नई दिल्ली: आज के वक्त में वही देश सबसे ताकतवर है, जिसके पास अधिक अत्याधुनिक हथियार हैं. यही कारण है कि पूरी दुनिया में उन्नत किस्म के हथियार बनाने की होड़ मची हुई है. द्वितीय विश्व युद्द के बाद जब दुनिया दो धड़ा यूएस और यूएसएसआर में बंटा, तब इनोवेशन की लड़ाई में फर्स्ट आने वाला देश ही सबसे ताकतवार माना जाता था. इस बीच दोनों धड़ों में तकनीकों से लैस हथियार भी बनने लगे.
ऐसे में जब दुनिया के सबसे महंगे और ताकतवर हथियारों की बात आती है, तो एक ऐसी मिसाइल का नाम सामने आता है, जिसकी कीमत सुनकर हर कोई दंग रह जाता है. हम बात कर रहे हैं दुनिया की एडवांस मिसाइलों में शुमार ‘ट्राइडेंट मिसाइल’ के बारे में, जिसका नाम सबसे महंगी मिसाइलों में सबसे ऊपर आता है.
क्या है ट्राइडेंट मिसाइल?
ट्राइडेंट मिसाइल संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) और ब्रिटेन की नौसेना द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली सबमरीन-लॉन्च्ड बैलिस्टिक मिसाइल (SLBM) है, साथ ही यह इतनी ताकतवर है कि दुनिया के किसी भी देश का एक झटके में नामोनिशान मिटा सकती है.
क्यों बनाई गई ट्राइडेंट
दरअसल, कोल्ड वॉर के दौरान पुराने पोसिडॉन और पोलारिस मिसाइलों को बदलने की जरूरत महसूस हुई. ऐसे में अमेरिका एडवांस मिसाइल बनाने का फैसला लेता है, जिसके लिए वह ट्राइडेंट मिसाइल सिस्टम बनाना शुरू करता है, जो कई चरणों में बनकर तैयार हुआ है. आज के समय यह न केवल अमेरिका का, बल्कि ब्रिटेन का एकमात्र स्ट्रेटजिक-रेंज वाला परमाणु हथियार है.
दो मॉडल्स बनकर हुए तैयार
ट्राइडेंट को बनाने का जिम्मा अमेरिकी हथियार निर्माता कंपनी लॉकहीड मार्टिन को मिला. ट्राइडेंट मिसाइल के बनाने की शुरूआत 1960 के दशक के आखिरी के कुछ वर्षों में शुरू हुआ.
शुरुआती दौर में ट्राइडेंट मिसाइल्स को दो मॉडल्स के रूप में विकसित किया गया, जिसका पहला वर्जन- ट्राइडेंट I (C-4) 1970 के दशक में बनकर तैयार हुआ था. यह लगभग 7,400 किलोमीटर (4,000 समुद्री मील) तक मार कर सकती थी और इसमें 8 अलग-अलग टारगेट्स पर हमला करने वाले 100-किलोटन परमाणु वारहेड्स लगे होते थे. वर्तमान समय में यह वर्जन रिटायर हो चुका है.
वहीं, 1980 के दशक में इसका दूसरा वर्जन- ट्राइडेंट II (D-5) के रूप में विकसित किया गया. इसमें अलग-अलग लक्ष्यों के लिए कई वारहेड्स होते हैं. इसकी अधिकतम मारक दूरी लगभग 12,000 किलोमीटर (6,500 समुद्री मील) है. यह पहले के मुकाबले ज्यादा सटीक है और इसमें तीन ठोस-ईंधन वाले बूस्टर लगे होते हैं, जो इसे तेजी से लक्ष्य तक पहुंचाने में मदद करते हैं. इसमें उपग्रह नेविगेशन तकनीक भी शामिल है.
कैसे काम करती है ट्राइडेंट मिसाइल?
ट्राइडेंट्स मिसाइल को उसके फीचर्स और भी खास बनाते हैं. ट्राइडेंट मिसाइल पनडुब्बी के टारपीडो ट्यूब से पानी के अंदर से दागी जा सकती है. वहीं, मिसाइल में बूस्टर लगे होते हैं, जो इसे पानी के अंदर से बाहर निकालने में मदद करते हैं और हवा में कई किलोमीटर की ऊंचाई तक बिना किसी रुकावट के ले जाते हैं.
जब मिसाइल अपने मिडकोर्स फेज यानी अंतरिक्ष में प्रवेश करती है तो इंटकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) की तरह आगे बढ़ती है. इसके बाद यह अपने फाइनल स्टेज में पहुंचकर टारगेट सेट करके कई परमाणु वॉरहेड गिराने में सक्षम बन जाती है.
कब और कहां तैनात की गईं ट्राइडेंट मिसाइलें?
जहां तक बात इसकी तैनाती की है तो सबसे पहले वर्ष 1979 की शुरुआत में ट्राइडेंट I मिसाइलों को अमेरिकी पोसिडॉन-वाहक पनडुब्बियों और नई ओहियो-क्लास की पनडुब्बियों पर तैनात किया गया. ओहियो-क्लास की पनडुब्बियां खासतौर पर ट्राइडेंट II (D-5) मिसाइलों के लिए बनाई गई थीं और इनमें बड़ी मिसाइल ट्यूबें थीं, जो 1990 में ट्राइडेंट II के आने से पहले स्थापित की गई थीं.
इसके बाद ब्रिटेन ने भी वर्ष 1994 से 1999 के बीच अपनी वैनगार्ड-क्लास की पनडुब्बियों पर ट्राइडेंट II मिसाइलें तैनात कीं, जिनमें ब्रिटिश डिजाइन के वारहेड्स लगाए गए थे. मिसाइलों में लगाए जाने वाले वारहेड्स की संख्या बजट सीमाओं और हथियार नियंत्रण संधियों के अनुसार तय की जाती है.
अब तक 191 बार किया जा चुका है सफल परीक्षण
IISS की रिपोर्ट के अनुसार ट्राइडेंट II D-5 मिसाइल का सबसे हालिया अमेरिकी परीक्षण 27 सितंबर 2023 को हुआ, जो 1989 के बाद से 191वां सफल समुद्री प्रक्षेपण था. 2012 से अब तक, हर साल औसतन चार से पांच सफल परीक्षण किए गए हैं. हालांकि, इस कुल संख्या में 1994 के बाद से ब्रिटेन द्वारा किए गए 10 सफल परीक्षण भी शामिल हैं.
30,000 करोड़ रुपए से ज्यादा आती है लागत
एक ओहियो-क्लास की ट्राइडेंट मिसाइल से लैस पनडुब्बी बनाने में Brookings Institution की रिपोर्ट की मानें तो करीब 3.5 बिलियन डॉलर खर्च आता है, यानी भारतीय रुपए में देखा जाए तो 30,000 करोड़ रुपए से भी ज्यादा की लागत आती है. इसमें पनडुब्बी सहित पूरा हथियार सिस्टम लगा होता है.
ट्राइडेंट I (C-4) मिसाइल की प्रति यूनिट लागत करीब 62 मिलियन डॉलर है यानी एक ट्राइडेंट I मिसाइल को बनाने में करीब 540 करोड़ रुपए की लागत आती है.
वहीं, दूसरी ओर देखा जाए तो ट्राइडेंट II (D-5) मिसाइल जो कि अधिक एडवांस है, जिसकी प्रति यूनिट बनाने की लागत लगभग 90 मिलियन डॉलर है, यानी एक ट्राइडेंट II को बनाने में करीब 785 करोड़ रुपए का खर्च आता है.
आपको बता दें कि एक पनडुब्बी में 24 ट्राइडेंट मिसाइलों को तैनात किया जा सकता है. अगर इन्ही पनडुब्बियों को अन्य हथियारों से भी लैस किया जाता है तो इसकी कीमत और अधिक हो जाती है.
BBC की एक रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिटेन सरकार को हर साल अपने देश में इस सिस्टम को मेंटेन रखने के लिए रक्षा बजट का लगभग 6% खर्च करना पड़ जाता है. हालांकि यह समय और रक्षा बजट पर निर्भर करता है.
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