नई दिल्लीः Corona के जारी इस कहर के बीच असम से लेकर केंद्र दिल्ली तक (राजनीतिक स्तर पर) अलग ही गहमा-गहमी का माहौल है. पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में से एक असम भी हैं, जहां भाजपा को जीत मिली है. लेकिन इस जीत के साथ अगला सवाल उठ खड़ा हुआ कि मुख्यमंत्री कौन?
सोनोवाल-शर्मा दोनों का पलड़ा बराबर
अभी तक सीएम रहे सर्वानंद सोनोवाल का पलड़ा भारी है. वह पिछले विधानसभा चुनाव में भी हीरो बने थे. लेकिन यह हीरोगिरी उनकी अकेली की नहीं थी. राजनीतिक पंडितों की मानें तो जीत की रणनीति में जो सबसे प्रमुख नाम था वह हिमंत बिस्व शर्मा का है.
कांग्रेस से आए 15 साल विधायक रहे, असम की राजनीति में मजबूत पकड़ रखने वाले हिमंत इस बार की जीत के भी रणनीतिकार माने जा रहे हैं. इन सारी मान्यताओं के कारण शर्मा का पलड़ा भी सोनोवाल के बराबर ही है.
यही वजह है कि भाजपा शीर्ष नेतृत्व की पेशानी पर बल पड़े हुए हैं कि विधायक दल का मुखिया कौन?
इस सवाल को तलाशने के लिए शनिवार को दिल्ली में पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा के आवास पर बैठक हुई. जिसमें दोनों नेता मौजूद रहे. करीब तीन बजे बैठक खत्म होने के बाद हिमंत बिस्व शर्मा बाहर निकले. हालांकि उन्होंने मीडिया से विस्तार से चर्चा नहीं की. उन्होंने बस इतना कहा कि रविवार को गुवाहाटी में भाजपा विधायक दल की बैठक होगी.
बैठक में ही विधायक दल का नेता चुना जाएगा. उसके बाद सभी सवालों के जवाब मिल जाएंगे.
विधायक दल का मुखिया कौन होगा, यह तो क्लियर हो ही जाएगा, लेकिन उससे पहले दोनों नेताओं की जिंदगी और राजनीतिक करियर पर डालते हैं एक नजर.
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हिमंत बिस्व शर्मा
हिमंत बिस्वा शर्मा (Himanta Biswa Sharma) का जन्म असम के जोराहाट में 01 फरवरी 1969 में हुआ था. राजनीति में प्रवेश करने से पहले वे कॉटन कॉलेज यूनियन सोसाइटी (CCUS) के महासचिव (GS) थे. 1996 से 2001 तक उन्होंने गोहाटी हाईकोर्ट में भी लॉ प्रैक्टिस की थी.
खेलों में रही है खास रुचि
हिमंत बिस्वा शर्मा (Himanta Biswa Sharma) को खेलों में विशेष रूचि है. साल 2017 में उन्हें भारत के बैडमिंटन एसोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया था. वह असम बैडमिंटन एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. जून 2016 में उन्हें असम क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष नियुक्त किया गया था.
साल 2002 से साल 2016 तक सेवा करने वाले एसोसिएशन के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं.
15 साल तक रहे विधायक
शर्मा ने कांग्रेस के साथ अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की. साल 2001 से 2015 तक जालुकबारी विधानसभा क्षेत्र में उन्होंने कांग्रेस का दबदबा कायम रखा. 15 साल तक वे इस सीट से विधायक रह चुके हैं.
सर्वानंद सोनोवाल का परिचय
असम के डिब्रूगढ़ जिले में जन्मे सर्वानंद सोनोवाल 2016 में राज्य के सीएम बने. छात्र राजनीति से आगे बढ़ते हुए केंद्र की सरकार में खेल और युवा मामलों के मंत्री रहे और सीएम बनने तक इस शख्स के मुख्यमंत्री बनने तक का सफर दिलचस्प है. सबसे खास बात है कि सोनोवाल की छवि ईमानदार नेता की रही है.
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आसू के रहे अध्यक्ष
सोनोवाल वर्ष 1992 से 1999 तक ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के अध्यक्ष रहे. असम की राजनीति में इस छात्र संगठन का खासा प्रभाव देखने को मिलता है और संगठन ने छह वर्ष तक असम आंदोलन की अगुवाई की.
असम में भाजपा की राजनीति के केंद्र में आने तक उनकी पहचान राज्य के युवा, जुझारू और तेजतर्रार नेता के रूप में बन चुकी थी. आठ फरवरी, 2011 को तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी और वरुण गांधी, विजय गोयल, विजॉय चक्रवर्ती और रंजीत दत्ता की मौजूदगी में वे पार्टी में शामिल हुए.
2012 में बने असम भाजपा के अध्यक्ष
उन्हें तत्काल भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल किया गया और बाद में राज्य भाजपा का प्रवक्ता नियुक्त किया गया. वर्ष 2012 में उन्हें राज्य भाजपा का अध्यक्ष भी बनाया गया. इस वर्ष 28 जनवरी को पार्टी ने उन्हें असम में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया और वे पार्टी की उम्मीदों पर खरे उतरे.
विधायक बने, सांसद भी बने
सोनोवाल सबसे पहले वर्ष 2001 में सूबे के मोरन विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए थे, लेकिन वर्ष 2004 में हुए 14वीं लोकसभा चुनाव में वे डिब्रूगढ़ से सांसद चुने गए. वर्ष 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनाव में सोनोवाल ने लखीमपुर सीट पर जीत दर्ज की और केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार में उन्हें स्वतंत्र प्रभार का राज्यमंत्री बनाया गया.
साल 1992 से राजनीति में सक्रिय सोनोवाल ने हमेशा राज्य में ही रहकर राजनीति की. सभी दलों के नेताओं से उनके निजी परिचय हैं, जो सरकार चलाने में मददगार साबित होता रहा है. सर्बानंद की गिनती पीएम मोदी के बेहद करीबी लोगों में होती है.
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