे रहे थे. ये किसानों को धोखा देने की चाल लगती है और कुछ नहीं और इस पूरी सियासी नौटंकी में देश का कितना नुकसान हुआ.

सियासी नौटंकी में देश का कितना नुकसान?

लोकसभा में सिर्फ 22 प्रतिशत काम हुआ. 17 दिनों में केवल 21 घंटे की कार्यवाही चल सकी. हालांकि सरकार ने 20 बिल पारित करा लिये लेकिन लोकसभा को 2 दिन पहले ही स्थगित करना पड़ा. उधर राज्यसभा में तीन हफ्ते में 23 प्रतिशत भी काम नहीं हो सका. 17 दिनों में 17 घंटे 44 मिनट तक सिर्फ हंगामा होता रहा और अब इस सत्र में सिर्फ 2 दिन बचे हैं.

काम न चर्चा, करोड़ों रुपये खर्चा!

इस हंगामे में देश के जरूरी मुद्दों पर न तो चर्चा हो सकी न कोई फैसला हो सका. ऊपर से देश के खजाने को नुकसान पहुंचा सो अलग, क्योंकि लोकसभा के कामकाज पर 1 घंटे का खर्च 1.5 करोड़ रुपये आता है और 19 जुलाई के बाद से अब तक करीब 74 घंटे से ज्यादा बर्बाद हो चुके हैं. इस हिसाब से लोकसभा में 112 करोड़ 20 लाख रुपये का नुकसान हो चुका है.
*अनुमानित (मॉनसून सत्र)

इसी तरह राज्यसभा में एक घंटे के कामकाज पर 1.1 करोड़ रुपये का खर्च आता है और इस सदन में अब तक 58 घंटे से ज्यादा विपक्षी सांसदों के शोर शराबे के कारण बर्बाद हुए हैं और करीब 63 करोड़ 91 लाख रुपये बर्बाद हो गए. इस तरह दोनों सदनों में करीब 175 करोड़ रुपये अब तक बर्बाद हो चुके हैं.
*अनुमानित (मॉनसून सत्र)

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