इमारतें खड़ी करते-करते लोगों की लाशें गिराने वाला मुकीम काला

मुकीम काला की कहानी में सबकुछ बहुत जल्दी ही हो गया. वह 18-19 साल का था तो एक मकान की चिनाई कर रहा था. इसके साथ ही अपने बाप को हथियारों की स्मगलिंग करते देखते था. एक कदम चिनाई की ओर बढ़ते तो दूसरे कदम शॉर्टकट लेने के लिए. एक दिन शॉर्टकट ने लंबा हाथ मारा और जिस मकान में वह मजदूरी कर रहा था उसी मकान मालिक के 18 लाख रुपये लूट लिए. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : May 14, 2021, 09:04 PM IST
  • करनाल जेल में मुस्तफा कग्गा के संपर्क में आया था मुकीम
  • पहले था राजमिस्त्री, फिर शुरू की रंगदारी, बन गया बदमाश
इमारतें खड़ी करते-करते लोगों की लाशें गिराने वाला मुकीम काला

नई दिल्लीः शामली जिले का कैराना. 2016 की जनवरी की रात पश्चिमी उत्तर प्रदेश का यह इलाका अचानक ही देशभर की मीडिया के लिए सुर्खियां बन गया. दावा था कि कई घर एक शख्स के निशाने पर थे जो दहशत का दूसरा नाम बनकर उभर रहा था. इस वजह से रातों-रात कितने ही परिवारों ने कैराना छोड़कर जाने में ही भलाई समझी.

मीडिया की दिलचस्पी इसलिए भी इस ओर बढ़ी की क्योंकि यह मामला छोटे स्तर पर ही सही बहुत हद तक कश्मीरी पंडितों के पलायन जैसा था और इसकी तस्दीक की उस समय के बीजेपी सांसद हुकुमदेव सिंह ने. जिन्होंने दावा किया था कि इस गैंग के डर से कैराना के लगभग 350 परिवार पलायन कर चुके हैं.

यह मकान बिकाऊ है, कैराना में यह आम हो गया
सांसद हुकुमदेव ने जैसे ही यह बात कही, सिर्फ कैराना ही राष्ट्रीय फलक पर नहीं आ गया बल्कि पश्चिमी यूपी में अपराध के सब्जेक्ट में लगातार टॉप 5 आ रहे मुकीम गैंग का नाम भी सबने जान लिया. मुकीम यानी मुकीम काला गैंग. कैराना के घरों की दीवारों पर यह मकान बिकाऊ है लिखा होना आम हो गया था, इसकी कई तस्वीरें सामने आईं थीं.

14 मई 2021 की दोपहर उसी मुकीम के बारे में खबर आई कि दहशत की दुनिया बनाने वाला मुकीम अपने ही जैसे लोगों के साथ और उनके ही बीच मार दिया गया. 

ऐसे शुरू होती है मुकीम की काली कहानी
मुकीम काला की कहानी में सबकुछ बहुत जल्दी ही हो गया. वह 18-19 साल का था तो एक मकान की चिनाई कर रहा था. इसके साथ ही अपने बाप को हथियारों की स्मगलिंग करते देखते था. एक कदम चिनाई की ओर बढ़ते तो दूसरे कदम शॉर्टकट लेने के लिए. एक दिन शॉर्टकट ने लंबा हाथ मारा और जिस मकान में वह मजदूरी कर रहा था उसी मकान मालिक के 18 लाख रुपये लूट लिए. 

करनाल जेल से जरायम की दुनिया तक
कैराना पास जहानपुरा गांव में जन्मा मुकीम इस मामले में गिरफ्तारी के बाद हरियाणा के करनाल जेल में भेजा गया. यहां उसके जीवन का टर्निंग पॉइंट इंतजार कर रहा था. जेल में उसकी मुलाकात कुख्यात गैंगस्टर मुस्तफा कग्गा से हुई. कग्गा उसे दूर से देखा करता था.

काला की जिद उसे खास पसंद आई और फिर धीरे-धीरे कग्गा ने काला को अपनी शागिर्दी में ले लिया. काला के गैंगस्टर बनने की शुरुआत हो गई थी. चिनाई बहुत पीछे छूट गई और अब वह लाशों के ढेर पर चढ़कर लाखों लूटने की ओर निकल पड़ा. 

गैंगस्टर कग्गा का बना दाहिना हाथ
जेल से बाहर आकर कग्गा ने काला को गैंग में शामिल कर लिया और जल्द ही वह गैंग का सबसे खास आदमी बन गया. 2011 में जब कग्गा का एनकाउंटर हुआ को काला ने उसके गैंग को बिखरने नहीं दिया और तुरंत ही वह मुकीम काला गैंग बन गया. इसके बाद तो काला ने हत्या, लूट, जबरन वसूली की कई घटनाएं की.

आतंक कैराना से निकल कर, यूपी, उत्तराखंड और हरियाणा तक फैला. काला के खिलाफ शामली, देहरादून, पानीपत, बागपत और अन्य जिलों में हत्या, लूट और जबरन वसूली के कई दर्जन केस दर्ज हुए. थानों की फाइलें भरी जाने लगीं. 

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अक्टूबर 2015 में हुई गिरफ्तारी
लेकिन, जरायम की दुनिया बहुत दूर तक नहीं जाती. सरगना बनने की तीन साल के भीतर ही काला के दिन खराब होने लगे. अक्टूबर 2015 में काला को गिरफ्तार करके सहारनपुर जेल में डाल दिया. इसके बाद उसे महाराजगंज जिला जेल भेजा गया. इसी बीच उसके गैंग के लोगों का पुलिस से एनकाउंटर हुआ और दावे के मुताबिक पुलिस ने उसका गैंग खत्म कर दिया.

अखबारी दुनिया में कई दिनों तक खबरें आती रही हैं कि काला जेल से ही बैठकर अपना जुर्म का साम्राज्य चला रहा है, लेकिन पुलिस इन्हें नकारती रही. कहा तो यह भी जाता है कि एक सामान्य से छुटभैये अपराधी की इस कदर हनक बढ़ा देने का श्रेय पुलिस को भी मिलना चाहिए, क्योंकि उसने कभी भी काला के खिलाफ कार्रवाई में कोई फुर्ती नहीं दिखाई. 

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चित्रकूट की जेल में मिली ऐसी मौत
खैर, यह सब चलता रहा. पुलिस महकमे पर आरोप लगते रहे और काला की जेलें बदलती रहीं. अभी हाल ही में सहारनपुर जेल से काला को चित्रकूट जेल में शिफ्ट किया गया था. यहां शुक्रवार को जोल हुआ वह अब सुर्खियां हैं, सुर्खियां कुछ दिन में कहानी बन जाएंगीं. ये कहानियां जरायम की दुनिया में कदम बढ़ा रहे हर किशोर को बताएंगीं कि दहशत की उम्र बहुत लंबी नहीं होती. दूसरों की जान को खिलौना समझने वालों की मौत और भी बदतर होती है. 

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