जानिए, अर्थव्यवस्था पटरी पर लाने के लिए क्या है केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह की तैयारी

जी मीडिया के डायरेक्ट विद मिनिस्टर कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने बेबाकी से अपनी राय रखी. उन्होंने माना कि कोरोना के कारण थोड़ा संकट तो आया है, लेकिन पीएम मोदी के दिए राहत पैकेज से पशुपालन के जरिए अर्थव्यवस्था ट्रैक पर रहेगी. भटकेगी नहीं.

Last Updated : Jun 12, 2020, 05:27 PM IST
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    • केंद्रीय पशुपालन मंत्री गिरिराज सिंह से सीधी बात
जानिए, अर्थव्यवस्था पटरी पर लाने के लिए क्या है केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह की तैयारी

नई दिल्लीः कोरोना काल में जितनी चुनौती कोरोना से लड़ाई, रोग का निदान, उपचार व बचाव को लेकर है, उससे कहीं अधिक बड़ी लड़ाई इसके कारण उपजे संकट और उनसे मिली चुनौती है. जहां एक तरफ स्वास्थ्य मंत्रालय व विभाग रोग से लड़ रहा है तो वहीं दूसरी तरफ अन्य मंत्रालयों की कोशिश है कि अर्थव्यवस्था बची रही है, उनके मंत्रालय के वित्तीय क्षेत्र ठप्प न हों और रोजगार के भी अवसर मिले. देश के कदम जब अनलॉक वन की ओर बढ़ रहे है तो केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह की जिम्मेदारी बढ़ जाती है.  केंद्र में पशुपालन और डेयरी मंत्रालय का जिम्मा संभाल रहे गिरिराज सिंह ने डायरेक्ट विद मिनिस्टर कार्यक्रम में अपनी बात रखी. प्रस्तुत है उनसे हुई विस्तृत बातचीत-

सवालः पीएम मोदी का दिया आत्मनिर्भरता का मंत्र और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का संकल्प, इसे कैसे सिद्ध करेंगे, क्या योजना है?

जवाबः गौर करेंगे तो पाएंगे कि डेयरी व पशुपालन का पूरा क्षेत्र (गाय, भैंस, बकरी, मछली) एक तरीके से जन सरोकार का सबसे बड़ा डिपार्टमेंट है. इसमें 15 करोड़ तक लोग जुटे हुए हैं. पीएम मोदी ने 20 लाख करोड़ का जो पैकेज दिया है, इसमें हमारे डिपार्टमेंट का भी इन्वेस्टमेंट सब मिलाकर 53000 करोड़ है जिसे कई भागों में बांटा है. फिशरीज को 20000 करोड़ और डेयरी इंफ्रस्ट्रक्चर के लिए 15000 करोड़ दिया. पशुओं के टीकाकरण के लिए 13500 करोड़ दिए हैं. ब्रीड को बढ़ाने, रोग को ठीक करने और दूध की प्रोसेसिंग के लिए भी फंड दिया. हमने अभी देश में 605 गांव चुने हैं. हर जिले के 300 गांव में ब्रीड को बढ़ाने के लिए भारत सरकार के पैसों का इस्तेमाल करेंगे. आने वाले समय में अगर हम एक्सपोर्ट के नजरिए से देखें तो 75000 करोड का शेयर है पशुपालन और डेयरी में. 46000 करोड़ का एक्सपोर्ट हमने केवल फिशरीज में किया है. मेरा ये मानना कि प्रधानमंत्री ने 2015 से लेकर 2020 तक इस डिपार्टमेंट को काफी कुछ दिया है जो माइल स्टोन है. हम फिशरीज को नए तरीके से आगे बढ़ाएंगे.

सवाल: दुनिया के सबसे बड़े दुग्ध उत्पादक देश भारत में कोरोना काल में बेरोजगारी की दर बढ़ना और दूसरी तरफ आपके मंत्रालय का लोगों को रोजगार भी देना बड़ी चुनौती है. लोगों तक अधिक से अधिक रोजगार पहुंचाने की क्या कोई रणनीति है?

जवाबः इसीलिए आपसे कहा कि इस सेक्टर से लगभग 9 करोड लोग जुड़े हैं. हम देश के 605 जिलों में डेयरी के लिए ब्रीडिंग बढ़ा रहे हैं. दुनिया में हम सबसे बड़े दूध उत्पादक हैं लेकिन दुनिया में सबसे कम एवरेज में हमारे पशु दूध देते हैं. हम उसी के लिए ब्रीड को प्राथमिकता देते हैं. अब ब्रीड में आप देखेंगे कि केवल बछिया पैदा हो. अभी आपने देखा था कि एक मीडिया हाउस ने मेरा मजाक उड़ाया कि एक गाय साल में कम से कम 30 बच्चे कैसे देगी. गाय की फैक्ट्री होगी, 30 लीटर दूध देने वाली गाय का एंब्रियो हम डालेंगे और ये एक तरह से फैक्ट्री होगी लेकिन लोगों ने मज़ाक किया. मेने कहा देखिए ये दुनिया आगे बढ़ रही है. हम सेरोगेट मदर का नाम जानते हैं. टेस्ट टयूब तो हम भी animal husbandry में जानवरों के साथ आईबीएफ invader fertilizer करने जा रहे हैं. यानी एक गाय तीस चालीस लीटर दूध देने वाली है तो एक साल में जो अंडे निकलेंगे उससे जो एंब्रियो 25 से 30 बनेगा और जिस गाय में हम डालेंगे वह गाय 30 लीटर दूध देगी.

अभी तो कई जनरेशन लग जाता अगर हम एआई के थ्रू करते तो. हम टेक्नोलॉजी का भी सहारा ले रहे हैं. अभी एआई जिसके कारण हम ब्रीड इंप्रूव करते है उसमें भारत की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत है. हमने ये निश्चय किया कि 2024 तक हम इसे 70% तक ले जाएंगे. प्रोसेसिंग के लिए 15 हजार करोड़ मिले हैं. 10,000 करोड़ पिछले बार दिया था जो हम सिर्फ मिल्क यूनियन को देते थे अब जो होगा वह समाज के हर वर्ग को हम देंगे. एक तरफ हम बकरी पालन को बढ़ावा दे रहे है तो दूसरी तरफ हम लो इनपुट बर्ड का पालन कर रहे हैं. भारत में 70% कमर्शियल है हम उसे आगे ले जा रहे हैं. आईसीआर और भारत सरकार मिलकर लो colour bird input के माध्यम से रोजगार के अवसर खोल रहे हैं. कोई नौजवान अगर गांव में चाहे तो पांच से दस लाख रुपये आसानी से कमा सकता है.

सवाल: कोरोना काल में पोल्ट्री को अफवाहों के कारण काफी नुकसान हुआ है. उसकी भरपाई कैसे हो रही है?

जवाबः यह सच है कि कोरोना काल में पोल्ट्री को नुकसान हुआ है. जो राहत दी गई है उससे 5 महीने की राहत है. लक्ष्य यह है कि अभी हमारा 30% शेयर है इसको बढ़ा कर 50% पर ले जाएंगे. यह लो इनपुट बर्ड जो होगा उसमें 500 से लेकर 5000 तक की संख्या रखेंगे. फिशरी सेक्टर अभी 46000 करोड का है. इसे हम आगे ले जाएंगे डबल करने के लिए और इसको आगे हम 2 गुना 3 गुना भी ले जाएंगे. कारण यह है कि हमने अभी तय किया है मछुआरों को पूरी सुविधा देंगे. समुद्र के साथ-साथ खारे जल में जो खेती करते हैं वहां लगभग 12 लाख हेक्टेयर जमीन है जिसमें हम प्रॉन की खेती करते हैं. उसे भी बढ़ाएंगे. समुद्र में जो मछुआरे ट्रेडिशनल बोट लेते हैं उनको मैकेनाइज्ड बोट और जो मैकेनाइज्ड बोट ले रहे हैं उन्हें अपग्रेड किया जाएगा.

हम तमिलनाडु के साथ एक प्रयोग शुरू करेंगे. कोशिश होगी कि कोस्ट हार्वेस्ट लॉस कम हो. मछलियां वह मारेगा और वेसल में डालता जाएगा. दूसरी तरफ हम केज कल्चर शुरू कर रहे हैं ताकि समुद्र में मछुआरों को रिस्क कम हो. जैसे तूफान आता है, सूचना मिली बीच में फस गया. जो 2 किलोमीटर के अंदर होगा उसके लिए हम एक नया एक्सपोर्ट सेंटर खोल रहे हैं. सी वीड. दुनिया में 25 से 30 बिलियन डॉलर का उसका मार्केट है. अभी तक दो ही देश मिलकर उसका 80% उत्पादन करते हैं, इंडोनेशिया और चीन. हम वहां भी नया प्रयोग कर रहे हैं उसमें हमें सफलता मिली है.

सवालः क्या ऐसा माना जाए कि एमएसएमई के साथ-साथ दूसरी विदेशी कंपनियां हैं उनके लिए भी हम तैयार होंगे? क्या छोटे और बड़े दोनों उद्योगों में इससे फायदा मिलने वाला है?

जवाबः फिशरी सेक्टर में 1947 से लेकर 2014 तक सेंटर एलोकेशन मात्र 3680 करोड़ थी लेकिन नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने तो पहली बार बोला ब्लू रिवॉल्यूशन जिसमें 3000 करोड़ रुपया दिया गया. यहां हम किसी पर आरोप नहीं लगा रहे हैं, मगर मात्र 3680 करोड़ 1947 से लेकर के 2014 तक दिया गया. यानी लोगों का ध्यान नहीं रहा कि यह सेक्टर एक बहुत बड़ा जनउपयोगी सेक्टर है. दक्षिण भारत से कितनी मछलियां आयात कर रहे हैं. अब हम उत्तर भारत की ओर एक्सपोर्ट कर रहे हैं. भारत के अंदर चार राज्य आप के बगल में हैं. पंजाब हरियाणा पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान जहां जल खारा हो गया है. जमीन में वहां खेती भी कायदे की नहीं होती है. अब इसको एक्सपोर्ट हब बनाने की योजना है. चारों राज्यों से मिलकर एक्सपोर्ट होगा. हमारे पास 22 लाख हेक्टेयर तालाब है. अभी 3.3 टन की उपज 1 हेक्टेयर में एवरेज है जिसको हम 5 टन पर ले जाएंगे. 40 लाख हेक्टेयर जमीन पर प्रति हेक्टेयर 120 किलोग्राम का उत्पादन होता है. हमने तय किया है कि आने वाले दिन में प्रति हेक्टेयर जितना जल क्षेत्र है उसका 5% उसमें हम एज कल्चर करेंगे. अब 1 हेक्टेयर में अगर हम पांच परसेंट लेते हैं तो कम से कम 4 टन उत्पादन होगा.  हम एक नई छलांग लगाने की योजना बना रहे हैं. हम मछुआरों का इंश्योरेंस कर रहे हैं. फिशरमैन के साथ-साथ फिश फार्मिंग की भी हम चिंता कर रहे हैं.

सवालः क्या इस बार बिहार की चुनावी लड़ाई में सबसे बड़ा मुद्दा प्रवासी मजदूरों का रहेगा? क्योंकि लगातार विपक्ष कह रहा है लॉकडाउन में मजदूरों की अनदेखी की गई है?

जवाबः महामारी के दौर में पीएम मोदी ने जिस ढंग से मैनेजमेंट किया है, विपक्ष के सामने केवल गाली देने के अलावा कुछ भी नहीं है. जो विपक्ष आज ताली बजा रहा है. जब प्रधानमंत्री ने जनता कर्फ्यू में कहा था तो इन्होंने मजाक उड़ाया था. आज खुशी है कि ये ताली बजा रहे हैं. आज बिहार में कोरोना काल में भी जनता के साथ केंद्र और राज्य सरकार ने साथ खड़ा होकर जता दिया. जो आंकड़े वहां के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने मुझे बताया कि एक परसेंट से भी कम मृत्युदर है. इस दुख की घड़ी में राज्य और केंद्र बिहार के साथ खड़ा भी रहा है. अमित शाह ने बिहार की जनता को बताया कि हमने 2015 में 1 लाख 25 हजार करोड़ के पैकेज की घोषणा की थी. वह पूरा हो गया है. उसकी एक-एक पाई का हिसाब हमने दे दिया है. गाली देने वाले गाली देते रहेंगे. जनता मालिक है. जनता देख रही है और यह चुनाव भी आगे हम जीतेंगे. मोदी जी का काम और बिहार सरकार नीतीश और सुशील मोदी के काम के भरोसे है.

सवालः इन सबके बीच प्रवासी मजदूरों की हालत सबने देखी. क्या ऐसा सचमुच हुआ कि कहीं ना कहीं आकलन में केंद्र से चूक हुई या राज्यों से कोआर्डिनेशन में कमी रही. क्वारंटाइन सेंटर में भी लोगों को बहुत दिक्कतें झेलनी पड़ीं. क्या सचमुच ऐसा हुआ कि कोरोना ने हमारी कमियों को उजागर कर दिया?

जवाबः नही-नहीं देखिए, कमियां तो उजागर होती हैं जब ऐसी कोई महामारी आती है, एक-एक लाख, डेढ़-डेढ़ लाख लोग जब आ जा रहे हैं तो कहीं ना कहीं कुछ असुविधा भी हुई होगी. असुविधा होती भी है. बिहार सरका बिहार के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री ने ऐसे कई काम किए हैं जो काम उनके दिल को छूने वाला है. उन्होंने कहा कि अगर कहीं गलतियां हुई हैं तो हम उसकी जांच करेंगे. जांच करके उसका निदान करने की कोशिश करेंगे. जैसा हमें बिहार सरकार के कई मंत्रियों द्वारा बताया गया. कई ऐसे दृश्य आए जो रोंगटे खड़े कर देने वाले थे लेकिन सबसे बड़ी नीयत होती है. बिहार के मंत्रियों ने बिहार की सरकार ने कहा. हमने कोशिश की है कि कहां चूक हुई. हम उसको दूर करेंगे. यही सरकार का काम है. नीती और नीयत दोनों साफ होनी चाहिए.

सवालः लद्दाख सीमा पर चीनी सेना की बढ़ती गतिविधि पर आने वाले समय पर इस पर क्या अपना विजन देखते है? एक मंत्री होने के नाते सरकार के प्रतिनिधि होने के नाते.

जवाबः आज देश के प्रधानमंत्री का नेतृत्व पूरी दुनिया ने स्वीकार किया है. अब हम किसी गुट और निर्गुट में नहीं है. प्रधानमंत्री-रक्षामंत्री ने कहा है कि हम दूसरों को तबाह नहीं करते, और हमारे ऊपर कोई अत्याचार करे उसे भी बर्दाश्त नहीं करेंगे. भारत की एक इंच भूमि भी हम कभी इधर से उधर होने नहीं देंगे. प्रधानमंत्री जैसा नेतृत्व, रक्षामंत्री जैसा नेतृत्व अगर है तो डोकलाम में हमने देखा है. हम बातों से सुलझा लेंगे. किसी के दबाव में भारत नहीं आने वाला है चाहे दुनिया की कितना भी बड़ी ताकत क्यों न आए. अपने देश के लिए. अपने राष्ट्र के लिए अपनी सीमा के लिए भारत के जवान तत्पर हैं.

सवालः सुशील मोदी जी नीतीश जी के समर्थन के नेतृत्व और उनके समर्थन की बात करते हैं. लेकिन दूसरी तरफ चिराग पासवान ने नीतीश जी की जगह किसी और के समर्थन की बात कही है तो क्या कुछ और गणित है बिहार चुनाव को देखते हुए. इस मुद्दे को थोड़ा सा दिलचस्प चिराग पासवान ने बना दिया?

जवाबः 3 महीने से दिल्ली में होने के कारण मुझे नहीं मालूम है. मुझे पूरा भरोसा है कि रामविलास पासवान जी नीतीश जी और बिहार का नेतृत्व केंद्र का नेतृत्व हर मसले को सुलझाने में सक्षम है. देश को आज एक स्थिर और एक स्पष्ट नेतृत्व की आवश्यकता है. जिसके कारण आज हम कोरोना से लड़ रहे हैं. बड़े ही बखूबी तरीके से और देश में लाल बहादुर शास्त्री के बाद अगर देश की जनता ने किसी पर भरोसा किया तो नरेंद्र मोदी पर किया. जनता कर्फ्यू यह छोटी बात नहीं है एक बार प्रधानमंत्री के आग्रह पर लोगों ने गैस पर सब्सिडी छोड़ दी. जब हमसे कोई पूछता है कि यूपीए का 10 साल और एनडीए का छठा साल मिलाकर आप क्या कहते हैं. तो हम कहते हैं कि 10 साल यूपीए सरकार विवादों में घिरी रही और 6 साल मोदी सरकार लोगों के भरोसे पर खरी साबित हुई. लोगों में आशा की किरण जगनी शुरू हुई. एक विश्वास की किरण जगी यह एक बहुत बड़ी बात है.

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