शक कितना ही प्रबल क्यों न हो, प्रमाण का स्थान नहीं ले सकताः सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने साल 1994 में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में युवक और युवती की ऑनर किलिंग से जुड़े बहुचर्चित मामले में निचली अदालत की तरफ से दोषी घोषित किए गए आरोपी भाई को हत्या के आरोप से दोषमुक्त घोषित करते हुए रिहा करने का आदेश दिया है.

Written by - Nizam Kantaliya | Last Updated : May 27, 2022, 09:02 PM IST
  • साल 1994 का ऑनर किलिंग का मामला
  • आरोपी भाई को कोर्ट ने किया दोषमुक्त
शक कितना ही प्रबल क्यों न हो, प्रमाण का स्थान नहीं ले सकताः सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने साल 1994 में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में युवक और युवती की ऑनर किलिंग से जुड़े बहुचर्चित मामले में निचली अदालत की तरफ से दोषी घोषित किए गए आरोपी भाई को हत्या के आरोप से दोषमुक्त घोषित करते हुए रिहा करने का आदेश दिया है. जस्टिस डी वाई चन्द्रचूड़ और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर चन्द्रपाल की अपील को स्वीकार करते हुए स्पष्ट किया कि हत्या के अपराध के लिए दोषसिद्धि केवल अतिरिक्त न्यायिक स्वीकारोक्ति के साक्ष्य पर नहीं की जानी चाहिए.

'हत्या का तथ्य है सबसे महत्वपूर्ण पहलू'
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आईपीसी की धारा 302 के तहत एक आरोपी को दोषी ठहराने के लिए अभियोजन की तरफ से साबित किया जाने वाला पहला और सबसे महत्वपूर्ण पहलू है हत्या का तथ्य. यदि अभियोजन के साक्ष्य मृतक की हत्या के प्रमाण से कम हो जाते हैं और यदि आत्महत्या की मृत्यु की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है तो अभियुक्त को केवल इस सिद्धांत के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता था कि उसे "आखिरी बार एक साथ देखा गया".

जस्टिस डी वाई चन्द्रचूड़ ने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष अपीलकर्ता-अभियुक्त के खिलाफ लगाए गए आरोपों को उचित संदेह से परे लाने में बुरी तरह विफल रहा है. और संदेह कितना ही प्रबल क्यों न हो, प्रमाण का स्थान नहीं ले सकता. अदालत ने कहा कि यह देखा गया था कि केवल अंतिम बार देखे जाना ही परिस्थितिजनक परिस्थितियों की शृंखला को पूरा नहीं कर सकती, जिससे यह निष्कर्ष दर्ज किया जा सके कि यह आरोपी के अपराध की परिकल्पना के अनुरूप है.

सुप्रीम कोर्ट ने शिवाजी सहाबराव बोबडे व अन्य के फैसले की नजीर का उदाहरण देते हुए कहा कि इस मामले में अभियोजन पक्ष का पूरा मामला ही परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित था, इस कथित घटना का कोई चश्मदीद गवाह नहीं था. लेकिन परिस्थितिजन्य साक्ष्य की सराहना पर कानून भी अच्छी तरह से स्थापित है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संबंधित परिस्थितियों को हो सकता है के रूप में स्थापित नहीं किया जा सकता, जबकि उन परिस्थितयों को "होना चाहिए के रूप में स्थापित किया जाना चाहिए. अपराध बोध के निष्कर्ष निश्चित निष्कर्ष होने चाहिए और अस्पष्ट अनुमानों पर आधारित नहीं होने चाहिए. परिस्थितियों की पूरी शृंखला जिस पर अपराध का निष्कर्ष निकाला जाना है, पूरी तरह से स्थापित होना चाहिए और निष्कर्ष के लिए आरोपी की बेगुनाही के अनुरूप कोई उचित आधार नहीं छोड़ना चाहिए.

'प्रेम विवाह से नाराज पिता और भाई ने ही मिलकर की थी आनर किलिंग'
11 दिसंबर 1994 में बिलासपुर के ​कुमारी ब्रिंदाबाई और कन्हैया सिद्दार के शव गांव के बाहर एक पेड़ पर लटके हुए मिले. पुलिस द्वारा की गयी जांच में सामने आया कि दोनों ही मृतकों की मृत्यु 8 से 10 दिन पूर्व हो चुकी थी और उनके गले पर रस्सी के निशान मिले. पुलिस की जांच में ये भी सामने आया कि दोनों ही युवा एक दूसरे से प्रेम करते थे और उनके परिजन इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं थे. 2 दिसंबर 1992 से दोनों अपने घर से गायब थे. इसके बावजूद दोनों के ही परिवार की ओर से कोई गुमशुदगी दर्ज नहीं करायी गयी.

बाद में जांच में सामने आया कि दोनों मृतकों की हत्या मृतका के पिता भागीरथ कुमार, भाई चन्द्रपाल और अन्य परिजन मंगलसिह और वैदेशी ने मिलकर की थी. रायपुर में प्रथम एडिशनल सेशन जज ने 3 अगस्त 1998 को अपना फैसला सुनाते हुए सभी आजीवन उम्रकैद की सजा सुनायी. निचली अदालत के खिलाफ छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में पिता भागीरथ कुमार, भाई चन्द्रपाल, मंगल सिंह और वैदेशी की ओर से अलग अलग दो अपीलें दायर की गईं.

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने इस मामले में भागीरथ कुमार, मंगल सिंह और वैदेशी की अपील को स्वीकार करते हुए उन्हे आईपीसी की धारा 302 के साथ पठित धारा 34 के तहत मिली सजा को रद्द कर दिया, लेकिन आईपीसी की धारा 201 के तहत अपराध के लिए उनकी सजा की पुष्टि करते हुए उन सभी को उनके द्वारा पहले से ही गुजारी जा चुकी अवधि की जेल की सजा सुनाई. लेकिन आरोपी चन्द्रपाल को हाई कोर्ट ने कोई राहत नहीं देते हुए उसे हत्या की धाराओं में मिली सजा को बरकरार रखा. छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ चन्द्रपाल ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर चुनौ​ती दी.

सुप्रीम कोर्ट ने फैसले की प्रति जेल प्रशासन को भेजने के निर्देश देते हुए अपीलकर्ता आरोपी चन्द्रपाल को सभी आरोपों से दोषमुक्त करते हुए रिहा करने के आदेश दिए हैं.

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