जो बिंदुसार नहीं कर पाया, उसके बेटे अशोक ने वो कर दिखाया; जानें कलिंग युद्ध की असली कहानी

कलिंग युद्ध एक ऐसा युद्ध था, जिसने न केवल सम्राट अशोक की नीतियों को बदला. बल्कि पूरे भारत की तस्वीर बदल दी. जिसके पीछे की असली वजह ऐसी थी, जिसे सम्राट अशोक ने अपने तेरहवें शिलालेख में स्वयं जिक्र किया है.

Written by - Prashant Singh | Last Updated : Jun 11, 2025, 09:14 PM IST
  • सम्राट बिंदुसार के दौरान अजेय रहा कलिंग
  • आधुनिक ओड़िशा राज्य है कलिंग का क्षेत्र
जो बिंदुसार नहीं कर पाया, उसके बेटे अशोक ने वो कर दिखाया; जानें कलिंग युद्ध की असली कहानी

Kalinga War and Samrat Ashok: प्राचीन भारतीय इतिहास में मौर्य साम्राज्य अपनी शक्ति और विशालता के लिए जाना जाता है. इस साम्राज्य के सम्राटों की महत्वाकांक्षा हमेशा अपने क्षेत्र का विस्तार करने की रही. लेकिन एक ऐसा राज्य था, जो मौर्यों की प्रचंड शक्ति के सामने भी नहीं झुका और अपनी स्वतंत्रता बनाए रखी. यह राज्य था कलिंग. सम्राट अशोक के पिता बिंदुसार के शासनकाल में यह राज्य अजेय बना रहा. हालांकि, उनके बेटे अशोक ने इस अजेय चुनौती को हासिल करने की ठान ली, और यहीं से एक ऐसे युद्ध की कहानी शुरू हुई, जिसने भारतीय इतिहास का रुख ही बदल दिया.

कलिंग की स्वतंत्रता और बिंदुसार की चुनौती
कलिंग, जो आज का ओडिशा राज्य है. मौर्य साम्राज्य के उदय के समय एक शक्तिशाली और स्वतंत्र राज्य था. यह अपने समुद्री व्यापार, समृद्ध संस्कृति और मजबूत सैन्य शक्ति के लिए प्रसिद्ध था. महान मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के पुत्र और अशोक के पिता सम्राट बिंदुसार ने अपने शासनकाल में मौर्य साम्राज्य का खूब विस्तार किया. उन्होंने दक्षिण भारत के कई क्षेत्रों को जीतकर साम्राज्य में मिलाया. हालांकि, इतिहासकारों और प्राचीन बौद्ध ग्रंथों के अनुसार, बिंदुसार अपने पूरे शासनकाल में कलिंग को मौर्य साम्राज्य में शामिल करने में सफल नहीं हो सके. कलिंग उनकी सबसे बड़ी अनसुलझी चुनौती बना रहा.

सम्राट अशोक और कलिंग का भीषण युद्ध
पिता बिंदुसार के विपरीत, युवा सम्राट अशोक ने कलिंग को जीतने की ठान ली. अपने राज्याभिषेक के आठवें वर्ष यानी करीब 261 ईसा पूर्व, अशोक ने कलिंग पर एक बड़ा हमला किया. इस युद्ध के पीछे कलिंग के रणनीतिक महत्व, उसके व्यापार मार्गों पर नियंत्रण और मौर्य साम्राज्य के पूर्ण भौगोलिक विस्तार की अशोक की महत्वाकांक्षा थी. यह युद्ध भारतीय इतिहास के सबसे भीषण और रक्तपात भरे संघर्षों में से एक था, जिसने पूरे क्षेत्र को हिला कर रख दिया.

युद्ध का भयावह परिणाम
कलिंग युद्ध की भयावहता का वर्णन स्वयं सम्राट अशोक ने अपने तेरहवें शिलालेख में किया है, जो इस ऐतिहासिक घटना का सबसे प्रामाणिक स्रोत है. इस शिलालेख के अनुसार, युद्ध में 1 लाख से अधिक लोग मारे गए, डेढ़ लाख 150,000 लोगों को बंदी बनाकर निर्वासित किया गया, और इससे भी कहीं ज्यादा लोग युद्ध के बाद रोग, अकाल और अन्य परिस्थितियों में मारे गए. इस भीषण रक्तपात और विनाश ने सम्राट अशोक को अंदर तक झकझोर कर रख दिया.

सम्राट अशोक का हृदय परिवर्तन
कलिंग युद्ध के भयावह परिणामों को देखकर अशोक को गहरा पश्चाताप हुआ. इस घटना ने उनके जीवन की दिशा पूरी तरह बदल दी. इस युद्ध के बाद, सम्राट अशोक ने हिंसा का रास्ता हमेशा के लिए त्याग दिया और बौद्ध धर्म अपना लिया. उन्होंने 'दिग्विजय' युद्ध द्वारा विजय की अपनी नीति छोड़कर, 'धम्म-विजय' धर्म द्वारा विजय की नीति अपनाई.

इतिहासकार रोमिला थापर और डी.एन. झा के मुताबिक, कलिंग युद्ध अशोक के जीवन का एक निर्णायक मोड़ था, जिसने उन्हें एक क्रूर और महत्वाकांक्षी विजेता से एक दयालु, शांतिप्रिय और धर्मपरायण शासक में बदल दिया, और इतिहास में उन्हें 'महान अशोक' के रूप में स्थापित किया.

ऐसे में कलिंग युद्ध एक ऐसा युद्ध था, जिसने न केवल सम्राट अशोक की नीतियों को बदला, बल्कि भारत की तस्वीर भी बदली. इसके बाद मौर्य समाज बेहद कमजोर हुआ, और अगले दो साम्राज्य के बाद बृहद्रथ के काल में समाप्त हो गया. जो कि मौर्य साम्राज्य के आखिरी सम्राट थे.

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