Nobel Peace Prize 2022: शांति के नोबल पुरस्कार पर कई बार मची अशांति, महात्मा गांधी को न मिलने पर भी उठे हैं सवाल
Nobel Peace Prize 2022: दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित और सम्मानित पुरस्कार है नोबेल शांति पुरस्कार. कई बार प्रतिष्ठा के साए में विवाद होते हैं. ऐसे ही कुछ उदाहरण नोबेल पीस प्राइज के साथ भी हैं. कई बार इस पर विवाद पैदा हुए हैं. यहां तक एक बार इसे ठुकराया भी गया है.
नई दिल्ली: Nobel Peace Prize 2022: साल 1973. इस साल दो ऐसी बड़ी घटनाएं हुईं जिन्होंने इसे विश्व इतिहास के पन्नों पर दर्ज करा दिया. पहला 20 सालों से चले आ रहे वियतनाम वॉर पर युद्धविराम की सहमति बनी. दूसरा युद्ध को रोकने के प्रयासों के लिए अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर और उत्तरी वियतनाम के नेता ली डक थो के नाम का ऐलान दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार शांति के नोबेल के लिए हुआ. लेकिन उत्तरी वियतनाम के नेता ली डक थो ने सभी को चौंकाते हुए इसे ठुकरा दिया. थो अमेरिकी किसिंजर के साथ अवार्ड लेने से मना कर चुके थे. बता दें कि किसिंजर के ऑर्डर पर ही अमेरिकी सेना ने युद्ध विराम के बीच में ही वियतनाम के हनोई पर बमबारी की थी.
नोबेल पीस प्राइस का रहा है विवादों से गहरा नाता
नोबेल पीस प्राइस दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है. लेकिन कई बार प्रतिष्ठा अपने साथ बदनामी भी लेकर आती है. इतिहास में कई बार ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जिन्होंने इस सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार की साख पर बट्टा लगाने का काम किया है. वियतनाम के ली डक थो इकलौते ऐसे व्यक्ति रहे हैं जिन्होंने शांति का नोबल ठुकरा दिया था. लेकिन इसके अलावा दुनिया के क्रूरतम तानाशाहों का नाम भी इस पुरस्कार के साथ जुड़ चुका है. हालांकि वे केवल नामित हुए थे. साथ ही कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनको ये अवार्ड मिला तो लेकिन उस पर खूब विवाद भी हुआ.
हिटलर भी हो चुका है नामित
डायनामाइट के आविष्कारक अल्फ्रेड नोबेल के नाम पर नोबेल पुरस्कार दिए जाते हैं. ये पुरस्कार उनकी वसीयत के आधार पर दिए जाते हैं. अल्फ्रेड नोबेल ने अपनी वसीयत में यह लिखा था कि नोबेल का शांति पुरस्कार किसी ऐसे व्यक्ति को दिया जाए जिसने देशों के बीच भाईचारा बढ़ाने, सैनिकों की संख्या घटाने और शांति को बढ़ावा देने के लिए बेहतरीन काम किया हो. लेकिन साल 1939 में स्वीडन के एक सांसद ने हिटलर का नाम नोबेल पीस प्राइस के लिए भेज दिया. हालांकि उसने ये नाम केवल मजाक के तौर पर भेजा था लेकिन बाद में जब इसकी खूब किरकिरी हुई तो इसे वापस भी ले लिया गया. हिटलर के अलावा सोवियत संघ के तानाशाह जोसेफ स्टालिन का नाम भी साल 1945 और 1948 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित हो चुका है.
इन लोगों को नोबेल मिलने पर भी उठे हैं सवाल
अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत के अनुसार नोबेल पीस प्राइस विनर को पांच लोगों की कमेटी चुनती है. इस कमेटी का चुनाव नॉर्वे की संसद करती है. यही वजह है कि नोबेल पीस प्राइस नॉर्वे में दिए जाते हैं. लेकिन कई बार इस कमेटी ने ऐसे लोगों को भी शांति के नोबेल के लिए चुना जिन पर खूब विवाद हुआ. इसमें सबसे बड़ा नाम पहले अश्वेत अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का है. कई लोगों ने बराक ओबामा को शांति का नोबेल देने पर हैरानी जताई थी. बराक ओबामा ने भी अपनी जीवनी में लिखा है कि जब उनको ये पुरस्कार दिया गया तो उनकी पहली प्रतिक्रिया थी, "किस लिए."
यासिर अराफात और आंग सान सू की का नाम भी है शामिल
फिलिस्तीन के नेता यासिर अराफात को 1994 में नोबेल का शांति पुरस्कार इजराइल के प्रधानमंत्री येत्जाक रॉबिन और इजराइल के ही विदेश मंत्री शिमोन पेरेस के साथ दिया गया था. अराफात का इतिहास सैन्य गतिविधियों में शामिल रहने का था. यहां तक कि नोबेल कमेटी में भी इस बात को लेकर खूब विवाद हुआ था. इस फैसले के विरोध में कमेटी के एक सदस्य ने इस्तीफा तक दे दिया था.
इसी तरह का म्यांमार की सबसे चर्चित शख्सियतों में से एक आंग सान सू ची को भी साल 1991 में शांति का नोबेल दिया गया था. सू ची लंबे वक्त से म्यांमार में सैन्य शासन के खिलाफ शांतिपूर्ण आंदोलन कर रही थीं. इसी के लिए उनको नोबेल से सम्मानित भी किया गया था. लेकिन इसके 20 साल बाद जब वे सत्ता में आईं तो रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ हो रहे अत्याचार पर उन्होंने चुप्पी अख्तियार कर ली. यहां तक की उनसे ये पुरस्कार वापस लेने की मांग भी की गई थी.
महात्मा गांधी को नोबेल ना देने पर भी उठ चुके हैं सवाल
नोबेल प्राइस पर एक विवाद ये भी रहा है कि इसे कुछ लोगों को नहीं दिया गया. इन नामों में सबसे बड़ा नाम महात्मा गांधी का है. महात्मा गांधी को कई बार नोबेल पीस प्राइस के लिए नामित किया गया लेकिन उनको ये पुरस्कार कभी मिल नहीं पाया. साल 2006 में नॉर्वे के इतिहासकार और नोबेल पीस प्राइस कमेटी को हेड करने वाले गेर लुंडेस्टैड ने कहा था कि महात्मा गांधी को यह पुरस्कार ना देना नोबेल इतिहास की सबसे बड़ी भूलों में से एक है.
क्या वापस भी लिए जा सकते हैं नोबेल पुरस्कार
नोबेल पुरस्कारों को वापस नहीं लिया जा सकता है. अवार्ड देने वाली कमेटी का कहना है कि अल्फ्रेड नोबेल कभी ऐसा नहीं चाहते थे कि इसे वापस लिया जाए और ना ही कभी कमेटी ने भी इस बारे में विचार किया है. अभी तक किसी को भी ये अवार्ड देने के बाद इसे वापस नहीं लिया गया है.
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