Kalvari Submairne: भारत की कलवरी कैटेगरी की सबमरीन के चर्चे तो दूर-दूर तक हैं. अब इन्हें आधुनिक तकनीक से बने उपकरणों से भी लैस किया जा रहा है. स्वदेशी तकनीक को बढ़ावा देने की दिशा में भारत एक महत्वपूर्ण कदम बढाने जा रहा है. कलवरी-श्रेणी की पनडुब्बियों में अब दो स्वदेशी उपकरण लगाए जाने वाले हैं. ये इन सबमरीन के पावर को क्या बढ़ा देगी, चलिए इसके बारे में जानते हैं.
कौनसे दो उपकरण लगाए जाएंगे?
दरअसल, भारतीय नौसेना अपनी कलवरी सबमरीन को स्वदेशी सिग्नल फ्लेयर्स और एंटी-सोनार उपकरणों से लैस करने की योजना पर काम चल रहा है. ये भारतीय नौसेना के लिए बनाई गई डीजल-इलेक्ट्रिक हमलावर पनडुब्बियां हैं, फ्रांस की स्कॉर्पीन-श्रेणी के डिजाइन पर आधारित हैं.
सिग्नल फ्लेयर्स (Signal Flares): ये एक तरह के प्रकाश संकेतक हैं, जो इमरजेंसी सिचुएशन में पनडुब्बी की स्थिति को चिह्नित करने या संदेश भेजने के लिए काम में लिया जाता है. ये फ्लेयर्स पानी के नीचे या सतह पर चमकदार रोशनी दिखाते हैं, जिससे नौसेना के अन्य जहाजों या बचाव दलों को अंदाजा लग जाता है कि इमरजेंसी सिचुएशन में फंसी सबमरीन कहां है.
एंटी-सोनार डिवाइसेज (Anti-Sonar Devices): इस उपकरण को 'डिकॉय' (Decoys) भी कहा जाता है. ये सबमरीन को दुश्मन के सोनार सिस्टम से बचाने के लिए डिजाइन किएकिया गया है. आधुनिक युद्ध में दुश्मन नौसेना सोनार के इस्तेमाल से सबमरीन का पता लगाती है. लेकिन एंटी-सोनार डिकॉय पनडुब्बी के Acoustic Signature की नकल करता है, इससे दुश्मन का सोनार भ्रमित हो जाता है.
कलवरी सबमरीन की क्या खासियत?
इस श्रेणी की पहली सबमरीन INS कलवरी 14 दिसंबर 2017 को भारतीय नौसेना में शामिल की गई थी. यह परियोजना भारत की प्रोजेक्ट-75 के तहत शुरू की गई थी. ये सबमरीन आधुनिक तकनीक से लैस हैं और इनका इस्तेमाल दुश्मन के जहाजों और सबमरीन पर हमला करने, खुफिया जानकारी जुटाने, निगरानी करने के लिए काम में लिया जाएगा. इनकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि ये चुपके से संचालन करने में सक्षम है, इन्हें दुश्मन के लिए पकड़ना मुश्किल हो जाता है.