नई दिल्ली: भारत के इतिहास में प्राचीन काल से लेकर मुगल और अंग्रेजों तक कई शासकों ने राज किया, जिनकी कहानियां आज भी हमें प्रभावित करती हैं. इनमें से एक अनोखी और कम जानी-मानी कहानी है दिल्ली सल्तनत की पहली महिला शासक की. दरअसल, यहां हम बात कर रहे हैं रजिया सुल्तान की, जिनका नाम हम सभी कई बार सुन चुके हैं, लेकिन उनकी जीवन गाथा और योगदान के बारे में कम लोग जानते हैं. बता दें कि रजिया गुलाम वंश के संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक की नातिन और इल्तुतमिश की बेटी थीं.
रजिया सुल्तान के जन्म पर हुआ था जश्न
कुतुबुद्दीन ऐबक के बाद दिल्ली का सुल्तान उसके दामाद इल्तुतमिश को बना दिया गया. इल्तुतमिश के बहुत सारे बेटे थे, लेकिन 1205 ईस्वी में जब उसके घर बेटी का जन्म हुआ तो इल्तुतमिश की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उन्होंने अपनी लाडली का नाम रखा जलालात उद्दीन रजिया. बेटी के जन्म पर शानदार जश्न का आयोजन किया गया. रजिया की पढ़ाई-लिखाई में भी कोई कमी नहीं छोड़ी गई. यही वजह थी कि रजिया सिर्फ 13 साल की उम्र में ही एक कुशल घुड़सवार और तीरंदाज बनकर उभरीं. रजिया, पिता के साथ सैन्य अभियानों में भी जाने लगीं.
रजिया से प्रभावित हुए पिता
कहते है कि एक बार जब इल्तुतमिश हमले के लिए ग्वालियर गए तो उन्होंने कुछ समय के लिए दिल्ली की सत्ता अपनी लाडली रजिया को सौंप दी. इसके बाद जब वह लौटे तो रजिया की जिम्मेदारी और प्रदर्शन देखकर बहुत प्रभावित हुए. ऐसे में वह दिल्ली की गद्दी के लिए अपने बेटों की तुलना में रजिया को बेहतर उत्तराधिकारी के रूप में देखने लगे. इसके चलते बड़े बेटे रुकनुद्दीन फिरोज के होते हुए इल्तुतमिश ने रजिया को दिल्ली की गद्दी के लिए नामांकित कर दिया.
इल्तुतमिश की इच्छा को किया गया नजरअंदाज
30 अप्रैल, 1936 को इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद उनकी इच्छा को नजरअंदाज करते हुए रुकनुद्दीन को ही सुल्तान बना दिया गया, लेकिन रुकनुद्दीन का शासन सिर्फ 7 महीनों का ही रह पाया. जनता जल्द ही उसकी क्रूर नीतियों और अत्याचारों से परेशान हो गई. रजिया ने भी इन हालातों का फायदा उठाया और जनता ने रजिया का साथ दिया. वहीं, अमीरों ने रुकनुद्दीन के महल पर हमला बोल दिया और उसे गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद नवंबर, 1236 में रजिया दिल्ली की गद्दी पर बैठ गईं. इसी के साथ वह दिल्ली की पहली महिला शासक बनीं.
रूढ़िवादी लोगों को खटकने लगीं रजिया
दूसरी ओर कुछ रूढ़िवादी लोगों को एक महिला का सुल्तान बनना बिल्कुल गवारा नहीं हो रहा था. लोग इसे इस्लाम के खिलाफ देखने लगे. ऐसे में सल्तनत के वजीर निजाम-उल-मुल्क जुनैदी ने रजिया की वफादारी करने से इनकार कर दिया और अन्य रूढ़ीवादियों संग मिलकर बगावत पर आ गए. इस दौरान रजिया के समर्थन में अवध के राज्यपाल तबाशी मुइजी आगे आए और दिल्ली की ओर जाने लगे. हालांकि, गंगा पार आते ही विपक्षियों ने उन्हें हिरासत में ले लिया.
रजिया की कमजोरी का उठाया फायदा
रजिया की स्थिति कमजोर हो गई थी. ऐसे में उनका एक अफ्रीकी गुलाम जमालुद्दीन याकूत उनके करीब होता गया. रजिया ने उससे शादी करने का फैसला कर लिया. हालांकि, सल्तनत का राज्यपाल मलिक इख्तियार उद्दीन अल्तूनिया, जो बठिंडा में तैनात था, उसे जब इस रिश्ते की खबर लगी तो वह गुस्से से लाल हो गया. दरअसल, वह रजिया के साथ ही खेला-बड़ा हुआ और उसकी ओर आकर्षित भी था. ऐसे में अल्तूनिया ने विद्रोह कर दिया और याकूत को मौत के घाट उतार दिया.
रजिया ने लिया दिमाग से काम
रजिया इस विरोध को शांत करने के लिए बठिंडा पहुंचीं. इस बीच दिल्ली में साजिश के तहत तख्तापटल कर दिया और उसे पद से हटा दिया गया. रजिया की जगह दिल्ली की गद्दी पर अब उनके रिश्तेदार बहराम को सुल्तान घोषित कर दिया. इधर, बठिंडा में रजिया ने समझदारी दिखाते हुए अपनी जान बचाने और सल्तनत वापस पाने के लिए अल्तूनिया से शादी कर ली. इसके बाद दोनों दिल्ली की ओर बढ़े, लेकिन रास्ते में ही बहराम ने उनका रास्ता रोक लिया.
अपने बेहतरीन कामों के लिए जानी गईं रजिया
14 अक्टूबर, 1240 को रजिया और उनके रिश्तेदार बहराम के बीच युद्ध हुआ, जिसमें रजिया और अल्तूनिया की हत्या कर दी. रजिया सिर्फ 4 सालों के लिए दिल्ली पर शासन कर पाईं. हालांकि, अपने कामों की वजह से अक्सर रजिया को याद किया जाता है. वह दरबार में मर्दों की तरह पगड़ी पहनकर और बिना नाकाब के लोगों के सामने बैठा करती थीं. ये बात उस समय सामान्य नहीं थी. रजिया ने अपने शासनकाल में सड़कों का निर्माण कराया, कुओं की खुदाई कराई, स्कूलों की स्थापना कराई. उन्होंने विद्वानों, चित्रकारों, कला और संस्कृति को बढ़ावा दिया. इतना ही नहीं, रजिया ने शांति कायम करने की कोशिश की और हर नागरिक को नियम-कानून का पालन करने के लिए भी प्रेरित किया.
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