India Nuclear Energy: एक तरफ दुनिया में न्यूक्लियर पावर को लेकर बवाल मचा हुआ है, तो दूसरी ओर भारत कुछ ऐसा बड़ा करने जा रहा है. जिसके बाद भारत की न्यूक्लियर एनर्जी में बादशाहत कायम हो जाएगी. बता दें, भारत न्यूक्लियर एनर्जी के क्षेत्र में बड़ा कदम उठाने जा रहा है. सरकार ने छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर्स (SMRs) के डेवलपमेंट और संचालन के लिए ₹20,000 करोड़ का बजट तय किया है. 2033 तक पांच SMRs को ऑपरेशनल करने का लक्ष्य रखा गया है, जिससे 2047 तक 100 गीगावॉट न्यूक्लियर कैपेसिटी का सपना साकार हो सकेगा.
सरकार ने ₹20,000 करोड़ का बजट रखा
भारत सरकार ने न्यूक्लियर एनर्जी के क्षेत्र में एक बड़ा निवेश करने का फैसला किया है. छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर्स (Small Modular Reactors - SMRs) के लिए ₹20,000 करोड़ का बजट तय किया गया है, जो कि मौजूदा बड़े परमाणु रिएक्टर्स की तुलना में ज्यादा फ्लेक्सीबल, सस्ते और तेज़ी से लगने योग्य होते हैं.
इस योजना का उद्देश्य SMR तकनीक को अपनाकर भारत की ऊर्जा जरूरतों को सुरक्षित और कार्बन-फ्री बनाना है. इससे ऊर्जा सेक्टर को डिकार्बोनाइज करने और भविष्य की मांग को पूरा करने में मदद मिलेगी.
2033 तक SMRs को चालू करने का लक्ष्य
सरकार की योजना है कि 2033 तक कम से कम पांच SMRs ऑपरेशनल कर दिए जाएं. यह योजना 2047 तक 100 गीगावॉट न्यूक्लियर क्षमता हासिल करने की रणनीति का हिस्सा है. इसमें SMRs से लगभग 41 GW ऊर्जा मिलने का अनुमान है, जबकि बाकी ऊर्जा बड़े न्यूक्लियर प्लांट्स से आएगी. SMRs को परंपरागत प्लांट्स का अपडेटेड वर्जन माना जा रहा है, जो भविष्य में इंडस्ट्रियल और डीसेंट्रलाइज्ड एनर्जी जरूरतों को पूरा करेगी.
छोटे रिएक्टर्स से बनेगी न्यूक्लियर एनर्जी
इस फैसले की सबसे बड़ी खासियत है कि भारत 300 मेगावॉट से कम क्षमता वाले रिएक्टर्स पर ध्यान दे रहा है. इसमें 220 MW भारत स्मॉल रिएक्टर (BSR), 50 MW भारत स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (BSMR), और 5 MWt गैस-कूल्ड माइक्रो मॉड्यूलर रिएक्टर (GCMMR) शामिल हैं.
इन रिएक्टर्स का उपयोग उद्योगों में ऊर्जा देने, रिमोट क्षेत्रों को बिजली पहुंचाने और हाइड्रोजन उत्पादन जैसे कामों में किया जाएगा. यह तकनीक सुरक्षित मानी जा रही है और पर्यावरण पर इसका असर बेहद कम है.
क्या है SMR की खासियत?
SMRs की सबसे बड़ी खासियत है कि ये जल्दी बनते हैं, साथ ही इनके लिए बहुत ही कम जमीन की जरूरत होती है. इन्हें फैक्ट्री में तैयार कर साइट पर लगाया जा सकता है. इसके अलावा, ये लचीले हैं और पुराने कोयले के प्लांट्स की जगह लग सकते हैं.
भारत SMRs के लिए प्रेसराइज्ड वॉटर रिएक्टर (PWR) तकनीक का इस्तेमाल करेगा, जिसमें देश को पहले से ही महारत हासिल है. साथ ही, गैस-कूल्ड डिजाइन्स को भी विकसित किया जा रहा है, जो हाइड्रोजन उत्पादन जैसे हाई-टेम्परेचर उपयोगों में फायदेमंद होंगे.
न्यूक्लियर एनर्जी का कहां होगा इस्तेमाल?
इस टेक्नोलॉजी से बनने वाली न्यूक्लियर एनर्जी को लेयर के हिसाब से इस्तेमाल किया जाएगा. इसके लिए तीन लेयर की योजना के तहत SMRs का इस्तेमाल अलग-अलग क्षेत्रों में होगा. पहला- पुराने कोयला प्लांट्स को रिप्लेस करना, दूसरा- स्टील और एल्युमिनियम जैसे ऊर्जा उद्योगों को एनर्जी देना, और तीसरा- पहाड़ी या सीमित जगह वाले इलाकों में छोटे रिएक्टर्स लगाना.
सरकार ने प्राइवेट सेक्टर को भी SMR क्षेत्र में निवेश और संचालन की अनुमति दी है, जो कि एटॉमिक एनर्जी एक्ट 1962 के बाद एक बड़ी नीति बदलाव है. इससे तेजी से डेप्लॉयमेंट, इनोवेशन और फंडिंग में मदद मिलेगी.
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