संविधान को जख्मी करके क्या सफल हो गया किसान आंदोलन? गुनहगार कौन

लोकतंत्र के इस सबसे बड़े पर देश की राजधानी दिल्ली सहम उठी. किसानों ने कहा था कि ये ट्रैक्टर रैली शांतिपूर्ण तरीके से होगा, पर अफसोस उपद्रवियों ने संविधान और लोकतंत्र दोनों को ही छलनी कर दिया. आपको इस रिपोर्ट में समझाते हैं कि इस बुरे हालात का असल जिम्मेदार कौन है?

Written by - Ayush Sinha | Last Updated : Jan 26, 2021, 06:07 PM IST
  • फर्जी किसानों की 'दंगा-ब्रिगेड'
  • दिल्ली पुलिस का ‘डंडा’ जरूरी है!
  • फर्जी किसानों की सबसे बड़ी साजिश!
  • गणतंत्र को कलंकित करने का मंसूबा
संविधान को जख्मी करके क्या सफल हो गया किसान आंदोलन? गुनहगार कौन

नई दिल्ली: किसानों के वेश में अराजक तत्वों ने एक बार फिर राजधानी दिल्ली को बंधक बनाने की साजिश रची. गणतंत्र दिवस के मौके पर कृषि कानूनों के विरोध में जो ट्रैक्टर रैली होनी थी, वो हिंसक प्रदर्शन में बदल गई. प्रदर्शनकारी बैरिकेडिंग तोड़कर लाल किला पहुंचे. इस दौरान पुलिस से हिंसक झड़प हुई, इन उपद्रवियों के हाथों में हथियार थे. हथियारों की हनक पर लाल किले में घुसपैठ की गई और उन्होंने जो किया वो भारत के लोकतंत्र पर किसी बड़े हमले से कम नहीं है.

राजधानी में हुड़दंग ब्रिगेड की करतूत

इस दौरान लाल किला परिसर में प्रदर्शनकारियों की भारी भीड़ मौजूद थी, एक प्रदर्शनकारी तलवार से करतब भी दिखाने लगा. उसी वक्त लाल किले के बाहर पुलिस प्रदर्शनकारियों को ऐसा करने की कोशिश में जुटी थी, लेकिन हिंसा पर उतारू उन्मादी प्रदर्शनकारियों ने पुलिस को ही धमकाना शुरू कर दिया. प्रदर्शनकारियों ने पुलिसकर्मियों को निशाना भी बनाया. हिंसक भीड़ के हमले में एक पुलिस वाली बुरी तरह घायल हो गया.

पुलिसवाले के सिर से लगातार खून बह रहा था. जिसके बाद किसी तरह उन्हें भीड़ से बाहर निकाला गया. वहीं लाल किले पर प्रदर्शनकारियों की भीड़ जमकर उत्पात मचाती रही. लाल किले पर लगे तंबूओं को प्रदर्शनकारियों ने फाड़ दिया.

एक तरफ पूरा देश गणतंत्र दिवस के मौके पर राष्ट्रीय पर्व मना रहा था, तो दूसरी तरफ देश की राजधानी में लोकतंत्र पर हमला किया जा रहा था. दिल्ली को बंधक बनाने की कोशिशें की जा रही थी. सुबह से ही हिंसा की तस्वीरें सामने आने लगी थी. 

किसान नेताओं ने देश को दिया धोखा?

26 जनवरी के मौके पर किसान नेताओं ने शांतिपूर्वक ट्रैक्टर मार्च निकालने का भरोसा दिलाया था, लेकिन प्रदर्शनकारी किसानों को ट्रैक्टर रैली के लिए जो रूट दिया गया था वे वहां से न जाकर दूसरे रूट में जाने लगे. ऐसे में उन्हें संभालने के लिए पुलिस को आगे आना पड़ा. जिसके बाद दिल्ली के ITO पर प्रदर्शनकारियों ने पुलिस को ही निशाना बनाना शुरू कर दिया.

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किसान नेताओं ने कहा था कि ये ट्रैक्टर रैली शांतिपूर्ण तरीके से होगी, लेकिन गणतंत्र के अवसर पर देश के संविधान और लोकतंत्र को छलनी करने की कोशिश की गई. पूरी दिल्ली सहम उठी, हर किसी को ये डर सताने लगा कि कहीं दिल्ली में एक बार फिर दंगा न हो जाए. ये उपद्रवी हाथों में तलवार, डंडे और घातक हथियार लेकर दिल्ली में घुसे थे. उन्होंने लालकिले पर ही नहीं बल्कि देश के संविधान पर चढ़ाई करने की कोशिश की.

दिल्ली की सीमाओं पर किसानों को तांडव

दिल्ली के नांगलोई इलाके में प्रदर्शकारी भीड़ बेकाबू होगई. प्रदर्शनकारियों ने ट्रैक्टर से पुलिस पर हमला करने की कोशिश की. नीचे दिए वीडियो में उस वक्त के हालातों को समझा जा सकता है. भीड़ में दो ट्रैक्टर घुसते हैं और वह पुलिस के जवानों पर ट्रैक्टर चढ़ाने की कोशिश करते हैं.

ट्रैक्टर सवार वहां तैनात पुलिस जवानों को कुछ इस तरह से डराते हैं कि पुलिसवालों पर ट्रैक्टर चढ़ाकर उन्हें रौंद देंगे. इस दौरान पुलिस ने वहां आंसू गैस के गोले दागे. जिसके बाद ट्रैक्टर सवार प्रदर्शकारियों पर लाठी चार्ज किया जाता है. जिसके बाद तेज रफ्तार में ट्रैक्टर घुमाते हैं और पुलिस प्रदर्शनकारी भीड़ को हटाने के लिए सड़क पर बैठ जाती है.

जरा सोचिए, दंगाई की नीयत लेकर ये लोग खुद को किसान कहते हैं. देश का अन्नदाता कभी भी इतना बेशर्म नहीं हो सकता है. देश का अन्नदाता कभी भी दंगे की साजिश नहीं रख सकता है. देश का अन्नदाता कभी भी लोकतंत्र को इस कदर शर्मसार नहीं कर सकता है. देश का अन्नदाता कभी भी खून खराबे का मंसूबा दिल में नहीं पालता है. 

लोकतंत्र को शर्मसार करने का मंसूबा

दिल्ली-गाजीपुर बॉर्डर पर हाथ में तलवार लिए कुछ उपद्रवियों ने पुलिस को निशाना बनाने कोशिश की. ट्रैक्टर रैली के नाम पर गणतंत्र दिवस के मौके पर राजधानी में दंगा फैलाने की कोशिशें की गई. इन लोगों के हाथों में इतने घातक हथियार देखकर लगता है कि जो खुद को किसान बताकर आंदोलन में शामिल हैं, उनके हाथों ने हल उठाकर कभी खेती भी की होगी. राजधानी की तस्वीरों को देखकर एक वक्त तो ऐसा लगने लगा कि ये कोई आंदोलन नहीं बल्कि युद्ध का मैदान है. जिसमें एक निहंग सिख पूरे वेश-भूषा में तलवार लेकर पुलिस वाले को दौड़ा रहा है.

राजधानी का असल गुनहगार कौन?

सबसे बड़ा सवाल यही है कि लोकतंत्र को घायल करके क्या किसान आंदोलन अब सफल हो गया? इससे भी बड़ा सवाल ये है कि राजधानी का गुनहगार कौन है? हम आपको इस सवाल का जवाब दे देते हैं. इस हालात के लिए सबसे बड़े जिम्मेदार किसान नेता हैं. ऐसा हम यूं ही नहीं कह रहे हैं, इसके पीछे की क्रोनोलॉजी को समझना जरूरी है. सरकार ने किसान नेताओं के सामने लाख विनती की, दिल्ली पुलिस ने किसान नेताओं को लाख समझाने की कोशिश की, मगर वो अड़े रहे. उनके अड़ियल रवैया का नतीजा ये है कि राजधानी को हाईजैक करने की कोशिश की गई.

कई निर्दोष घायल हो गए, जिनमें पुलिसवाले भी शामिल हैं. संविधान का हवाला देने वाले इस किसान नेताओं की लापरवाही के चलते आज देश का संविधान जख्मी है. बड़ी बड़ी बातें करने वाले किसान नेता खुद बिल में छिपकर बैठ गए और दिल्ली की सड़कों पर तांडव होता रहा. गुनहगार कौन है ये बताने की जरूरत नहीं है आप खुद समझदार हैं.

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26 नवंबर 2020 की तारीख थी, जब किसानों ने अपना आंदोलन शुरू किया था. कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों में आक्रोश था, लेकिन उनका आंदोलन शांतिपूर्ण ढंग से शुरू हुआ. किसान इन तीनों कानूनों को रद्द कराने की मांग पर अड़ रहे. सरकार ने किसान नेताओं से संवाद किया, कई दौर की बातचीत हुई, कृषि मंत्री ने किसानों के सामने कई प्रस्ताव पेश किए, लेकिन वो कानून रद्द करने की जिद पर अड़ रहे. सरकार ने कानूनों को 1.5 साल तक होल्ड पर डालने का भी प्रस्ताव दिया, लेकिन किसान नेता इसपर भी राजी नहीं हुए. गणतंत्र दिवस के मौके पर किसान आंदोलन में छिपे उपद्रवियों ने देश की राजधानी में इतना बवाल काटा कि हर कोई दंग रह गया. दिल्ली को बंधक बनाने की साजिश दुनिया के सामने आ गई.

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