Kailash Mansarovar Yatra: वो दो रूट, जिससे शिव-पार्वती के निवास स्थान पहुंचते हैं तीर्थयात्री, फिर से शुरू हो रही यात्रा के बारे में जानें सबकुछ

About Kailash Mansarovar Yatra 2025: कैलाश मानसरोवर यात्रा (KMY) एक महत्वपूर्ण वार्षिक तीर्थयात्रा है जो भारत और चीन के बीच गहरे धार्मिक और सांस्कृतिक संबंधों का प्रतीक है. यह हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और बॉन धर्म के अनुयायियों के लिए बहुत महत्व रखती है.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Apr 27, 2025, 11:36 AM IST
Kailash Mansarovar Yatra: वो दो रूट, जिससे शिव-पार्वती के निवास स्थान पहुंचते हैं तीर्थयात्री, फिर से शुरू हो रही यात्रा के बारे में जानें सबकुछ

Kailash Mansarovar Yatra 2025: कैलाश मानसरोवर यात्रा (KMY) एक महत्वपूर्ण वार्षिक तीर्थयात्रा है जो भारत और चीन के बीच गहरे धार्मिक और सांस्कृतिक संबंधों का प्रतीक है. यह हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और बॉन धर्म के अनुयायियों के लिए बहुत महत्व रखती है. माना जाता है कि कैलाश पर्वत की परिक्रमा करने से आध्यात्मिक पुण्य मिलता है और मानसरोवर झील में स्नान करने से पापों का नाश होता है. कोविड-19 महामारी और सीमा तनाव के कारण 2020 में तीर्थयात्रा स्थगित कर दी गई थी. पांच साल बाद इसकी बहाली धार्मिक पर्यटन और द्विपक्षीय सहयोग में सकारात्मक विकास को दर्शाती है.

चर्चा में क्यों यात्रा?
सबसे पहली बात ये कि चीन ने इस यात्रा की अनुमति दे दी है. इसके बाद विदेश मंत्रालय (MEA) ने 26 अप्रैल, 2025 को कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने की घोषणा की.
यह तीर्थयात्रा जून और अगस्त 2025 के बीच आयोजित की जाएगी.

कुल 750 तीर्थयात्रियों को अनुमति दी जाएगी, जिन्हें लिपुलेख दर्रे (उत्तराखंड) और नाथू ला दर्रे (सिक्किम) से यात्रा के लिए भेजा जाएगा.

कैलाश मानसरोवर यात्रा क्या है?
कैलाश मानसरोवर यात्रा भारतीय नागरिकों के लिए तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (चीन क्षेत्र को अपना बताकर उसपर दावा किए हुए है, इस कारण यात्रा के लिए उसकी अनुमति लेनी पड़ती है) में कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील की यात्रा करने के लिए एक वार्षिक सरकारी तीर्थयात्रा है. इसका गहरा धार्मिक महत्व है:

-हिंदू कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास मानते हैं.
-बौद्ध इसे बुद्ध डेमचोक का निवास मानते हैं.
-जैन मानते हैं कि यहीं पर उनके पहले तीर्थंकर ने मोक्ष प्राप्त किया था.
-बोन धर्म के अनुयायी इसे एक पवित्र पर्वत के रूप में पूजते हैं.

यात्रा का मुख्य उद्देश्य भारत और चीन के बीच धार्मिक तीर्थयात्रा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना है.

तीर्थयात्रा के लिए दो आधिकारिक मार्ग

-लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड): 1981 से पारंपरिक मार्ग चालू है.
-नाथू ला दर्रा (सिक्किम): 2015 में मोटर योग्य मार्ग शुरू किया गया.

-50-50 तीर्थयात्रियों के पांच जत्थे लिपुलेख दर्रे से यात्रा करेंगे.
-50-50 तीर्थयात्रियों के दस जत्थे नाथू ला दर्रे से यात्रा करेंगे.

पंजीकरण प्रक्रिया https://kmy.gov.in के माध्यम से पूरी तरह से सिस्टम बेस्ड है, जो निष्पक्ष चयन सुनिश्चित करती है. यात्रा का समन्वय कई एजेंसियों द्वारा किया जाता है, जिसमें विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP), और उत्तराखंड, सिक्किम और दिल्ली की राज्य सरकारें, साथ ही कुमाऊं मंडल विकास निगम (KMVN) शामिल हैं.

चुनौतियां
सकारात्मक विकास के बावजूद, कई चुनौतियां बनी हुई हैं.

सुरक्षा: वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर लगातार तनाव जोखिम पैदा करता है.

लॉजिस्टिक्स और सुरक्षा: कठोर भूभाग, उच्च ऊंचाई और अप्रत्याशित मौसम तीर्थयात्रियों के स्वास्थ्य को खतरे में डालते हैं.

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