मुहर्रम के जुलूस पर बैन, पुलिस ने सख्ती दिखाई तो बन गई 'विलेन'?

मुहर्रम के लिए यूपी पुलिस की गाइलाइन जारी की. मुहर्रम में ताजिया नहीं रखे जाएंगे, न ही जुलूस निकलेगा. गाइडलाइन में इस्तेमाल की गई भाषा को लेकर शिया समुदाय ने रोष जताया. यहां ये समझिए कावड़ पर रोक लगी किसी ने पुलिस को आतंकी बगदादी या तालिबानी नहीं कहा, लेकिन मुहर्रम के जुलूस पर रोक लगी तो ऐसी मिर्ची लगी कि पुलिस तालिबानी और फरमानी बगदादी हो गया.

Written by - Ayush Sinha | Last Updated : Aug 2, 2021, 10:57 PM IST
  • मुहर्रम पर 'केरल वाली' छूट चाहिए!
  • पुलिस की चिट्ठी, मौलाना हुए परेशान
मुहर्रम के जुलूस पर बैन, पुलिस ने सख्ती दिखाई तो बन गई 'विलेन'?

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश पुलिस की एक चिट्ठी को लेकर विवाद खड़ा किया जा रहा है. जिसे 1 अगस्त को मुहर्रम के लिए जारी किया गया था. जिसमें यूपी के डीजीपी ने राज्य के सभी पुलिस कमिश्नरों, एसएसपी और एसपी को मुहर्रम से पहले जरूरी तैयारी रखने के दिशानिर्देश दिये हैं.

पुलिस की चिट्ठी में क्या है?

चार पन्नों की इस चिट्ठी के पहले पैराग्राफ में मुहर्रम के बारे में भूमिका और जानकारी है. दूसरे से नौवें पैराग्राफ तक मुहर्रम के मौक़े पर संभावित खतरे का जिक्र है और दसवें बिंदु से पुलिस की ज़रूरी तैयारी के दिशानिर्देश हैं. आखिरी के तीन पैराग्राफ में पुलिस अधिकारियों के लिए सलाह है.

वैसे तो ये चिट्ठी गोपनीय है, विभागीय है, लेकिन इसे सोशल मीडिया में प्रचारित किया जा रहा है और इस ऑफिशियल लेटर के कन्टेंट को लेकर मातम शुरू हो गया है.

मुहर्रम पर रोक तो पुलिस 'बगदादी'?

शिया धर्मगुरु सैफ अब्बास ने कहा कि मोहर्रम कोई त्योहार नहीं ये एक गम की अलामत है. वहीं शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद ने कहा कि ये कोई गाइडलाइन नहीं है, इसमें इल्जाम लगाए गए. ये बगदादी का बयान प्रतीत हो रहा है. इसके अलावा शिया धर्मगुरु याकूब अब्बास ने बोला कि डीजीपी साहब की भरपूर मजम्मत करता हूं.

इन मुस्लिम धर्मगुरुओं की शिकायत है कि यूपी पुलिस ने चिट्ठी में मुहर्रम के मौके के बारे में खतरे को आगाह करते हुए जो लाइनें लिखी हैं, वो आपत्तिजनक हैं. पुलिस के दिशानिर्देशों में क्या आपत्तिजनक है ये जानने के लिए आपको भी चिट्ठी देखनी चाहिए.

गाइडलाइन की भाषा पर शिया नाराज

चिट्ठी इस हिस्से में लिखा कि मुहर्रम के दौरान शिया और सुन्नी के बीच विवाद होते रहे हैं और वो विवाद क्यों होते रहे हैं इसके कारणों का भी जिक्र है. चिट्ठी में ये भी लिखा कि ऐसे मौके पर पुराने धार्मिक लंबित विवादों, यौन हिंसा और गौवंश वध या परिवहन की घटनाओं को लेकर विवाद होता रहा है और इसलिए सतर्कता जरूरी है.

यूपी पुलिस का भी साफ कहना है कि प्रदेश में हो चुकी साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाओं को देखते हुए ये शांति व्यवस्था बनाने के लिए पुलिस को दी गई सूचना और निर्देश हैं. एडीजी ने कहा है कि 'किसी को आहात करने के लिए शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए ये सूचनाएं दी गयी.'

लेकिन यूपी पुलिस की इस चिट्ठी को लेकर मुस्लिम धर्मगुरुओं ने, खासकर शिया धर्मगुरुओं ने बड़ा हंगामा खड़ा कर दिया है. यहां तक कि शांति कमेटी की बैठकों में जाने से भी इनकार कर रहे हैं. यूपी के कानून मंत्री बृजेश पाठक ने कहा है कि 'पता लगा है कोई विवाद है, हमारी मौलाना से बात होगी, कोई बीच का रास्ता निकलेगा.'

इस बार मुहर्रम 19 अगस्त को पड़ रहा है. चूंकि इस दौरान सावन का पवित्र महीना भी है ऐसे में त्योहारों के संयोग को देखते हुए यूपी पुलिस को अधिक सतर्कता बरतने के निर्देश दिये गए हैं. लेकिन मुस्लिम धर्मगुरु चिट्ठी में त्योहार शब्द के इस्तेमाल को भी तूल दे रहे हैं.

आरोप और आपत्ति का सच क्या है?

यहां ये जान लेना चाहिए कि इस चिट्ठी की भाषा को लेकर जो आरोप लगाये जा रहे हैं या आपत्ति उठाई जा रही है, उसका सच क्या है?

यूपी पुलिस ने अपनी चिट्ठी में लिखा है कि मुहर्रम जैसे मौके पर प्रदेश में पहले साम्प्रदायिक हिंसा और तनाव की घटनाएं होती रही हैं. तो पुलिस की चिट्ठी में ऐसा लिखने के पीछे के तथ्य आप देखिये. यूपी में मुहर्रम पर जो हिंसा होती रही है. उसमें से कुछ वारदातों के बारे में नीचे पढ़िए..

साम्प्रदायिक हिंसा और तनाव की घटनाएं

अक्टूबर 2018 में वो मुहर्रम का ही मौका था जब कुशीनगर, मेरठ, देवरिया, गोंडा, महराजगंज में हिंसा हुई. गोरखपुर में पुलिस जीप तक फूंक दी गई.

अक्टूबर 2017 में मुहर्रम पर कानपुर में आधा दर्जन वाहन फूंक डाले गए, बलिया में मुहर्रम जुलूस के दौरान पथराव के बाद हिंसा में 6 लोग गंभीर रूप से जख्मी हुए, 4 वाहन फूंके गए, लखनऊ, बरेली, पीलीभीत, संभल में हिंसक घटनाएं हुईं.

नवंबर 2013 मुहर्रम के मौक़े पर मुरादाबाद में हिंसा भड़की, 8 घर फूंक डाले गए, लूटपाट भी हुई. नवंबर 2012 वो मुहर्रम का ही मौका था जब मेरठ में भयानक हिंसा हुई, 26 लोग गंभीर रूप से जख्मी हुए.

मतलब, ये तो साफ है कि उत्तर प्रदेश में मुहर्रम के मौके पर साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाएं होती रही हैं और बहुत आशंका है कि देशविरोधी ताकतें उन्हें दोहराने की साजिश भी कर सकती हैं. मुस्लिम धर्मगुरुओं की एक और आपत्ति है कि मुहर्रम को त्योहार क्यों कहा.

इस पूरी चिट्ठी में त्योहार शब्द का प्रयोग दो जगहों पर किया गया है. एक बार तीसरे पन्ने की दूसरी लाइन में जहां लिखा गया है कि त्योहारों पर सार्वजनिक स्थलों पर विशेष व्यवस्था और चेकिंग कराई जाए. इसमें कहीं भी मुहर्रम को त्योहार नहीं लिखा गया है. चूंकि सावन भी है तो तैयारी की बात है. दूसरी बार त्योहार शब्द का जिक्र चौथे पन्ने में है जहां लिखा है कि त्यौहारों से एक दिन पहले पुलिस अधिकारियों की ब्रीफिंग की जाए. इसमें भी मुहर्रम को त्योहार नहीं लिखा गया है.

मौलानाओं की नजर में पुलिस 'बगदादी'!

मुहर्रम को त्योहार क्यों बोल दिया, ये वाला हंगामा झूठमूठ का किया जा रहा है. तो सवाल है कि ये मुस्लिम धर्मगुरु इतनी खीझ क्यों निकाल रहे हैं. मुहर्रम से पहले चिट्ठी पर इतना मातम क्यों है. अब इसका कारण समझिये.

सीधा कारण ये है कि यूपी पुलिस ने इस बार मुहर्रम पर किसी तरह के ताजिये और धार्मिक जुलूस निकालने पर पाबंदी लगा दी है. सड़कों पर हथियारों के प्रदर्शन पर निगरानी बैठा दी है. बिना कोविड नियमों के किसी भी कार्यक्रम पर रोक लगा दी है. अब खीझ ये है कि जब केरल वाले भरे कोरोना में बकरीद का जश्न मना सकते हैं. तो यूपी वाले कम कोरोना में मुहर्रम का मातम क्यों नहीं मना सकते. जब केरल की सरकार 27 प्रतिशत वोट के तुष्टिकरण के लिए 100 प्रतिशत आबादी की जान जोखिम में डाल सकती है. तो यूपी में क्यों तुष्टिकरण का ख्याल नहीं रखा जा रहा.

मुहर्रम के नाम पर क्यों कोहराम?

लेकिन यही तो केरल और उत्तर प्रदेश में फर्क है. एक साम्प्रदायिक तुष्टिकरण वाली सरकार और एक लोकतांत्रिक जिम्मेदार सरकार में फर्क है. वरना केरल की तरह यूपी में भी कांवड़ यात्राओं की छूट दे दी जाती. दरअसल इस खबर में देशहित दृष्टिकोण यही है कि देश के 16 राज्यों में ये हालत है कि कोरोना से ठीक होने वाले मरीजों के मुकाबले नये संक्रमण की संख्या बढ़ती जा रही है. लगातार 6 दिनों से कोरोना के संक्रमण में बढ़ोतरी दिख रही है. केरल में बकरीद छूट के बाद कोरोना बेकाबू है. कल भी 20 हजार 728 नये मामले मिले हैं.

और इस लिहाज से किसी भी तरह के भीड़भाड़ वाले आयोजनों पर निगरानी जरूरी है और अगर ऐसा आयोजन साम्प्रदायिक शांति के लिए खतरा हो सकता है. तब तो और भी सावधानी जरूरी है.

देश के किसी भी हिस्से में अगर कानून व्यवस्था की कमजोरी या लापरवाही से कोई बड़ी घटना होती है तो सबसे पहली अंगुली किस पर उठती है? इसका जवाब है पुलिस पर.. लेकिन वही पुलिस अगर विधि व्यवस्था बनाने के लिए तैयारी करे और पुराने प्रकरणों से सबक लेने की बात कहते हुए संभावित हिंसा के लिए अधिक सतर्कता बरतने के लिए कहे तो इसमें गलत क्या है. लेकिन पुलिस के मुहर्रम को लेकर ऐसे ही दिशानिर्देशों पर आपत्ति जताते हुए पुलिस को तालिबानी और बगदादी कहा जा रहा है. लानत है...!

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