नई दिल्ली: पिछले दिनों राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भारी हंगामा मचा था. दलित संगठनों ने रामलीला मैदान में विशाल रैली की थी और दिल्ली की सड़कें जाम कर दी थीं. क्योंकि दलित समुदाय के लोग महान संत रविदास जी का मंदिर हटाए जाने से नाराज थे. लेकिन अब केन्द्र सरकार ने अदालत में हलफनामा दिया है कि वह ठीक उसी जगह पर रविदास मंदिर बनाने के लिए जमीन देगी. यह मंदिर दिल्ली के जहाँपनाह सिटी फॉरेस्ट के दक्षिण-पूर्वी छोर पर स्थित था
ये था पूरा मामला
दलित समुदाय के लोग 10 अगस्त को तब उद्वेलित हो उठे, जब भक्तिकाल के महान संत रविदास जी का मंदिर दिल्ली से हटा दिया गया. यह मंदिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दिल्ली विकास प्राधिकरण ने हटाया था. लेकिन इस कदम के बाद पूरे देश के दलित समुदाय में जबरदस्त नाराजगी देखी गई थी. पंजाब में तो इस मुद्दे पर कई दिनों तक हंगामा मचा रहा. इस मुद्दे पर दिल्ली में हिंसक प्रदर्शन हुआ. 24 अगस्त को दलित संगठनों ने पूरी दिल्ली घेर ली और मध्य दिल्ली के झंडेवालान से रामलीला मैदान तक विरोध स्वरुप रैली निकाली थी.
रविदास मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए 6 अक्टूबर से दलित संगठन आमरण अनशन भी कर रहे थे.
विपक्ष ने शुरु कर दी थी राजनीति
संत रविदास मंदिर से दलितों से भावनात्मक लगाव को देखते हुए इस मुद्दे पर राजनीति शुरु हो गई थी. मायावती, कांग्रेस और केजरीवाल ने इस मुद्दे पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने के लिए दांव पेंच चलने शुरु कर दिए थे. राजनीतिक बयानबाजियां शुरु हो गई थीं. बसपा प्रमुख मायावती ने बयान जारी किया.
दिल्ली के तुगलकाबाद क्षेत्र में बना सन्त रविदास मन्दिर केन्द्र व दिल्ली सरकार की मिली-भगत से गिरवाये जाने का बी.एस.पी. ने सख्त विरोध किया। इससे इनकी आज भी हमारे सन्तों के प्रति हीन व जातिवादी मानसिकता साफ झलकती है।
— Mayawati (@Mayawati) August 14, 2019
भीम आर्मी के चंद्रशेखर ने दिल्ली आकर प्रदर्शन किया. दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष राजेश लिलोठिया, हरियाणा कांग्रेस के नेता अशोक तंवर और यूपीए सरकार में केन्द्रीय मंत्री रह चुके प्रदीप जैन ने रविदास मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी.
मोदी सरकार ने पूरी राजनीति की हवा निकाल दी
कांग्रेस नेताओं की याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई हुई. जिसमें केन्द्र सरकार ने हलफनामा दायर करके यह बताया कि दिल्ली में संत रविदास मंदिर को फिर से बनाने के लिए 200 स्क्वायर मीटर की जमीन दक्षिणी दिल्ली में ठीक उसी जगह दी जाएगी, जहां मंदिर को तोड़ा गया था.
Delhi Sant Ravidas temple demolition case: Attorney General K K Venugopal told the Supreme Court today that 200 square metre area of the site can be handed over to a committee of devotees for reconstruction of the temple. pic.twitter.com/munsUA3wq8
— ANI (@ANI) October 18, 2019
केन्द्र सरकार की ओर से अदालत में पेश हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कोर्ट को बताया कि भक्तों की एक समिति को मंदिर निर्माण के लिए सरकार जमीन देगी. कोर्ट ने सरकार के प्रस्ताव को रिकॉर्ड में ले लिया. अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट सोमवार को फैसला सुनाएगा.
इतिहास में प्रसिद्ध हैं संत रविदास
मान्यता है कि 1500 ईस्वी की शुरुआत में संत रविदास ने दिल्ली में लोदी वंश के सुल्तान रहे सिकंदर लोदी को दीक्षा प्रदान की थी. जिसके बाद संत शिरोमणि को तुगलकाबाद में 12 बीघा जमीन दान की गई थी जिस पर यह मंदिर बना. यह भी माना जाता है कि 1509 में जब संत रविदास बनारस से पंजाब की ओर जा रहे थे तो उन्होंने इस स्थान पर आराम किया था. तब से यह जगह पवित्र मानी जाती है. संत रविदास की पवित्र वाणियां गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित हैं. जिसके कारण वह सिखों के भी श्रद्धेय माने जाते हैं.
इस वजह से था विवाद
दिल्ली विकास प्राधिकरण का आरोप था कि यह मंदिर वन क्षेत्र में अवैध रुप से बनाया गया है. डीडीए का कहना था कि मंदिर का संचालन करने वाली समिति से कई बार इसे हटाने के लिए कहा गया, लेकिन उसने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया. फिर मामला अदालतों में गया. आखिर में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी मंदिर को नहीं हटाया गया. इसके बाद नौ अगस्त को शीर्ष अदालत ने कड़े शब्दों में इसे अपनी अवमानना बताया और आदेश दिया कि 24 घंटे के भीतर डीडीए इस ढांचे को ढहा दे. जिसके बाद वन क्षेत्र से मंदिर को हटाने की कार्रवाई की गई.
लेकिन सुप्रीम कोर्ट में केन्द्र सरकार के हलफनामे के बाद रविदास मंदिर को लेकर राजनीति कर रहे संगठनों की हवा निकल गई है.