नई दिल्लीः चुनाव आयोग के सबसे सख्त कमिश्नर रहे और कई अभूतपूर्व सुधारों के पुरोधा माने जाने वाले पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषन नहीं रहे. रविवार 10 नवंबर को लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया. शेषन को उनकी सख्ती के अलावा इसलिए भी याद किया जाता है कि उन्होंने चुनाव आयोग को उसकी ताकत का अंदाजा दिलाया. इस तरह उन्होंने लोकतंत्र के उस सूत्र को संवैधानिक रूप से स्थापित किया जो कि लोगों का, लोगों के लिए लोगों का शासन कहता है. चुनाव सुधार लागू करके वास्तव में उन्होंने लोकतंत्र की नींव को मजबूत किया था.
Tamil Nadu: Former Chief Election Commissioner of India, T N Seshan passed away in Chennai, after a cardiac arrest. https://t.co/sfyRzjNFJT
— ANI (@ANI) November 10, 2019
केरल के पलक्कड़ में हुआ था जन्म
87 साल की उम्र में दुनिया से रुखसत हुए टीएन शेषन का जन्म 15 दिसंबर 1932 को केरल के पलक्कड़ जिले में हुआ था. 1955 बैच के आईएएस रहे शेषन (पूरा नाम तिरुनेलै नारायण अइयर शेषन) ने 12 दिसंबर 1990 को भारत के चुनाव आयोग के दसवें मुख्य कमिश्नर का पदभार संभाला. इसके बाद सख्ती, ईमानदारी और कर्मठता का जो दौर शुरू हुआ वह छह साल तक चला और 1996 तक इस पद पर बने रहने के दौरन उन्होंने राजनीति में ढीठ हो रहे, मनमानी कर रहे नेताओं के बदल रहे मिजाज को खुलकर चुनौती दी. इसके लिए उन्हें सनकी भी कहा गया,
लेकिन शेषन ने किसी की नहीं सुनी. 1997 में उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव भी लड़ा, लेकिन हार गए थे. आज भारत में जो सुधरी हुई चुनाव व्यवस्था का स्वरूप दिखता है वह शेषन की ही दी हुई सौगात है. उनके खास बदलावों पर डालते हैं नजर-
रोकी फर्जी वोटिंग
मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल संभालते ही उन्होंने सबसे पहले फर्जी वोटिंग पर नकेल कसने की शुरुआत की. यह एक बड़ी चुनौती थी. इससे पहले चुनावों में लोग जब वोट डालने जाते थे तो पता चलता था कि उनका वोट पहले ही पड़ चुका है. टीएन शेषन ने इसे रोकने के लिए मतदाता पहचान पत्र बनवाने की शुरुआत की. आज भारत में चुनाव के लिए मतदाता पहचान पत्र होना बेहद जरूरी है, इसके साथ ही यह एक आम भारतीय नागरिक का भी पहचान पत्र है. इसकी शुरुआत शेषन के ही कार्यकाल में हुई थी.
बूथ लूटने की घटना पर रोक
दलों और उम्मीदवार की मनमानी पर रोक लगाने के लिए पर्यवेक्षक तैनात करने की प्रक्रिया को शेषन ने ही सख्ती के साथ लागू किया. इसका नतीजा यह हुआ कि नौकरशाही को काम करने की आज़ादी मिली और हिंसा रुकी.
1995 में बिहार के चुनाव को इसी वजह से याद किया जाता है. इससे चुनाव में मतदान बूथ लूटने जैसी घटनाएं बेहद कम हो गईं. इसके साथ ही राज्य मशीनरी का दुरुपयोग रोकने के लिए उन्होंने केंद्रीय बलों की तैनाती को प्रभावी बनाया. इससे राज्यों में पुलिस के बूते मनमानी करने की नेताओं की आदत पर रोक लगी.
आचार संहिता का पालन करना सिखाया
शेषन के चुनाव आयुक्त बनने से पहले इस पद और आयोग नेता बहुत गंभीरता से नहीं लेते थे. आचार संहिता सिर्फ कागजों में थी, लेकिन शेषन ने इसे सख्ती से लागू किया. पहले चुनाव प्रचार को लेकर नियमों का पालन नहीं होता था. नतीजा उम्मीदवार बेहिसाब और बेहिचक खर्च करते थे.
आचार संहिता लागू होने के बाद आयोग की प्रचार पर नज़र रहने लगी. रात 10 बजे के बाद प्रचार पर रोक लगी. कैंडिडेट के लिए चुनाव खर्च का हिसाब प्रचार के दौरान नियमित देना अनिवार्य हुआ और फिजूलखर्ची रुकी. चुनाव के समय यदि सरकार और राजनीतिक दल आचार संहिता के बंधन से नहीं छूट पाते हैं, तो इसका श्रेय टीएन शेषन को ही जाता है.
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