Lord Louis Mountbatten: लॉर्ड लुइस माउंटबेटन (Lord Louis Mountbatten) जब भारत आजाद हुआ तब के अंतिम वायसराय थे. माउंटबेटन एक ब्रिटिश नौसेना अधिकारी थे, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत पर जापानी आक्रमण को विफल होते देखा. उन्हें ब्रिटिश भारत का अंतिम वायसराय और स्वतंत्र भारत का पहला गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया था.
लुई फ्रांसिस अल्बर्ट विक्टर निकोलस माउंटबेटन का जन्म 25 जून 1900 को विंडसर में हुआ था. वे जात से जर्मन थे, बैटनबर्ग के राजकुमार लुई और हेस्से की राजकुमारी विक्टोरिया के पुत्र थे, तथा ब्रिटिश शाही परिवार के साथ भी उनके घनिष्ठ संबंध थे (उनकी परदादी महारानी विक्टोरिया थीं और वे स्वयं राजकुमार फिलिप के चाचा थे).
माउंटबेटन के पिता प्रथम विश्व युद्ध के समय पहले समुद्री सरदार थे, लेकिन जर्मन विरोधी भावना के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. 1917 में परिवार ने अपना नाम बैटनबर्ग से बदलकर कम जर्मनिक लगने वाला माउंटबेटन रख लिया.
माउंटबेटन को परिवार और करीबी दोस्त'डिकी' के नाम से बुलाते थे. उनकी शिक्षा घर पर ही हुई. वे 1914 में डार्टमाउथ के रॉयल नेवल कॉलेज पहुंचे. जहां 1916 में रॉयल नेवी में शामिल हुए और प्रथम विश्व युद्ध में हिस्सा लिया. फिर युद्ध के बाद एक साल के लिए कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में कुछ समय रहे.
माउंटबेटन ने युद्ध के बीच अपना नौसैनिक करियर बनाया, जहां उन्होंने संचार में विशेषज्ञता हासिल की. 1934 में उन्हें विध्वंसक HMS 'डेयरिंग' पर अपना पहला कमांड मिला. जून 1939 में, युद्ध शुरू होने से कुछ समय पहले, माउंटबेटन को विध्वंसक बेड़े की कमान मिली, जिससे भूमध्य सागर में काफी लड़ाई की गई. मई 1941 में उनके जहाज HMS 'केली' को क्रेते के तट पर जर्मन गोताखोरों ने डुबो दिया, जिसमें आधे से ज्यादा चालक दल के सदस्य मारे गए. 'केली' और उसके कप्तान को बाद में नोएल कावर्ड की फिल्म 'इन विच वी सर्व' में दिखाया गया.
अप्रैल 1942 में माउंटबेटन को संयुक्त अभियानों का प्रमुख नियुक्त किया गया, जिसमें कब्जे वाले यूरोप पर अंतिम आक्रमण की तैयारी की जिम्मेदारी थी. अक्टूबर 1943 में वे दक्षिण पूर्व एशिया कमान (SEAC) के सर्वोच्च सहयोगी कमांडर बन गए, जिस पद पर वे 1946 तक रहे. जनरल विलियम स्लिम के साथ काम करते हुए, माउंटबेटन ने भारत के खिलाफ जापानी आक्रमण को विफल किया और बर्मा पर फिर से कब्जा किया. सितंबर 1945 में उन्होंने सिंगापुर में जापानियों से आत्मसमर्पण कराया.
अब माउंटबेटन आए भारत
मार्च 1947 में माउंटबेटन भारत के वायसराय बन गए और उन्हें ये जिम्मेदारी दी गई वो ब्रिटिश से भारत को सत्ता सौंपें यानी भारत को आजाद कर दिया जाए. उन्होंने प्रमुख राजनेताओं, खासकर जवाहरलाल नेहरू के साथ अच्छे संबंध स्थापित किए, लेकिन मुस्लिम नेता मोहम्मद अली जिन्ना को एकजुट, स्वतंत्र भारत के लाभों के बारे में समझाने में असमर्थ रहे.
माउंटबेटन ने जल्द ही एकजुट देश की उम्मीद छोड़ दी और 14-15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश भारत को भारत और पाकिस्तान के नए देशों में विभाजित कर दिया गया. इसके परिणामस्वरूप सामुदायिक हिंसा हुई, खासकर पंजाब में.
माउंटबेटन जून 1948 तक भारत के अंतरिम गवर्नर-जनरल के रूप में बने रहे. युद्ध के दौरान और भारत में उनकी सेवाओं के लिए उन्हें 1946 में विस्काउंट बनाया गया और अगले वर्ष बर्मा का अर्ल माउंटबेटन बनाया गया.
1953 में माउंटबेटन रॉयल नेवी में वापस लौटे और एक नए NATO भूमध्यसागरीय कमांड के कमांडर बन गए. फिर 1954 में उन्हें पहला समुद्री सरदार नियुक्त किया गया, यह पद उनके पिता के पास 40 साल से भी ज्यादा पहले था. अंत में 1959 में वे रक्षा कर्मचारियों के प्रमुख बने, फिर 1965 में वे नौसेना से सेवानिवृत्त हो गए.
माउंटबेटन की हुई हत्या
27 अगस्त 1979 को माउंटबेटन की हत्या कर दी गई. IRA के आतंकवादियों ने आयरलैंड के काउंटी स्लिगो के तट पर उनके नाव को उड़ा दिया. वे क्लासीबॉन कैसल में उनके पारिवारिक छुट्टियां मनाने के लिए बनाए गए घर के पास थे. माउंटबेटन के दो रिश्तेदार और एक 15 वर्षीय स्थानीय लड़का भी मारा गया.
माउंटबेटन का अंतिम संस्कार वेस्टमिंस्टर एब्बे में हुआ और उन्हें ब्रॉडलैंड्स के पास रोम्सी एब्बे में दफनाया गया. उनका कोई बेटा नहीं था, जिसका मतलब था कि माउंटबेटन की सबसे बड़ी बेटी पेट्रीसिया को उनका सब विरासत में मिला.
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