Kapidhwaja: सबसे कठिन युद्धक्षेत्र, पारा -40 डिग्री तक...अब सियाचिन में सेना का साथ निभाएगा ये वाहन, जानें- इसकी खासियत

Indian Army: जो चीज कपिध्वजा को वास्तव में खास बनाती है, वह है इसकी भारतीय पहचान. इसे चंडीगढ़ में मेक इन इंडिया अभियान के तहत 96 इकाइयों के लिए ₹250 करोड़ के अनुबंध के तहत बनाया गया है. पहले हमें विदेशी वाहनों पर निर्भर रहना पड़ता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है. कपिध्वजा दिखाता है कि भारत ऐसी मशीनें डिजाइन और बना सकता है जो वैश्विक मानकों से मेल खाती हों.

Written by - Nitin Arora | Last Updated : Apr 16, 2025, 10:38 AM IST
Kapidhwaja: सबसे कठिन युद्धक्षेत्र, पारा -40 डिग्री तक...अब सियाचिन में सेना का साथ निभाएगा ये वाहन, जानें- इसकी खासियत

Siachen Glacier: कराकोरम पर्वतों में समुद्र तल से 16,000 फीट से भी अधिक ऊंचाई पर सियाचिन ग्लेशियर स्थित है. यह दुनिया के सबसे कठिन और सबसे ठंडे युद्ध क्षेत्रों में से एक है. यहां तापमान शून्य से 40 डिग्री सेल्सियस नीचे चला जाता है और सैनिक हिमस्खलन, बर्फीली हवाओं और बर्फ से ढके हुए खड़ी पगडंडियों का सामना करते हैं. 1984 के ऑपरेशन मेघदूत के बाद से भारतीय सैनिक इस कठिन क्षेत्र में मजबूती से डटे हुए हैं. हालांकि, अब, कपिध्वज (Kapidhwaja) नामक एक नया विशेषज्ञ मोबिलिटी वाहन हमारे सैनिकों की मदद के लिए भेजा गया है. यह सेना के लिए बहुत जरूरी बताया जा रहा है.

यह वाहन ATOR N1200 है. सबसे बड़ी बात यह सिर्फ एक मशीन नहीं है, बल्कि भारत की ताकत और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है.

JSW डिफेंस और Copato लिमिटेड द्वारा निर्मित कपिध्वजा को चरम स्थितियों के लिए बनाया गया है. यह लगभग 4 मीटर लंबा, 2.6 मीटर चौड़ा और लगभग 3 मीटर ऊंचा है. इसमें 1.8 मीटर के टायर हैं. इन टायरों में विशेष ट्रेड होते हैं जो बर्फ, कीचड़ और नरम जमीन को पकड़ते हैं. साथ ये टायर वाहन को एक छोटी नाव की तरह पानी में चलने में भी मदद करते हैं.

 

खासियत एक से बढ़कर एक
2,400 किलोग्राम वजनी यह वाहन 1,200 किलोग्राम सामान जैसे कि भोजन, ईंधन, दवाइयां और गोलियां ले जा सकता है और फिर भी 2,350 किलोग्राम वजन खींच सकता है. इसमें आठ सैनिक और एक ड्राइवर बैठ सकता है. इसके होने से एक पूरी टीम हमेशा तैयार रहती है.

कपिध्वज की असली स्ट्रेंथ
कपिध्वज की असली रीढ़ इसका मजबूत स्टील फ्रेम है जो डोकोल हाई-स्ट्रेंथ स्टील से बना है, जो 1,000 MPa तक का दबाव झेल सकता है. इसका मतलब है कि यह टूटने के बजाय झुकता है. ग्लेशियर के चट्टानी और जमे हुए रास्तों के लिए एकदम सही है. इसमें जंग भी नहीं लगता.

इसमें 1.5-लीटर, 3-सिलेंडर इंजन है जो 55 हॉर्सपावर और 190 एनएम टॉर्क देता है, जिसे माइनस 40 डिग्री सेल्सियस और 40 डिग्री सेल्सियस के बीच चलते रहने के लिए पर्याप्त ताकत मिलेगी. इसमें 6-स्पीड मैनुअल गियरबॉक्स हैं. इसकी जमीन पर स्पीड 40 किमी/घंटा तक है. वहीं, पानी में यह वह वाहन 6 किमी/घंटा की गति से तैरता है.

सैनिकों के लिए क्यों जरूरी?
सियाचिन में भोजन या दवाइयां पहुंचाने जैसे साधारण काम भी जानलेवा हो जाते हैं. मौसम के कारण हेलीकॉप्टर हमेशा उड़ान नहीं भर सकते और यहीं पर कपिध्वजा की अहम भूमिका है. यह बर्फ में चलता है जहां अन्य वाहन विफल हो जाते हैं और घायल सैनिकों को ले जाने में मदद कर सकता है जब हवाई निकासी संभव नहीं होती.

लेकिन जो चीज कपिध्वजा को वास्तव में खास बनाती है, वह है इसकी भारतीय पहचान. इसे चंडीगढ़ में मेक इन इंडिया अभियान के तहत 96 इकाइयों के लिए ₹250 करोड़ के अनुबंध के तहत बनाया गया है. पहले हमें विदेशी वाहनों पर निर्भर रहना पड़ता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है. कपिध्वजा दिखाता है कि भारत ऐसी मशीनें डिजाइन और बना सकता है जो वैश्विक मानकों से मेल खाती हों.

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