नई दिल्ली: जिस समय सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले पर सुनवाई चल रही थी. ठीक उसी समय बाहर यह खबर आई कि सु्नी वक्फ बोर्ड ने केस वापस लेने का फैसला किया है. लेकिन वकीलों ने इसे अफवाह करार दिया था.
अदालत में नहीं हुई थी चर्चा
शाम ढलते ढलते भी मुकदमा वापस लेने की बात साबित नहीं हो पाई. क्योंकि पहले तो वकीलों ने इसे महज अफवाह बताना शुरु किया, दूसरे शाम पांच बजे तक भी सुप्रीम कोर्ट में इस बारे में किसी तरह की चर्चा नहीं हुई. जिसकी वजह से लगा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा मुकदमा वापस लेने की बात सचमुच अफवाह है. लेकिन बाद में पता चला कि यह खबर बिल्कुल सच है.
मध्यस्थता बोर्ड के जरिए दायर किया गया हलफनामा
सुन्नी वक्फ बोर्ड ने केस वापस लेने से संबंधित हलफनामा, राम मंदिर विवाद का हल अदालत के बाहर इस मामले का हल तलाश करने के लिए बनाई गई मध्यस्थता कमिटी के जरिए दाखिल किया. जिसे सु्न्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से पैनल के सदस्य और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पांचू ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया. हालांकि मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने मंगलवार को ही स्पष्ट कर दिया था कि इस मामले में अब किसी तरह की अर्जी स्वीकार नहीं की जाएगी.
इसलिए फैला था संदेह
सुन्नी वक्फ बोर्ड के अयोध्या विवाद से हाथ खींचने की खबर तो बुधवार की दोपहर ही आ गई थी. लेकिन शाम तक इस खबर पर संदेह की स्थिति बनी रही. क्योंकि सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी को इस बारे में कुछ पता ही नहीं था. उन्होंने शुरुआत में इसे महज अफवाह करार दिया. लेकिन बाद में यह स्पष्ट किया कि वक्फ बोर्ड ने इस कदम के बारे में उन्हें किसी तरह की सूचना ही नहीं दी थी. जफरयाब जिलानी के बयान के चलते इस मामले में भ्रम की स्थिति बनी रही. लेकिन बाद में संदेह के बादल छंट गए और मुस्लिम समुदाय की तरफ से एक और पक्षकार इकबाल अंसारी ने भी स्पष्ट कर दिया कि उन्हें केस वापस लेने के सुन्नी वक्फ बोर्ड के फैसले पर कोई आपत्ति नहीं है.
भगवा खेमे ने बताया साजिश
सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा मुकदमा वापस लेने के प्रस्ताव को कुछ हिंदूवादी नेता साजिश करार दे रहे हैं. उनका कहना है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड इस मामले में देर करना चाहता है. उसकी मंशा है कि किसी तरह मुख्य न्याधीश रंजन गोगोई का कार्यकाल समाप्त हो जाए. इस मामले में नया पैनल गठित हो जाए, जिसके बाद मुकदमे को और लंबा खींचा जा सके.