क्या है ‘तलाक-ए-हसन’, जिसे अंसवैधानिक घोषित करने की मांग को लेकर SC में याचिका दायर

सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर ‘तलाक-ए-हसन’ और ‘एकतरफा न्यायेतर तलाक’ के अन्य सभी रूपों को अमान्य और असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया गया है.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : May 3, 2022, 07:53 PM IST
  • ‘मौलिक अधिकारों के खिलाफ है तलाक-ए-हसन’
  • मानवाधिकारों का भी होता है उल्लंघनः याची
क्या है ‘तलाक-ए-हसन’, जिसे अंसवैधानिक घोषित करने की मांग को लेकर SC में याचिका दायर

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर ‘तलाक-ए-हसन’ और ‘एकतरफा न्यायेतर तलाक’ के अन्य सभी रूपों को अमान्य और असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया गया है. 

मौलिक अधिकारों के खिलाफ है तलाक-ए-हसन’
याचिका में दावा किया गया है कि ‘तलाक-ए-हसन’ और इस तरह की अन्य एकतरफा न्यायेतर तलाक प्रक्रियाएं मनमानीपूर्ण और अतर्कसंगत हैं तथा मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं. 

गाजियाबाद निवासी बेनजीर हिना की तरफ से दायर याचिका में केंद्र को सभी नागरिकों के लिए तलाक के समान आधार और प्रक्रिया के लिए दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है. याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि वह ‘एकतरफा न्यायेतर तलाक-ए-हसन’ का शिकार हुई हैं. 

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि पुलिस और अधिकारियों ने उसे बताया कि शरीयत के तहत तलाक-ए-हसन की अनुमति है. 

जानिए क्या है ‘तलाक-ए-हसन’
‘तलाक-ए-हसन’ में, तीन महीने की अवधि में हर महीने में एक बार ‘तलाक’ कहा जाता है. तीसरे महीने में तीसरी बार ‘तलाक’ कहने के बाद तलाक को औपचारिक रूप दे दिया जाता है. 

याचिका में अनुरोध किया गया है कि उच्चतम न्यायालय तलाक-ए-हसन और न्यायेतर तलाक के अन्य रूपों को असंवैधानिक करार दे. 

'मानवाधिकारों का भी होता है उल्लंघन'
अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे के जरिये दायर याचिका में कहा गया है, ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937, एक गलत धारणा व्यक्त करता है कि कानून तलाक-ए-हसन और एकतरफा न्यायेतर तलाक के अन्य सभी रूपों को प्रतिबंधित करता है, जो विवाहित मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों के लिए बेहद हानिकारक है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 और नागरिक तथा मानवाधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय नियमों (कन्वेंशन) का उल्लंघन करता है.’ 

याचिका में दावा किया गया है कि कई इस्लामी राष्ट्रों ने इस तरह की प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया है, जबकि यह सामान्य रूप से भारतीय समाज और विशेष रूप से याचिकाकर्ता की तरह मुस्लिम महिलाओं को परेशान करना जारी रखे हुए है.

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