भारत में कब, कहां और कैसे किया गया था परमाणु परीक्षण? जानिए पूरी कहानी

भारत ने 1960 के दशक में परमाणु कार्यक्रम शुरू किया. साल 1974 में पहला परमाणु परीक्षण किया गया, वहीं, दूसरा परमाणु परीक्षण 1998 में हुआ. भारत दुनिया के 9 परमाणु शक्ति वाले देशों में शामिल है.

Written by - Prashant Singh | Last Updated : May 21, 2025, 05:24 PM IST
  • साल 1974 और 1998 में भारत ने किया था परमाणु परीक्षण
  • राजस्थान के पोखरण गांव में किया गया दोनों परमाणु परीक्षण
भारत में कब, कहां और कैसे किया गया था परमाणु परीक्षण? जानिए पूरी कहानी

Pokhran nuclear testing inside story: दुनिया में किसी भी देश की शक्ति उसकी परमाणु संपन्नता के आधार पर आंकी जाती है. भारत भी दुनिया के उन 9 परमाणु संपन्न देशों में शामिल है, जिनके पास परमाणु हथियार हैं. हालांकि यह मुकाम हासिल करने की राह आसान नहीं थी. दरअसल, आजादी के कुछ साल बाद ही भारत ने भी इसकी जरूरत महसूस की. यही वजह रही कि भारत ने 1960 के दशक में ही परमाणु हथियार बनाने पर काम शुरू कर दिया. वहीं, दूसरी ओर दुनिया के तमाम ताकतवर देश भारत के परमाणु कार्यक्रम को रोकने की पूरजोर कोशिश की, लेकिन भारत की दृढ़ता ने वह कर दिखाया, जिसकी दुनिया ने कल्पना नहीं की थी. आइए जानते हैं भारत में परमाणु परीक्षण कब, कहां और कैसे किया गया था.

पोखरण में हुआ परमाणु परीक्षण
भारत के परमाणु हथियारों की जब-जब बात होती है, तो इतिहास में घटी दो ऐतिहासिक घटनाओं का जिक्र जरूर होता है. पहला पोखरण-I परीक्षण, साल 1974 और दूसरा पोखरण-II परीक्षण , साल 1998. इन दोनों परीक्षणों ने भारत को वैश्विक मंच पर एक परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित किया. बता दें, पोखरण, राजस्थान के जैसलमेर जिले में एक छोटा सा बसा हुआ गांव है. ऐसे में आइए, इनके पीछे की पूरी कहानी को आसान शब्दों में समझते हैं.

पोखरण-I: ‘स्माइलिंग बुद्धा’ (18 मई 1974)
18 मई 1974 को सुबह 8:05 बजे, राजस्थान के थार मरुस्थल में स्थित पोखरण टेस्ट रेंज में भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया. इसे कोडनेम ‘स्माइलिंग बुद्धा’ दिया गया. दरअसल 1960 के दशक में, भारत ने परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल पर ध्यान केंद्रित किया था, लेकिन क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों, विशेष रूप से 1962 के भारत-चीन युद्ध और 1964 में चीन के परमाणु परीक्षण ने भारत को अपनी रक्षा नीति पर दोबारा सोचने पर मजबूर कर दिया.

तब भारत ने वह फैसला लिया, जिसके बारे में दुनिया कल्पना भी नहीं कर सकती थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारतीय वैज्ञानिकों ने गुप्त रूप से इस परीक्षण की तैयारी शुरू की. उस दौरान वैज्ञानिक दल में, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) के प्रमुख वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा और उनके बाद विक्रम साराभाई और राजा रमन्ना ने इस प्रोजेक्ट का नेतृत्व किया.

तमाम तैयारियां पूरी हुईं, अब बारी परीक्षण की थी. इस परीक्षण में 6 किलोग्राम प्लूटोनियम का इस्तेमाल किया गया, जिसे कनाडा से प्राप्त CIRUS रिएक्टर से तैयार किया गया था. डिवाइस की शक्ति 8-12 किलोटन की थी. यह एक प्लूटोनियम आधारित डिवाइस थी.

इस परीक्षण को अत्यंत गोपनीय रखा गया. किसी भी तरह की जानकारी बाहर आती, तो भारत का परमाणु प्रोजेक्ट फेल हो जाता. यही वजह रही कि केवल कुछ वैज्ञानिकों और टॉप लेवल के सरकारी अधिकारियों को ही इसकी जानकारी थी. यहां तक कि सेना और स्थानीय प्रशासन को भी अंतिम समय तक कुछ नहीं बताया गया.

क्या थी परमाणु परीक्षण की प्रक्रिया?
पोखरण में एक गहरे गड्ढे में प्लूटोनियम डिवाइस को रखा गया और विस्फोट किया गया. यह एक शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट (Peaceful Nuclear Explosion) के रूप में किया गया, जिसका उद्देश्य इंजीनियरिंग और वैज्ञानिक अनुसंधान था. विस्फोट ने 3-5 मीटर ऊंचा क्रेटर बनाया और आसपास के क्षेत्र में हल्के झटके महसूस किए गए.

परीक्षण के बाद, कई देशों ने इसकी आलोचना की. खासकर अमेरिका और कनाडा जैसे देशों ने कई तकनीकी सहायता रोक दी. हालांकि, भारत ने इसे अपनी रक्षा और वैज्ञानिक क्षमता का प्रतीक बताया. देश में जश्न की लहर थी. आजादी के महज 27 साल में ही भारत परमाणु संपन्न देश बन चुका था.

पोखरण-II: ‘ऑपरेशन शक्ति’ (11-13 मई 1998)
1990 के दशक तक, भारत वैश्विक परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non-Proliferation Treaty) और व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (Comprehensive Nuclear-Test-Ban Treaty) पर हस्ताक्षर करने के दबाव में था. लेकिन, क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियां, विशेष रूप से पाकिस्तान और चीन के साथ तनाव ने भारत को अपनी परमाणु शक्ति को मजबूत करने के लिए प्रेरित किया. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस दिशा में निर्णायक कदम उठाया.

इस बार भी BARC और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के वैज्ञानिकों के कंधे जिम्मेदारी थी. इनमें डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, डॉ. आर. चिदंबरम, और डॉ. अनिल काकोडकर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. तमात तैयारियां पूरी होने के बाद टेस्टिंग का वक्त आया.

कैसे किया गया परमाणु परीक्षण?
11 मई 1998 को तीन विस्फोट किए गए. एक 45 किलोटन का थर्मोन्यूक्लियर डिवाइस (हाइड्रोजन बम), एक 15 किलोटन का फिशन डिवाइस, और एक 0.2 किलोटन का सब-किलोटन डिवाइस का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया. इसके ठीक दो दिन बाद, 13 मई को दो और सब-किलोटन के परीक्षण किए गए. वहीं, इस ऑपरेशन को भी बेहद गुप्त रखा गया. अमेरिकी सैटेलाइट को चकमा देने के लिए वैज्ञानिकों ने सैन्य वाहनों और रेगिस्तानी गतिविधियों का इस्तेमाल किया.

जहां पर इन परमाणु हथियारों का परीक्षण किया जाना था, उस जगह पर गहरे गढ्ढे खोदे गए, जिनमें परमाणु डिवाइस रखे गए. 11 मई को दोपहर 3:45 बजे पहला विस्फोट हुआ, जिसने क्षेत्र में भूकंपीय तरंगें उत्पन्न कीं. इन परीक्षणों ने भारत की उन्नत परमाणु टेक्नोलॉजी, खासकर हाइड्रोजन बम को हासिल करने की क्षमता दिखाया. इस परमाणु परीक्षण को ऑपरेशन शक्ति नाम दिया गया.

पोखरण-II के बाद, अमेरिका, जापान और अन्य देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए. हालांकि, भारत ने इसे अपनी रक्षा के लिए आवश्यक बताया. कुछ समय बाद, भारत और अमेरिका के बीच रिश्ते सामान्य हुए, और 2008 में भारत को NSG छूट मिली.

पोखरण परमाणु परीक्षण का महत्व
पोखरण-I ने भारत को परमाणु क्लब में शामिल किया, लेकिन इसे शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए बताया गया. पोखरण-II ने भारत को एक पूर्ण परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित किया, जिसने थर्मोन्यूक्लियर और सामरिक हथियारों की क्षमता का प्रदर्शन किया गया.

दोनों परमाणु परीक्षणों ने भारत की वैज्ञानिक और तकनीकी क्षमता को दुनिया के सामने रखा और देश का गौरव बढ़ाया. भारत अब एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में जाना जाता है, जो ‘नो फर्स्ट यूज’ पॉलिसी का पालन करता है. जिसका मतलब है कि भारत पहले परमाणु हमला नहीं करेगा, लेकिन जब देश पर खतरा महसूस होगा तो रुकेगा भी नहीं. पोखरण की यह कहानी भारत की वैज्ञानिक उपलब्धियों, रणनीतिक दूरदर्शिता और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है.

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